मंगलवार, 7 जुलाई 2015

वसुंधरा सामने डसने को खड़ी हो गई तब दिल्ली नेताओं व संघ का क्या होगा?



मंदिर तोड़े जाने से संघ वसुंधरा से नाराज:9 जुलाई जयपुर बंद:
क्या संघ मंदिरों के तोड़े जाने की संख्या की गणना करने में लगा हुआ था अब तक?
वसुंधरा पर इस्तीफे के दबाव का नया पैंतरा:
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- करणीदानसिंह राजपूत -

जयपुर में मैट्रो ट्रेन के लिए एक एक करके मंदिर टूटते रहे और यह संख्या सौ से पार हो गई। कोई नहीं बोला। किसी को बोलते नहीं सुना। किसी का समाचार नहीं देखा। एक एक कर कई माह बीत गए।
अब अचानक संघ की दृष्टि कूपित हुई और वसुंधरा से जवाब मांगा जाने लगा व जयपुर बंद की चेतावनी भरी घोषणा कर दी गई। सवाल यह नहीं है कि जयपुर बंद हो पाएगा या नहीं। जयपुर संपूर्ण बंद नहीं हो पाएगा। यह संघ भी जानता है।
सवाल यह है कि क्या इसके पीछे कोई और राजनैतिक खेल चलाया जा रहा है?
क्या राजनीति की चतुर खिलाडिऩ वसुंधरा इस सांकेतिक दबाव से इस्तीफा देकर सत्ता छोड़ भाग जाएगी?
दिल्ली के राजनैतिक बंदे भी अच्छी तरह से जानते कि वसुंधरा राजे पूरी जिद्दी नेता है और ताकत में कहीं भी कमजोर नहीं है। वह मुख्यमंत्री पद से आसानी से इस्तीफा देने वाली नहीं है।
दिल्ली के उच्च पार्टी नेता जानते हैं कि वसुंधरा को इस्तीफा देने का कहने के बाद वह सामने अड़ गई तो मर्यादा व पावर के तार तार हो जाने में पल भी की देरी नहीं होगी। वसुंधरा के आसानी से इस्तीफा देने की हालत होती तो अब तक दिल्ली नेता कह देते या मोदी ही इशारा कर देते।
खुद नरेन्द्र मोदी को यह भय है कि वसुंधरा को त्यागपत्र का इशारा मात्र करना ही जहरीली नागिन को छेडऩा होगा।
वसुंधरा सामने डसने को तैयार हो जाए तब?
वसुंधरा राजे की इसी शक्ति के कारण ही अब तक चुपी छाई हुई है।
वसुंधरा पर ललित मोदी की मित्रता को लेकर सवाल उठते रहे।
वसुंधरा राजे ने चैनलों के दिन रात के शोर के बावजूद मुंह से कुछ नहीं बोला।
इसके बाद उनके पुत्र दुष्यंत की कंपनी में ललित मोदी द्वारा करोड़ों रूपए लगाए जाने का मामला उछाला गया।
वसुंधरा ने इस पर भी इस्तीफा नहीं दिया।
धौलपुर पैलेस को लेकर एक बार फिर प्रयास किया गया लेकिन पार नहीं पड़ी।
अब नया तरीका अपनाया गया है कि मंदिरों के तोड़े जाने का दबाव राजस्थान की मुख्यमंत्री पर बनाया जाए कि उनकी सरकार की जिम्मेदारी थी। यह प्रचारित किया जाए कि वसुंधरा राजे से संघ भी नाराज है।
एक दिन के जयपुर बंद से क्या वसुंधरा दबाव में आ जाएगी?
वसुंधरा को संघ की ताकत का मालूम है। कहीं ऐसा न हो जाए कि संघ की हवा निकल जाए।
एक दिन के बाद संघ क्या करेगा?
संघ के हालात भी कोई अच्छे नहीं हैं।
राजस्थान में अब कितनी शाखाएं लगती हैं?
अपने अपने शहर कस्बे में ही देखलें कि कितनी शाखाएं लगती हैं और उनमें कितने सेवक उपस्थित होते हैं।
ऐसा लगता है कि संघ अब चैनलों में व समाचार पत्रों में ही रह गया है जिसमें बड़े का भाषण ही सुन पाते हैं।
आजकल संघ जिस दुर्दशा पर है वह पथ संचलन में दिखाई पड़ता है। आजकल नगाड़े की धमक पर सेवकों के कदम सधे हुए एक जैसे न उठते हैं न पड़ते हैं। संघ के नाम का दबाव पहले हुआ करता था जब संघ में पूर्ण रूप में देश के प्रति समर्पण की भावना से काम होता था।
संघ से जुड़े स्कूलों में कार्यक्रमों व समारोहों में किस प्रकार के नेता अतिथि होने लगे हैं। आरोपी लोगों को क्यों बुलाया जाने लगा है? पैसा तो संघ के स्कूलों में भी अब कम नहीं है,उनकी फीस भी अंग्रेजी स्कूलों के समतुल्य है।
संघ के लोग कितने ईमानदार रहे हैं और सरकारी कर्मचारी अधिकारी के पद पर बैठे कितने लोग स्वच्छ रह पाए हैं?
ऐसी हालत में कैसे किसी पर दबाव बनाया जा सकेगा?
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करणीदानसिंह राजपूत,
स्वतंत्र पत्रकार,
सूरतगढ़।
94143 81356

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