हिंदी राजभाषा के अध्यादेश विधानसभा से पारित ही नहीं:राजस्थानी को मान्यता नहीं.
* करणीदानसिंह राजपूत *
सूरतगढ 13 जून 2024.
👍राजस्थानी भाषा:राज्य सरकार में संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन:ओमप्रकाश औझा 👌
राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता व प्रदेश मे राजभाषा का दर्जा दिलाने की मांग को लेकर काफी समय से संघर्षरत भाषा प्रेमी व विख्यात आरटीआई एक्टीविस्ट ओम प्रकाश औझा ने प्रदेश के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा को 11 जून 2024 को एक पत्र भेजा है।
औझा ने पत्र में आरोप लगाया है कि राज्य सरकार के मंत्रालय,विभाग और नौकरशाही तीनों मिलकर राजभाषा के प्रश्न पर भारतीय संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन कर रहे हैं।
औझा ने उल्लैख किया है कि विषयान्तर्गत मैंने पहले भी सभी संबंधित मंत्रालयों और विभागों को पत्र लिखे, लेकिन इस विषय पर एक फौरी कार्यवाही जैसे विषय को राजस्थान सम्पर्क पोर्टल पर डाल देना,विषय को लटकाये रखना और कुछ समय के पश्चात् उसे स्वतः बन्द कर देना,इससे अधिक कुछ नहीं हो पा रहा है।
* मुझे यह लिखने में कोई संकोच नही है कि राज्य सरकार की मशीनरी या तो वस्तुस्थिति को आपको समझाने में असमर्थ है या संबंधित मंत्रालय और राजकीय विभाग अपने को बचाते हुए राजभाषा की मान्यता की जिम्मेदारी एक दूसरे पर डाल रहे है।
*विषय से संबंधित कुछ बिन्दुओं पर मैं आपको इस आशा के साथ , जानकारी देना चाहता हूँ। आप विषय की संवेदनशीलता को ध्यान रखते हुए,पिछले 70 वर्षों से लम्बित मांग पर कुछ निर्णयात्मक कार्यवाही करेगें।
*इस पत्र के साथ ‘‘ हिन्दी भाषा ‘ को राजस्थान की राजभाषा घोषित करते हुए, निम्न दस्तावेज भी संलग्न है । संलग्न एक्ट के हवाले से औझा ने स्पष्ट किया है कि दोनों एक्ट राजस्थान राज्य के गठन से पूर्व प्रचलित राजस्थानी भाषा को दरकिनार करके उसके स्थान पर ‘‘ हिन्दी भाषा ‘‘ को राज्य स्तर राजभाषा घोषित करने के लिए जारी किये गये थे। उपर्युक्त बिन्दु संख्या 2 (क) के अध्यादेश/नोटिफिकेशन को दिनांक 03 दिसम्बर 1952 को हिज हाईनेंस,राज प्रमुख , महाराजा सवाई मानसिंह की अनुमति और हस्ताक्षरों से जारी किया गया था।जबकि,बिन्दु संख्या 2 (ख) के नोटिफिकेशन को राजस्थान के प्रथम राज्यपाल सरदार गुरूमुख निहाल सिंह की अनुमति और हस्ताक्षरों से दिनांक 28 दिसम्बर 1956 को जारी किया गया था। दोनों की विषय वस्तु लगभग एक सी ही है।दोनों में वर्णित है कि अध्यादेशों को राजस्थान विधानसभा द्वारा पारित करवाया जावेगा।
*हिन्दी भाषा को राज भाषा घोषित करने के उपरोक्त दोनों अध्यादेश विधानसभा से पारित नहीं हैं।
- राज्य सरकार के संबंधित विभाग - शिक्षा ग्रुप (5) विभाग, भाषा विभाग और संसदीय कार्य विभाग,तीनों ही मुझे यह जानकारी और दस्तावेज उपलब्ध कराने में असफल हैं कि राजस्थान विधानसभा द्वारा राजभाषा के रूप में हिन्दी भाषा अपनाये जाने का प्रस्ताव या बिल कब पास हुआ था?
