- करणीदानसिंह राजपूत -
कांग्रेस के सूरतगढ़ व राजियासर ब्लॉकों की एक बैठक सूरतगढ़ में 1 अप्रेल को हुई। भाजपा को मिमियाते से शब्दों में कोसा गया। पूर्व जिला प्रमुख पृथ्वीराज मील जो कि अगले विधानसभा चुनाव के लिए सूरतगढ़ सीट के प्रबल दावेदार माने जाते हैं ने दो बातें प्रमुख रूप से कही। एक भाजपा से 2 सालों में ही लोगों का मोह भंग हो गया है। दूसरी बात कही कि पंचायत स्तर पर बैठकें की जाऐंगी और उसके बाद में रण नीति बनाई जाएगी। इस बैठक का आयोजन रणनीति बनाने के लिए ही किया गया था लेकिन अभी केवल इतना ही तय कर पाऐं हैं कि पहले पंचायत स्तर बैठकें की जाऐंगी और पार्टी को मजबूती प्रदान की जाएगी।
कांग्रेस के अपने आपको मजबूत नेता मानने वाले यह तो मानते हैं कि पार्टी कमजोर है। पार्टी मजबूत नहीं है और पंचायतों तक हालत खराब हो चुकी है कि वहां पर पहले बैठकों करनी होगी। इनके निर्णय से ही यह लगता है कि रण के लिए कुछ भी नहीं है। कहीं कहीं पर एक दो कार्यकर्ता बचे हैं। कुछ ऐसे कार्यकर्ता बचे हैं जो उम्र के अंतिम पड़ाव में पार्टी को छोडऩा नहीं चाहते। दोनों ही प्रकार के ऐसे कार्यकर्ता रण नहीं लड़ सकते।
आखिर पार्टी की यह कमजोर हालत कैसे हो गई? किसने पार्टी की इस हालत में पहुंचाया कि कार्यकर्ता तक बेदम हालत में पहुंच गए। यहां पर सिवाय मील परिवार गंगाजल मील और पृथ्वीराज मील के और तो कोई नहीं था। गंगाजल मील के विधायक चुने जाने से पहले से लेकर विधायक काल और उसके बाद में आजतक केवल मील परिवार के ये व्यक्ति ही पार्टी को अपनी जेब में या फिर अपने घर परिसर में रखते रहे। कोई अन्य व्यक्ति पार्टी को इस तरह से रखने वाला होता तो दोष उसके सिर पर मंढ़ा जाना वाजिब होता।
मील परिवार के खुद के पास में वह पावर नहीं रही है कि एक आवाज दे और जनता कुर्बान होने कौ सिर कटाने को तैयार हो जाए। लेकिन जनता ऐसे हालात के लिए तभी तैयार होती है जब नेता भी जनता व कार्यकर्ताओं के लिए सिर कटाने को तैयार रहता हो या कभी ऐसी घटनाएं पैदा हुई हों। यहां पर संघर्ष करने के लिए हर रोज कोई न कोई मुद्दा बनता रहता है लेकिन संघर्ष से भागने वाली हालत रही है या फिर टालते रहने की हालत। फौजों का एक नियम होता है कि कभी भी उसे विश्राम की हालत में न रखा जाए। वह ठंडी पड़ती चली जाएगी और जब युद्ध आ जाएगा तक आलस में डूबी लड़ नहीं पाएगी। कांग्रेस फौज इस हालत में है जिसे विश्राम कहा जा सकता है। अब ऐसी फौज के भरोसे कैसे लड़ा जा सकता है? हां। नेता नेता से लड़े तब कार्यकर्ता सामने वाली पार्टी के कार्यकर्ता से भिड़ सकता है। यहां पर तो हालत सबके सामने हैं। मील परिवार के दिग्गज गंगाजल मील और पृथ्वीराज मील सामने वाले नेता राजेन्द्रसिंह भादू से लडऩे में कतराते हैं। सामने राजेन्द्र भादू आ जाए तो उस रास्ते को छोड़ कर निकलते हैं। यह कमजोर स्थिति कार्यकर्ता और आमजन देखते हैं समझते हैं।
अब लड़े कौन?
भाजपा राज के यानि कि सूरतगढ़ में राजेन्द्रसिंह भादू के राज के ढाई साल बीतने को है। एक एक दिन कीमती है। आखिर कब रण का निर्णय होगा? अभी तो बैठक की है और उसमें पंचायत स्तर पर बैठकें करने का कहा गया है। इसका भी निर्णय होगा। यह निर्णय कब होगा?
हालात से तो यह लगता है कि मील इस प्रकार का निर्णय नहीं ले सकते। वे पीछे हट रहे हैं। समझें कि उन्होंने केवल पदों की या पूर्व पदों के संबोधन की जगहें रोक रखी हैं। मील परिवार नेताओं की सोच शायद यह है कि टिकट उनको मिल ही जाएगी और भाजपा से असंतोष के कारण वोट भी मिल जाऐंगे।
लेकिन टिकट पक्की हो और वोट भी पक्के हों यह गारंटी तो कभी भी नहीं हो सकती।
हां कोई नेता पद स्तर छोडऩे को तैयार न हों और रण से भाग रहे हों तब जनता स्वयं भी तो नया नेता सोच समझ कर आगे ला सकती है।
कार्यकर्ता सोच समझ कर निर्णय ले सकते हैं कि जो रात में आठ बजे के बाद संतोषजनक बात करने वाली हालत में हो समय दे सके वह नेता उपयुक्त हो सकता है।