बुधवार, 7 फ़रवरी 2018

अनूपगढ़ जिला घोषित हो जाए तब सूरतगढ़ का क्या होगा





-  करणी दान सिंह राजपूत  -

यह सवाल मेरे दिमाग में अचानक पैदा नहीं हुआ।
 कई दिनों से सोच रहा था कि अगर अनूपगढ़ को जिला बना दिया जाए। अनूपगढ को जिला बना देने की घोषणा हो जाए तब सूरतगढ़ का क्या होगा?
अनूपगढ़ के लोग बिना किसी लाग-लपेट के लगातार 5 साल से यह मांग कर रहे हैं। उनकी मांग के भी आधार हैं।
उन्होंने इस मांग में 1 दिन भी अवकाश नहीं रखा, इसलिए मेरे मन में यह सवाल पैदा हुआ कि अगर अनूपगढ़ को सीमा क्षेत्र का विकास मानते हुए जिला घोषित कर दिया जाए और सूरतगढ़ का नाम नहीं हो । तब क्या होगा?

अनूपगढ़ को जिला बनाने की मांग को लेकर 7 फरवरी को अनूपगढ़ सहित कई मंडियां पूर्ण रूप से बंद होने की संभावना है। उनके संघर्ष और जीवट को देखते हुए यह लगता है की उनका बंद पूर्ण रूप से सफल होगा।
सूरतगढ़ को जिला बनाने की मांग नई नहीं है, करीब 45 साल से यह मांग चल रही है।

सूरतगढ़ के लोग कुछ दिन आंदोलन चलाते हैं फिर बाद में बंद कर देते हैं। साल में एक या दो बार जजबात उठता है। वह भी पांच 10 लोगों में जोश आता है वे भी प्रशासन को ज्ञापन देने तक सीमित रह जाता है। सूरतगढ़ को जिला बनाने की मांग जब से चल रही है, उसके बाद कई नए जिले बन चुके हैं।
 हमारे इलाके के जनप्रतिनिधियों ने जो भी सरकार रही उसको दबाव में लाने की कोई कोशिश नहीं की। अधिक से अधिक प्रतिनिधिमंडल को मुख्यमंत्री से मिलाने तक का कार्य किया और अपने कर्तव्य को पूरा समझा मान लिया।
संघर्ष करने वाली जो टीम है उसने भी मान लिया कि विधायक ने मुख्यमंत्री से भेंट करवा दी। बस , यह मांग पूरी हो जाएगी।
अनूपगढ़ जैसा निरंतर दबाव देने की कभी कोशिश नहीं की। यह भी नहीं सोचा की वर्षों से चल रही मांग पर कोई कार्यवाही नहीं हुई और नए नए जिले बनते चले गए। हमारे यहां के किसी भी विधायक ने मुख्यमंत्री से यह सवाल नहीं किया कि हम लोग आपके साथ क्यों रहें? क्यों परिवर्तन यात्राएं निकालें? क्यों साथ दें? आप तो हमारा एक काम भी कभी नहीं करते ?
किसी भी विधायक ने अन्य सत्ता के करीबी नेता ने अगर मुख्यमंत्री से व इलाके के मंत्री से ऐसा सवाल किया है, तो वह मेरी बात का मेरे सवाल का खंडन कर सकता है। जवाब दे सकता है। सूरतगढ़ को जिला बनाने की मांग का आधार एक नहीं अनेक हैं।

बहुत पहले सन् 1978 में सरकार ने जिलों के पुनर्निर्धारण के लिए एक समिति गठित की थी। उसमें मुख्य बिंदु इंदिरा गांधी नहर का रखा गया था कि जिस इलाके में विकास अधिक होने की संभावना हो उस आधार पर जिला बनाया जाए। उस जिले में पास के जिले का हिस्सा मिलाने तक की बात थी।  उस आधार से सूरतगढ़ को जिला बनाया जाना चाहिए था। महाजन तक का भाग सूरतगढ़ में शामिल किया जा सकता था और आज भी किया जा सकता है।

 मैं पहले बता चुका हूं हमारे यहां के विधायक अपनी बात कहने में रखने में कमजोर रहे हैं। मुख्यमंत्री भैरों सिंह जी शेखावत का राज था व सूरतगढ़ में विधायक भाजपा के अमर चंद मिड्ढा थे।
उस समय सूरतगढ़ में बहुत जोश और रोष था और खुले आम यह घोषणा कर दी गई थी अगर सूरतगढ़ को छोड़कर हनुमानगढ़ जिला बनाया गया तो बहुत कुछ कर डाला जाएगा।
शेखावत ने विधायक मिड्ढा को अपने मित्रता का हवाला देकर सूरतगढ़ के लोगों का अधिकार खत्म करवा दिया। हनुमानगढ़ को 1992 में जिला घोषित किया गया। शेखावत ने कहा कि मैं सूरतगढ़ को जिले जैसा ही अधिकार पावर दे दूंगा।
कई महीनों बाद यहां अतिरिक्त जिला कलेक्टर का पद सृजित किया गया।
 मैं नहीं इलाके के सभी लोग जानते हैं और समीक्षा करके देखें के इस अतिरिक्त जिला कलेक्टर के पद का सूरतगढ़ के लोगों को कितना और क्या लाभ मिला है? पहले तो यहां कोई आने को तैयार नहीं होता। कोई आता है तो जनता जितना चाहती है उतने काम नहीं करता। किसी एक का नहीं सभी की हालत ऐसी रही है। यहां के अतिरिक्त जिला कलेक्टर के अधिकार क्षेत्र में सूरतगढ़ श्रीबिजयनगर अनूपगढ़ और घड़साना चार तहसीलें आती हैं।
सूरतगढ़ के अतिरिक्त जिला कलेक्टर कार्यालय की समीक्षा की जाए  तो जो मैं कह रहा हूं वह काफी सच्च साबित होगा।
सूरतगढ़ को जिले जैसा लाभ नहीं मिला इसलिए आज यह सवाल फिर पैदा हो रहा है की किसी भी कारण से अगर अनूपगढ़ को जिला घोषित कर दिया गया तब सूरतगढ़ का क्या होगा?
5-2-2017.
अपडेट 7-2-2018
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