राजस्थान विधानसभा के प्रधान सचिव ने गैर जिम्मेदारी का परिचय दिया है। राजस्थान विधानसभा द्वारा पूर्व में पास किए गये प्रस्ताव या बिल के अवलोकन के लिए मैने विधानसभा के प्रधान सचिव महावीर प्रसाद शर्मा आईएस से दिनांक 25 अप्रेल 2024 को विधानसभा पुस्तकालय में प्रवेश की अनुमति मांगी थी,जो कि उनके पीए से मोबाईल पर सम्पर्क करने के पश्चात् भी नहीं मिली।
विधानसभा के ‘‘ राज्य लोक सूचना अधिकारी ‘‘ ने भी जब , एक महीने तक वांछित सूचना और दस्तावेज उपलब्ध नहीं किराये , तो मैने विधानसभा के पोर्टल पर लिखित सूचना के आधार पर , ‘‘ प्रथम अपील अधिकारी ‘‘ महावीर प्रसाद शर्मा,आईएएस के नाम से एक अपील डाक विभाग के मार्फत भेजी। प्रधान सचिव के कार्यालय द्वारा अपील की सुनवाई करना तो दूर की बात है,लिफाफे पर मेरा नाम पढ़ते ही,लिफाफा लेने से ही इंकार कर दिया । लिफाफे पर लिखी पोस्टमैन की टिप्पणी और इण्डिया पोस्ट का सर्टिफिकेट साक्ष्य के रूप में संलग्न है । वर्तमान में राजस्थान की कोई राजभाषा नहीं है - अगर विधानसभा से पूर्व में जारी अध्यादेश पास नही हुवे हैं तो राजस्थान की राज भाषा ‘‘ राजस्थानी ‘‘ ही है , जो कि राजस्थान निर्माण से पूर्व प्रचलन में थी । सन् 1952 और सन् 1956 में जारी अध्यादेशों की वैधता 6 माह ही थी। संवैधानिक प्रावधानों के अन्तर्गत , चूंकि दोनो में से कोई भी नोटिफिकेशन 6 माह की अवधि के दौरान विधानसभा ने पास ही नहीं किया था , इसलिए इनकी वैधता जारी करने के 6 माह के पश्चात् स्वतः ही समाप्त हो चुकी थी । माना जा सकता है कि हिन्दी भाषा राजस्थान की राजभाषा नहीं है ।
राजस्थान सम्पर्क पोर्टल की दयनीय स्थिति - इस पोर्टल के बारे में कहा जाता है कि इसकी मॉनिटरिंग मुख्यमंत्री द्वारा स्वयं की जाती है , लेकिन यह सब कागजों में ही है । मुझे लगता है कि राज्य सरकार द्वारा स्वयं संज्ञान लेते हुए , राजस्थानी भाषा से संबंधित मेरी तीन शिकायतें., जो सम्पर्क पोर्टल पर दर्ज है,उनका भी यही हश्र होने वाला है । अब तक तो नौकरशाही ने इस शिकायतों को इधर-उधर भेजकर मंत्रियों को संतुष्ट कर दिया होगा, जिसमें ये लोग पारंगत है । इन्हें पता है कि संबंधित माननीय मंत्री संवैधानिक और कानूनी मामलों पर आपसे सीधे बात नही करेगें ।
ओम प्रकाश औझा ने आक्रोश व्यक्त करते हुये लिखा है कि मैं राजभाषा के प्रश्न पर राज्य सरकार के रवैये से विक्षुब्ध हूँ । पिछले 70 वर्षों से स्वयंसेवी संगठनों , राजस्थानी भाषा के भाषाविदों , शिक्षाविदों व विद्वानों द्वारा प्रस्तुत सैकड़ों की तादाद में , सरकार को प्रस्तुत ज्ञापन , सचिवालय की फाइलों में दबे पड़े हैं। पिछले 3 वर्षों से जबसे मैं आरटीआई कार्यकर्ता के रूप में राज भाषा की मान्यता के लिए सक्रिय हुआ हूं । राज्य सरकार मुझे भी गोल-मोल जवाब देती है या चुप्पी साध लेती है । मेरे पास अब यही संवैधानिक विकल्प है कि मैं राजस्थान सरकार द्वारा संविधान के उल्लंघन के तथ्य और प्रधान सचिव , राजस्थान विधानसभा द्वारा संसद द्वारा पास किये गये सूचना के अधिकार एक्ट-2005 , के निरादर के तथ्यों को लोकसभा के अध्यक्ष , राज्यसभा के सभापति और भारत सरकार के मुख्य सूचना आयुक्त को स्थिति से अवगत कराऊँ।
मुख्यमंत्री सचिवालय से निवेदन करना चाहता हूँ कि मुुझे चाही गई सूचना व उपरोक्त विषय पर राज्य सरकार की प्रतिक्रिया से जल्द से जल्द अवगत कराने की व्यवस्था की जावे। ऐसा कर दिया जाए तो विवाद को बढ़ने से रोका जा सकता है। हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में इस विषय की न्यायिक व संवैधानिक विवेचना की आवश्यकता भी नही रहेगी।०0०