टिप्पणी-करणीदानसिंह राजपूत
अपनी यानि की भारतीय जनता पार्टी यानि अपनी जनता की सरकार और अपना बजट पेश हुआ। अब अपना सिर है और अपनी ही दीवार है, जितनी देर तक भिड़ा सकते हैं भिड़ाएं और फोड़ कर लहुलुहान करना चाहते हैं तो वह भी करलें। अपनी सरकार के लिए अब यही करना बाकी रहा है। इसे मोदी सरकार का बजट कहें चाहे अपनी सरकार का बजट कहें। अपनी सरकार की यह तो खूबी माननी ही चाहिए कि उसने हमारा सिर नहीं फोड़ा। अपराध का आरोप भी उस पर नहीं लगाया जा सकता। सरकार ने यह हालात कर दिए कि अपना सिर खुद ही फोड़ें चाहे आज फोड़ लें चाहे दो दिन बाद या उसके बाद फोड़ लें।
सरकार ने कह दिया कि मध्यम वर्ग अपना प्रबंध स्वयं ही करले। यही बात मैं लिख रहा हूं कि अपना सिर अपनी ही दीवार से फोड़ लें।
टीवी चैनलों पर अनुमान किए जा रहे थे कि आयकर का स्लैब बदल कर बढ़ाया जा सकता है। यही बात अखबारों के माध्यम से भी उठ रही थी। आशा की जा रही थी कि जनता को प्रभावित करने के लिए स्लैब में परिवर्तन करके टैक्स लगाए जाने की सीमा बढ़ाई जा सकती है। अपनी सरकार ने यह स्लैब परिवर्तन नहीं किया।
सरकार को मालूम है कि हम रोते रहेंगे और दो चार दिन बाद चुप्प हो जाऐंगे। सरकार को यह भी मालूम है कि देश की आजादी के बाद से अब तक हम पर भार लादा जाता रहा और हमने कभी विरोध नहीं किया। सरकार को मालूम है कि इन पांच सालों में जो अवधि बची है उसमें ीाी हमारी सोच में ताकत में कोई परिवर्तन आने वाला नहीं है। सो सरकार ने पूरी सोच समझ से कर भार वहीं रख दिया। सरकार को मालूम है कि जो वेतन बढ़े हैं और आगे अभी बढऩे वाले हैं,उसका प्रबंध पहले से ही कर लिया है।
सरकार ने कर्मचारियों का ध्यान रखा है कि वेतन आयोग की रिपोर्ट आने वाली है और कर्मचारियों को बढ़ा वेतन देना होगा।
लेकिन इस देश में संगठित नहीं है तो वह है आम जनता। उसमें मध्यम वर्ग शामिल है। इसमें आम जनता जिसमें दिहाड़ी मजदूर,खेत मजदूर,होटल ढाबों में काम करने वाले या अन्य मजदूर हैं। ये यानि कि अपन ना संगठित हैं ना आनी कोई सोच है कि कोई मांग कर सकें। ललकार देना चुनौति देना तो अलग बात है।
हां वोट देने के लिए अपन संगठित हो जाते हैं जैसे अपनी मोदी सरकार के लिए संगठित हुए।
अपन ने पहली बार इतना तो सोचा ही था कि अपना चाय वाला भायला पीएम बना है तो अपना ध्यान जरूर जरूर रखेगा। सच में ध्यान रखा या नहीं रखा। अपन हिसाब से तो जरा भी ध्यान नहीं रखा।
हां एक बात का ध्यान तो रखा कि मनरेगा को बंद नहीं करेंगे उसे चालू रखेंगे तथा उसके लिए धन का प्रबंध भी करेंगे। मोदी जी ने भाषण में कहा कि उसे कांग्रेस की विफलता के रूप में ढ़ोल पीटते हुए चालू रखेंगे। वाह अपने चाय वाले भायले की सोच का जवाब नहीं। गरीबों को आजीविका चलाने के लिए चालू कार्यक्रम को वह इसलिए चालू रखेंगे ताकि कांग्रेस की विफलताओं के रूप में उसे जाना जाता रहे।
मोदी जो कहें। अपनी सोच तो यह है कि महात्मा गांधी का नाम ले लेकर मोदी सरकार भी चलेगी सो महात्मा गांधी के नाम से जुड़ी मनरेगा योजना किसी भी हालत में बंद नहीं होगी।
अपनी सरकार बोली है कि बजट में महिलाओं की सुरक्षा व संबल के लिए बहुत कुछ किया जाएगा। वह अपन सभी आगे देखते रहेंगे।
अपनी सरकार के अपने बजट पर आशाएं लगाए थे। यह ध्यान में रखना चाहिए था कि रेल बजट जिस प्रकार का पेश हुआ उसी की तर्ज पर यह बजट भी आएगा और पक्का आएगा।
खैर। अब अपना सिर है और अपनी दीवार है।