शनिवार, 15 जुलाई 2023

कांग्रेस यानि मील की लुटिया डूबोने में कारक जो सुधर नहीं रहे.

 




* करणीदानसिंह राजपूत *

सन् 2023 के विधानसभा चुनाव सिर पर हैं। तीन महीने बाकी हैं और लुटिया डुबोने के कारण भी हार का पक्का प्रबंध कर रहे हैं। 

शहर की यातायात व्यवस्था इतनी गई बीती हो गई है कि सड़कों पर पैदल चलने के लिए भी जगह ढूंढनी पड़ती है। रेलवे स्टेशन से सुभाष चौक महाराणा प्रताप चौक भगतसिंह चौक भारतमाता चौक से आगे नेशनल हाईवे तक बुरा हाल है। सुभाष चौक से राठी स्कुल, बीकानेर रोड महाराणा प्रताप चौक से इंदिरा सर्कल तक। रेलवे रोड की सब्जी मंडी जहां जाम जैसी हालत रहती है। महिला सुरक्षा की परवाह नहीं। टकराव से ही निकलने की मजबूरी। सभी देखते हैं। यातायात पुलिस केवर रेहड़ी वालों को कहने करने के लिए। सड़क जाम करने वालों को कुछ नहीं कहती। सभी महाराणा प्रताप चौक पर। यह एक ही पोईंट नहीं है लेकिन इसे ही ड्युटी पोईंट बना कर रख दिया। सेन मंदिर के पास से बैंक गली तक कार और दुपहिया पार्किंग बन गया केवल यातायात पुलिस की अनदेखी के कारण। तहसील चौराहे से महाराणा प्रताप चौक तक सड़क पार नहीं की जा सकती। तहसील चौराहा व्यस्त हैं मगर यहां कभी भी पुलिस नहीं।  भगतसिंह चौक त्रिमूर्ति मंदिर क्षेत्र लापरवाही के बड़े सेंटर। स्टाफ कम है तो भी व्यवस्थित तो किया जा सकता है। महाराणा प्रताप चौक पर ही शाम को सभी की मौजूदगी।

एसपी जो भी आए जब भी आए तब यातायात की ही प्रमुख शिकायत रहती है। सड़कों पर पीली पट्टी पेंट करवाई मगर वहां तक और आगे जाम की हालत पैदा करने वालों दुकानदारों पर कार्यवाही नहीं। पीछे हटने का भी नहीं कहते। जाम लगने पर सिटियां बजती है। कांग्रेस की लुटिया यातायात अव्यवस्था डगमग करती लोगों को लग रही है। मील खुद आकर चौराहों पर रेलवे रोड पर सिटियां बजाए तो हालत सुधरे या फिर एक्शन प्लान बनाये। सड़क जनता के चलने के लिए है। यह सख्ती मील को ही करनी पड़ेगी। 

* मोटर साईकिल उठाईगिरी छीना झपटी मारपीट की घटनाएं बढ गई। 

** नशा फैलता हुआ।

*** नालियां नाले गंदगी भरे। सडांध मारते। नगरपालिका प्रशासन भी मील का और लापरवाह। कितनी अर्जियां कार्यवाही नहीं। ईओ आदि सड़कें सफाई नहीं देखे तो मील खुद देखे। पार्षदों में दम नहीं कि वे अपना वार्ड ही देख लें। 

*** गंदा पेयजल। उसका भी कोई निश्चित समय  नहीं। 

* कार्यालयों में अधिकारी कर्मचारी मौजूद नहीं रहते। आते ही नहीं। जिला कलेक्टर के आवास पर दफ्तर की व्यवस्था होती है। सूरतगढ़ में तो फाईलों को घर नहीं ले जा सकते। मगर दफ्तर में काम नहीं किए जाते तो यह सुधार मील करे या लुटिया डूबती देखते रहें। * सुविधा शुल्क के बिना काम नहीं होते। राजस्व बार संघ आंदोलन का ताजा उदाहरण है

* काम नहीं करते तो हटवाए और डूबती लुटिया बचाए। लेकिन यह सख्ती से ही ह़ो सकता है।

* मुद्दे और भी हैं। दस पंद्रह सालों सज जो थमे हैं वे नहीं करते काम। 

* चिकित्सालय में बुरा हाल है। 

* घग्घर डिप्रेशन में आई भूमि की  कॉलोनिया,नियमों को अनदेखी कर बनी कॉलोनिया और निर्माता जिनमें बड़े नेताओं के परिवार हैं पार्टनर।

* मीडिया के नाम से नगरपालिका भुमि पर अतिक्रमण करने का षड़यंत्र जो पत्रकार हैं नहीं लेकिन मील को सूचित कर अतिक्रमण करने की फिराक में है। मील को मालुम है। नगरपालिका प्रशासन को मालुम है। फर्जीवाड़े में असली पत्रकारों के नाम भी जोड़ दिए ताकि अतिक्रमण में आसानी रहे। अतिक्रमण कर फिर बेचना चाहते हैं। अतिक्रमण शुरू होते ही मील और कांग्रेस दोनों होंगे बदनाम और अतिक्रमण बचा भी नहीं सकेंगे।

* मील और कांग्रेस दोनों देखलें हालात। * इन बिगड़े हालात पर मील अनदेखी करे तो कांग्रेस के निष्ठावान कार्यकर्ता नेता टिकटार्थी जयपुर सूचित कर कांग्रेस को बचाएं। सम्मेलनों में साफ साफ कह दें कि बुरे हालात से बचें और कैसे गंदे हालात से निकलें। 

*मील चुनाव लड़ना चाहते हैं तो असलियत पर आएं गलतियां रही है तो उनमें से निकलें और आगे फंसने से भी बचेंगे तब कोई लाभ मिल पाएगा अन्यथा हर गांव और शहर के हर वार्ड में चैलेंज की स्थिति है।

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