बुधवार, 9 जून 2021

शहीद गुरुशरण छाबड़ा जैसे सपूत विरले ही पैदा होते हैं:शराबबंदी आमरण अनशन में बलिदान.जयंती विशेष.

 







* करणीदानसिंह राजपूत *

 सूरतगढ़ 9 जून 2021.


*व्यक्ति इस संसार में मुट्ठी बंद करके आता है,  हाथ पसारे जाता है, ना कुछ लेकर आया ना लेकर जाता है, खाली हाथ आया खाली हाथ जाना यही प्रकृति का अटल दस्तूर है"

            सूरतगढ़ विधानसभा बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक रामप्रवेश डाबला ने शहीद पूर्व विधायक गुरूशरण छाबड़ा की जयंती पर कहे।

 आज सुबह 9 बजे  गुरशरण छाबड़ा शहीद स्मारक (राजकीय चिकित्सालय के आगे)  शहीद पूर्व विधायक गुरूशरण छाबड़ा की प्रतिमा पर शहर के विभिन्न दलों संगठनों के गणमान्य लोगों ने माल्यार्पण किया।


डॉक्टर टी एल अरोड़ा, वरिष्ठ अधिवक्ता निरंजन दास सेतिया, कांग्रेस के बलराम वर्मा, पार्षद मदन ओझा, कामरेड लक्ष्मण शर्मा,  संघर्ष समिति की महिला अध्यक्ष मोहनी देवी शर्मा, मीथलेस कंवर, सरोज वर्मा, बाबु सिंह खींची, अरोड़ वंश समाज के अध्यक्ष चंद्रप्रकाश जनवेजा संघर्ष समिति  के वरिष्ठ उपाध्यक्ष प्रेम सिंह औड, फौजी लीलाधर स्वामी, पत्रकार मनोज स्वामी, महावीर भोजक,अमित मोदी, मुरलीधर उपाध्याय, महेश योगी, मुरलीधर पारीक व गुरशरण छाबड़ा शहीद स्मारक समिति के अध्यक्ष बलदेव तनेजा आदि ने प्रतिमा को पुष्प माला पहना कर नमन किया।


          करोना महामारी के मद्देनजर शहीद छाबड़ा जी का जयंती कार्यक्रम सीमित रखा गया था। 

इस अवसर पर वक्ताओं ने कहा कि छाबड़ा जी हमारे आदर्श हैं, उनकी ईमानदारी की मिसाल शायद धर्म ग्रंथों में भी नहीं मिलेगी। सूरतगढ़ क्षेत्र को राजकीय महाविद्यालय की सौगात देकर क्षेत्र में उच्च शिक्षा के द्वार खोलने का श्रेय शहीद गुरशरण छावड़ा को जाता है। हमें उनके जीवन चरित्र से बहुत कुछ सीखने को मिलता है।

         वरिष्ठ कांग्रेसी नेता बलराम वर्मा ने शहीद छाबड़ा के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि सरकार ने उनकी पूर्ण शराबबंदी की मांग को नहीं मानकर अपनी ही पार्टी के एक समर्पित ईमानदार नेता को राजाशाही हठधर्मिता की भेंट चढ़ा दिया। छाबड़ा जी का जन्म 9 जून 1949 को व शहादत 3 नवंबर 2016 को हुई। 

           वर्मा ने कहा कि छाबड़ा जी हमारे संघर्षों के साथी थे, उनका जीवन हमेशा संघर्षों में ही रहा, उनके जीवन में बड़े उतार-चढ़ाव आये, मगर कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी उन्होंने कभी हालात से समझौता नहीं किया, अपने उसूलों और सिद्धांतों के मुताबिक आगे बढ़ते रहे, कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा आज लालटेन लेकर ढूंढने से भी ऐसे महान इमानदार सिद्धांत वादी नेता नहीं मिलते, हम उनकी शहादत को बेकार नहीं जाने देंगे। 

          संघर्ष समिति के संयोजक डाबला ने कहा कि* " *जननी जने तो भक्तजन या दाता या शूर नहीं तो जननी बांझ रहे काहे गवाये नूर* " शहीद गुरशरण छाबड़ा जैसे सपूत विरले ही पैदा होते हैं जो जननी मां की कोख परिवार समाज को धन्य कर चले जाते हैं, अपने लिए सब जिंदा रहते हैं, मगर परहित के लिए शहादत देने वाली कुछ पहुंची हुई महान आत्माएं ही होती है* ।

           *छाबड़ा जी शराब नहीं पीते थे, उनके परिवार में भी शराब नहीं चलती, वह जानते थे कि सबसे ज्यादा राजस्व शराब से मिलता है, जिससे सरकारें चलती हैं मगर उस शराब से कितने घर उजडते हैं, इसकी परवाह सरकारों को नहीं, यह चिंता छाबड़ा जी को थी, इसलिए उन्होंने हालात से कोई समझौता नहीं किया और राजधानी जयपुर में 48 दिन अनशन पर बैठे बैठे ही शहादत को प्राप्त हुये, नमन है ऐसी महान विभूति को। 

          *कबीरा हम आए जगत में, जग हंसे हम रोये, ऐसी करनी कर चले, हम हंसे जग रोये* , *यही खासियत थी उस महान शख्सियत में जिनके किए संघर्ष को आज हम याद कर करके रो रहे हैं, वक्त गुजर जाता है यादें रह जाती है* ।आपातकाल में गुरू शरण छाबड़ा जेल में भी रहे।

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