शनिवार, 26 दिसंबर 2015

राजेन्द्र भादू का राजनैतिक ग्राफ गिरा:पत्रकार वार्ता में उठाया गया सवाल:




भादू का यह ग्राफ कैसे नापा गया? अखबारों व चैनलों में खबरें तो उनके विरूद्ध आई नहीं:
बसपा के डूंगर राम गेदर और कांग्रेस के गंगाजल मील का ग्राफ नापा गया?

प्रेस वार्ता में विधायक राजेन्द्र भादू ने 2 साल का ब्यौरा पूरी तैयारी से दिया:
सवालों के जवाब वास्ते भी पूरे तैयार होकर आए लेकिन जिन्होंने कुछ छापा नहीं वे पत्रकार क्या पूछते?
- करणीदानसिंह राजपूत -
सूरतगढ़। राजनीति के धुरंधर परिवार से प्रयासों के बाद जीत हासिल करने वाले विधायक राजेन्द्र भादू ने अपने कार्यकाल के 2 सालों के कामों का ब्यौरा कम्प्यूटर टाईप से तैयार किया हुआ पत्रकार वार्ता में दिया और स्वयं ने एक घंटे से अधिक बोलते हुए विवरण दिया। सवाल जवाब में एक दूर की कौड़ी खोज कर लाने जैसा सवाल उठाया गया।
आपका ग्राफ नीचे गिरता जा रहा है। ऐसा क्यों हो रहा है? सवाल में केवल इतना सवाल ही था। ग्राफ कैसे गिरा? कितना गिरा? कौनसा कार्य नहीं किया जिससे ग्राफ गिरा। इसका कोई ब्यौरा नहीं। केवल सवाल ही पूछा गया।
ग्राफ गिरने का मालूम कैसे पड़ा? किसने मापा और किस तरीके से मापा? कितना गिरा? यह बता दिया जाता तो अच्छा रहता। पत्रकारों को चिंता है तो यह भी मालूम जरूर पड़ा होगा कि चुनाव में दूसरे क्रम पर रहे बसपा के डूंगर राम गेदर और तीसरे क्रम पर रहे कांग्रेस के गंगाजल मील का ग्राफ इन 2 सालों में क्या रहा? वे ऊंचे चढ़े या और नीचे चले गए?
पत्रकार का सवाल है तो निश्चित है कि उनसे समीक्षा करके ही सवाल दागा होगा?
राजेन्द्र भादू ने कभी जवाब दिया नहीं इसलिए इसका उत्तर भी नहीं दिया।
राजेन्द्र भादू के दो सालों के कुल दिन होते हैं। इन 730 दिनों में दैनिक समाचार पत्रों में 30 समाचार भी उनके विरूद्ध नहीं छपे जिनसे ग्राफ नीचे गिरने का आंकलन किया जा सके।
हम भादू के पक्षकार नहीं हैं लेकिन एक साधारण जानकारी तो रखने की ईच्छा होती है कि आखिर ग्राफ कैसे गिरा?
भादू ने जब अपने कार्यकाल का इतना बड़ा रिकार्ड दिया है तो उसका एक एक विभाग की रिपोर्ट का अध्ययन कर और मौके की हालात को देख कर पत्रकार वार्ता के अगले दिन से ही बहुत कुछ छापा जाना शुरू किया जा सकता था लेकिन कोई मीनमेख निकाली नहीं गई।
राजेन्द्र भादू के विरूद्ध जो अखबार छापते रहे,उनको तो सवाल करने की जरूरत ही नहीं थी लेकिन जो प्रकाशन और प्रसारण में पीछे रहे वे सवाल दाग कर अपनी जिज्ञासा शांत कर सकते थे और पत्रकार वार्ता के बाद भी कर सकते थे। लेकिन इतने दिन बाद भी कुछ छपा नहीं और आगे उम्मीद नहीं। कलम और कैमरे 2 सालों तक काम करते रहते तो ग्राफ नीचे जाने का प्रमाण भी होता। पत्रकार तो इनसे ही समीक्षा करता है

डूंगर राम गेदर

सूरतगढ़ में विधानसभा चुनाव में नजदीकी क्रमों पर रहे डूंगर राम गेदर और गंगाजल मील का ग्राफ कहां है? आज चुनाव कराए जाएं तो गेदर और मील को उतने वोट नहीं मिल सकेंगे जितने विधानसभा चुनाव में मिले थे।
सत्ताधारी के कार्यकाल की समीक्षा कार्यों से और विपक्ष की समीक्षा उसके विरोध प्रदर्शन और लगातार इलाके पर नजर रखने और सत्ताधारी के कार्यों पर नजर रखने से की जाती है।
डूंगरराम गेदर और गंगाजल मील तथा उनके दलों की ओर से कितने विरोध प्रदर्शन धरने हुए और कितनी लिखित शिकायतें आदि सीधी विधायक के कार्यों बाबत हुई? हालात इनके भी कोई अच्छे नहीं रहे हैं।
विधायक के 2 सालों के ब्यौरे पर अभी बसपा ने ही जवाबी पत्रकार वार्ता की है। बसपा ने भी 730 दिनों में 30 दिन भी कोई कार्य नहीं किया जो एकदम निकटतम को करना चाहिए था। बसपा को  या कहें कि डूंगर राम गेदर को जो 39 हजार वोट मिले थे तो उसके हिसाब की जितनी जिम्मेदारी बनती थी उसे तो निभाते। 39 हजार मतदाताओं के प्रति कुछ तो जिम्मेदारी बनती होगी?
विधायक भादू के 2 सालों के ब्यौरे पर अभी गंगाजल मील ने केवल प्रेस बयान ही जारी किया है कि भादू की पोल खोलेंगे। भादू के विरूद्ध इतना सशक्त मैटर कुछ पत्रों में रिकार्ड सहित छपता रहा मगर 2 सालों तक कहीं शिकायत करने जाँच कराने की बात तक नहीं की। अब भी केवल बयानबाजी ही।
वैसे मील का कार्य भी 730 दिनों में 20 दिन भी सामने नहीं आया। बस यही दिमाग में संभवत:एक धारणा है कि भाजपा शासन से दुखी लोग अपने आप कांग्रेस को चुनेंगे और वह टिकट मील के पास में होगी। राजनीति में इतना तो सभी जानते हैं कि नीचे वाले को ऊपर न आने दो और जो ऊपर है उसे कंडम करते रहो व नीचे लाओ। मील और गेदर दोनों के पास में ऐसा मैटर था और अब भी है लेकिन उनको न जाने कौनसा डर सता रहा है? इन दोनों जनों डूंगर राम गेदर और गंगाजल मील ने भादू को नीचे गिराने के लिए कोई कार्य ही नहीं किय


 
गंगाजल मील तो अकेले नहीं उनके साथ उनके भतीजे पृथ्वीराज मील भी हैं। अब बात आती है कि हमारे कहने से भादू का विरोध नहीं करना चाहते हो,यह बड़ी अच्छी बात है। हमारे कहने व लिखने छापने से भादू का विरोध किया भी नहीं जाना चाहिए।
हां,राजनीति में जीवित रहना है और आगे चुनाव भी लडऩा है तो यह विरोध शक्तिशाली रूप में करना ही होगा वरना कोई जरूरी नहीं है कि पार्टी 
टिकट पर मील परिवार की ही मोहर लगी है और कोई दूसरा ले नहीं सकता।

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