रविवार, 9 अक्तूबर 2022

सूरतगढ़: 2013 व 18 के बाद 2023 में भी भाजपा की जीत के आसार: मील कहां होंगे?

 


 * करणी दान सिंह राजपूत *


सूरतगढ़ सीट श्रीगंगानगर जिले में महत्वपूर्ण विधानसभा है। यहां पर सन् 2003 के बाद से भारतीय जनता पार्टी का दबदबा है। कांग्रेस पार्टी यहां केवल सन् 2008 का चुनाव ही जीत पाई थी। 

सन् 2013 व 2018 के दो चुनाव हारने के बाद भी कांग्रेस पार्टी ने कोई समीक्षा नहीं की। यहां पर 2008 से मील  परिवार ही कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ता रहा है और जीतता हारता रहा है,सो समीक्षा मील परिवार को ही करनी थी।


सन् 2008 में मील परिवार के गंगाजल मील को टिकट मिली और जीत के लिए मील परिवार ने पूरा जोर लगाया तब जाकर यह सीट जीत सके थे। उस समय यह बहुत बड़ा प्रश्न था कि किसी भी प्रकार से वोट प्राप्त किए जाएं और मील परिवार अपने साथ में विधायक का नाम जोड़ सके। जीत के लिए जोर शोर से चलाए अभियान के बाद गंगाजल मील जीत गए और 2008 से 2013 तक विधायक रहे।

इसके बाद में ही मील परिवार की हार होनी शुरू हुई। सन् 2013 में गंगाजल मील कांग्रेस के टिकट पर और राजेंद्र सिंह भादू भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर आमने-सामने हुए। गंगाजल मील तीसरे नंबर पर पहुंचे।दूसरे नंबर पर बसपा के डूंगरराम गेदर रहे। 2013 में जब गंगाजल मील पराजित हुए तब कांग्रेस में नहीं तो मील  परिवार में यह समीक्षा होनी चाहिए थी कि यह हार क्यों हुई?लेकिन लगता है कि यह समीक्षा नहीं हुई और गंभीरता से इस पर विचार विमर्श नहीं हुआ। इसका नतीजा सन् 2018 के चुनाव में भी मील  परिवार को भोगना पड़ा। सन् 2018 के चुनाव में मील परिवार की ओर से हनुमान मील को कांग्रेसी टिकट पर चुनाव मैदान में उतारा गया भारतीय जनता पार्टी के रामप्रताप कासनिया और बसपा के डूंगरराम गेदर सामने थे। रामप्रताप कासनिया जीते। हनुमान मील हारे और डूंगरराम गेदर तीसरे नंबर पर नीचे गए।


 * यहां बहुत सोचने वाली बात है कि कांग्रेस के हनुमान मील  भाजपा के रामप्रताप कासनिया से 10235 वोट से पराजित हुए। रामप्रताप कासनिया को 69032 वोट मिले और हनुमान मेल को 58797 वोट मिले।दोनों के बीच में 10235 वोटों का अंतर है।माने तो यह अंतर बहुत है और अध्ययन करें तो यह अंतर बहुत बड़ा नहीं है। मील परिवार चुनाव के अंतिम दिनों में यदि चुस्त-दुरुस्त होकर लड़ता और 5125 वोट अधिक प्राप्त कर लेता तो यह हार जीत में बदली हुई होती। मील परिवार के हनुमान मील जीत जाते।यहां आंकड़े के हिसाब से थोड़ा समझना जरूरी है। हनुमान मील को 58797 वोट मिले जिसमें 5125 वोट जोड़ें यह आंकड़ा 63922 बनता है। रामप्रताप कासनिया को 69032 वोट मिले उसमें से 5125 वोट घटा करके देखें तो आंकड़ा 63907 वोट बनता।


** मील परिवार को चुनाव के समय मतदान के दिन तक की 1 सप्ताह की सुस्ती में यह चोट लगी। अनेक लोगों का मानना है कि कांग्रेस के ही लोगों ने कांग्रेस को हराया।समीक्षा करते के वह कौन लोग थे जिन्होंने कांग्रेस को पराजित करने में भूमिका निभाई और वह भूमिका किस तरह की थी? कांग्रेसी लोगों ने मील परिवार को आखिर क्यों हराया?मील परिवार की व्यक्तिगत रूप से क्या खामियां रही जिसके कारण लोग नाराज हुए।  यह बहुत बड़ा प्रश्न है जिस की समीक्षा उस समय की जाती तो कुछ नये कदम बढ़ाने में आसानी होती।

सन् 2018 के चुनाव में मील परिवार की और मीडिया के बीच सामंजस्य नहीं था प्रचार में कमी थी और यह दूरियां 2018 के बाद में और अधिक बढ़ गई है। पहले मीडिया के कुछ लोग नाराज थे या दूर थे। अब मीडिया के संबंध किन्ही कारणों से बहुत ज्यादा दूर हो गए हैं और ये दूरियां रोजाना बढती जा रही है। यहां करे कोई और भुगते कोई वाली कहावत चरितार्थ हो रही है।

