शनिवार, 16 अप्रैल 2022

लोगों की परेशानियों में एक मिनट नहीं दिया वे चेहरे निकलने लगे चुनाव के लिए बाहर।

 



* करणीदानसिंह राजपूत *


सूरतगढ़ की समस्याओं और फैले भ्रष्टाचार से परेशान जनता के लिए जिनके पास 1 मिनट का समय नहीं था और अभी भी नहीं है वे लोग भी चुनाव के लिए अपना चेहरा दिखाने लगे हैं।


जागरण हो शपथ ग्रहण हो कोई भी कार्यक्रम हो जिसमें भीड़ हो या शहर की प्रमुख संस्थाएं हों वहां उपस्थित होने में नहीं चूकते। उनको यह लगता है कि जनता तो नासमझ और अज्ञानी है इसको जब चाहे भुलावे में रखकर वोट ले ही लेंगे और जीत भी हासिल कर लेंगे। उनको लगता है चुनाव की जीत तो सड़क पर पड़ा रूपया है जिसे उठा कर पर्स में ही डालना है। 

मेरा यह मानना है कि जानता को भोला नहीं समझा जाए। खुद को बेवकूफ समझें क्योंकि इससे अधिक वजन दार शब्द और कोई है नहीं। सूरतगढ़ में रहते हुए भी कभी जनता के लिए एक मिनट का समय नहीं दिया। जनता के चिल्लाने की आवाजें घरों कोठियों में पहुंची मगर जो सुनकर भी बाहर नहीं  निकले। जनता का चिल्लाना बकवास लगा और समय देना फिजूल बेकार लगता रहा। 


वे लोग अब कहीं आरती में कहीं जागरण में कहीं शपथ ग्रहण में तो कहीं अन्य प्रकार के कार्यक्रमों में अपना चेहरा दिखाने लगे हैं। क्या सच में चेहरा दिखाने मात्र से ही वोट मिल जाएंगे जीत भी जाएंगे? 

अब अच्छी तरह से सोचा जाए। अब चेहरा दिखाने वाले बेवकूफ हैं या जनता है? जनता पूरी तरह से समझदार है और समस्याओं और भ्रष्टाचार को भोगते भोगते पक भी चुकी है।

ऐसे चुनावी चेहरों को आने वाले चुनाव में ठुकराएगी। वह ठोकर मामूली नहीं होगी। ठोकर का जो धक्का लगेगा वह कई सालों तक याद रहेगा।

 * सूरतगढ़  की टूटी हुई सड़कें ठोकरें झटके, नालियों में गंदगी,कचरा भरी हुई सड़कें गलियों में कचरे के ढेर,तालाब के अंदर गंदगी,सीवरेज के ढकनों की ठोकरें और नलों में सीवरेज की गंदगी,गरीबों के घरों पर जेसीबी से तोड़फोड़ और बड़े लोगों का सड़कों के हक की जमीन पर बीसियों फुट आगे तक का अतिक्रमण। हाउसिंग बोर्ड पर कार्यवाही नहीं।

बदहाल बदबूदार पूरा शहर ऊपर से भ्रष्टाचार  के समाचारों को पढ कर भी घरों में रहे जनता के साथ खड़े नहीं हुए।

* सोशल मीडिया पर भी जनता की परेशानियों के समाचार निरंतर लगते रहे हैं मगर यह चुनावी चेहरे इतने स्वार्थी रहे हैं कि कभी किसी ने जनता के हित में आवाज उठाना तो दूर रहा कभी सोशल मीडिया पर भी लाइक तक नहीं किया, टिप्पणी करना तो बहुत दूर की बात है। 

*रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड दो ऐसे स्थान है जहां से लोग शहर में प्रवेश करते हैं। सूरतगढ़ का नाम बहुत बड़ा है मगर रेलवे स्टेशन से शहर में प्रवेश करते ही सुभाष चौक पर  ठोकरें झटके  मिलते हैं और बस स्टैंड पर बदबू मिलती है। ऐसा स्वागत। ये ठोकरें झटके बदबू पूरे शहर में मगर स्वार्थी नेता नहीं बोले।

सूर्योदय नगरी शहर की चालीस प्रतिशत आबादी में शहरी चिकित्सालय में चिकित्सक नहीं। पेयजल एक दिन छोड़कर यानि कि महीने में पन्द्रह दिन। पानी का वितरण समय निश्चित नहीं और वह भी कम। एक भी नेता ने इसके लिए मुंह नहीं खोला। अब चुनाव के लिए चेहरा सड़क पर और हर कार्यक्रम में हाजिर।

* सूरतगढ़ को जिला बनाने की मांग और यहां पर अतिरिक्त जिला कलेक्टर का पद पहले 18 महीने खाली रहा फिर एक अधिकारी कुछ महीने और अब फिर करीब डेढ साल से पद खाली। एक नेता नहीं बोला और किसी पार्टी ने सरकार को चेताया नहीं।

* नगरपालिका ने जेठमल मूंधड़ा लायब्रेरी पर पार्क पर कब्जा जमा लिया। उसे कबाड़ और गैराज बना लिया। कीमती हजारों दुर्लभ पुस्तकें गायब हो गई। ये सब छपते रहे मगर स्वार्थी नेता चुप रहे। * सूरतगढ़ शहर में बढते नशे शराब और स्मैक पर चुप। सूरतगढ़ के डेहरों और गांवों में जिप्सम का अवैध खनन और परिवहन पर भी नेताओं की चुप्पी रही।


अब चुनाव आने वाले हैं इसलिए चेहरा दिखाने को हाजिर हो रहे हैं। इसे ढोंग और पाखंड कहने के अलावा कोई शब्द नहीं है। 

पार्टियों से टिकट मांगने और चुनाव लड़ने पर कोई रोक नहीं है। स्वार्थी भी लड़ेंगे लेकिन वोट देना न देना जनता की ईच्छा पर होगा।०0०






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