 मील परिवार इस पर गौर करे की जनता भी आपसे दूर मीडिया भी आप से दूर तो यह दूरी कौन बढ़ा रहा है?  दूरी बढ़ने का कोई तो कारण होता है यदि मील सही है तो फिर जनता नाराज क्यों है?मीडिया दूर क्यों है? सन् 2018 का चुनाव का एक कारण कांग्रेसियों की नाराजगी रहा और वह नाराजगी और अधिक बढ गई। मील परिवार के नजदीकी और पार्टी के पदाधिकारी भी नाराज होते चले गए।

 *** दो हजार अट्ठारह के बाद जो हालात बिगड़ते जा रहे हैं और सवाल पर सवाल पैदा होते जा रहे हैं उस पर मील परिवार के दिग्गज गंगाजल मील को गौर करना चाहिए  क्योंकि सूरतगढ़ में वे ही निर्णय लेते हैं। लेकिन कुछ ऐसा हो रहा है जिसके कारण वे उचित कदम नहीं उठा रहे। क्या किसी को बचाने के चक्कर में गंगाजल मील अपना खो रहे हैं? आग अपने कुर्ते तक पहुंच जाए तो कुर्ते को पहन कर नहीं रखा जा सकता चाहे कुर्ता और उसका रंग बहुत प्रिय हो। आग लगी हो तो एक क्षण ही निर्णय का होता है।


* वर्तमान वातावरण में हो सकता है 2023 में मील टिकट भी प्राप्त नहीं कर पाए।हर एक पार्टी जिताऊ कैंडिडेट को ही टिकट देना चाहती है। मील परिवार 2013 में हारा फिर 2018 में हारा। दो बार की हार के बाद में भी समीक्षा नहीं हुई। समीक्षा होती तो मील परिवार यहां शहर और देहात क्षेत्र में सोच समझकर काम करता। कार्यकर्ता और जनता नाराज नहीं होती लेकिन जनता की नाराजगी बढ़ रही है,जिससे मील परिवार की टिकट पर खतरा संभव है।

इसका एक बहुत बड़ा कारण है कि मील परिवार के अलावा टिकट मांगने की दावेदारी अधिक ताकतवर ढंग से डूंगरराम गेदर के पक्ष में हो रही है।.डूंगरराम गेदर बसपा टिकट पर 2013 के चुनाव में दूसरे नंबर पर थे और दो 2018 के चुनाव में तीसरे नंबर पर थे लेकिन अब वे कांग्रेस पार्टी में है। गेदर का कद मील परिवार के कद से बहुत ऊंचा हो गया है। पहले उन्हें शिल्प एवं माटी कला बोर्ड का उपाध्यक्ष बनाया गया और अब उन्हें अध्यक्ष बना दिया गया है इससे सूरतगढ़ सीट पर डूंगरराम गेदर का दबदबा बहुत अधिक हो गया है। यहां यह भी स्पष्ट कर देते हैं कि दो हजार अट्ठारह के चुनाव में हनुमान मील को 58797 वोट मिले थे 30.75% वोट। डूंगरराम गेदर को 55543 वोट मिले थे 29.05 % वोट। संख्या के हिसाब से यह अंतर 3254 वोट था। टिकट के मामले में यह अंतर बहुत अधिक नहीं है।कांग्रेस पार्टी का सूरतगढ़ सीट का पैनल बनता है तो उस पैनल में डूंगरराम गेदर का नाम हर हालत में होगा। पद और कद के हिसाब से डूंगर राम को कांग्रेस की टिकट मिले तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

* इन सभी परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए मील परिवार के दिग्गज पुरुष गंगाजल मील को संपूर्ण गतिविधियों की समीक्षा करनी चाहिए। सूरतगढ़ विधानसभा क्षेत्र में सभी को मालूम है कि चाहे जनता से संपर्क हो चाहे प्रशासनिक कार्यवाही हो वहां पर गंगाजल मील की ही चलती है। यदि कुछ होगा तो दिग्गज का समय पर उचित निर्णय नहीं लेना कारण बनेगा।


*गंगाजल मील को कोई भी व्यक्ति समझा नहीं पा रहा है कि आखिर शहर और गांव में उनके विरुद्ध वातावरण क्यों बनता जा रहा है। इस वातावरण का असर सीधे तौर पर मील परिवार के टिकट पर होगा। कांग्रेस पार्टी में मील परिवार चाहे कितना ही प्रभावशाली हो लेकिन जब बात हार और जीत की होगी तो कांग्रेस पार्टी भी जिताऊ समझे जाने वाले व्यक्ति को ही प्राथमिकता देगी। मील साहेब के पास में सही मायने में तो अब केवल सात आठ महीने का ही समय बचा है। इन सात आठ महीनों में गंगाजल मील गौर करें और जीत के लिए अपने आसपास बदलाव कर शक्ति बनाएं तो भाजपा से टक्कर हो सकती है।यहां पर स्पष्ट रूप से नगर पालिका और पंचायत समिति के कार्यों में सख्त निर्णय लेने की आवश्यकता है।क्या निर्णय लेने हैं यह केवल मात्र गंगाजल मील को तय करना है। यह तभी कर सकते हैं जब चश्मा उतार कर अपनी आंखों से देखें। 

मील साहेब को भारतीय जनता पार्टी को यह सीट देनी है या भारतीय जनता पार्टी से टक्कर लेनी है? ०0०






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