शुक्रवार, 1 जनवरी 2021

*इक्कीस में भी उग आया नया कांटा * काव्य- करणीदानसिंह राजपूत.

 



इक्कीस में भी उग आया नया कांटा

कांटा है तो चुभेगा ही.

हर साल कोई न कोई 

कांटा उग आता है और

उसे निकालने में

साल गुजर जाता है।


इक्कीस में भी उग आया नया कांटा

शुभकामनाओं के साथ कांटा।

हर कांटे की चुभन तीखी सहन की

परमात्मा का रहा आशीर्वाद।

विश्व के कल्याण की कामना के

मुंह से निकलते पूजन शब्द ही

रक्षा करते रहे हैं हर बार।


जीवन में फूल मांगे ही नहीं

तो फूलों की आशा भी नहीं

कांटो में चल रहे बरसों से

नित नये नये उगते रहे

एक एक निकालते भी रहे।


खुशियों मांगते सभी की

और स्वयं के लिए खुशी मांगना

स्मृति में ही नहीं होता

जब खड़े होते रहे तीर्थ मंदिर में

दाता प्रतिमा के आगे हाथ जोड़े।


इक्कीस में भी सभी का शुभ हो

सभी खुशियों में आनंदित होते रहें

यही कामना है परमात्मा से

नये कांटे को निकालने की

कोशिश में ईश्वर रहेगा साथ

निकल जाएगा यह कांटा भी

और फिर उग आएगा कोई नया कांटा।


जीवन में फूल मांगे ही नहीं 

चल रहे हैं बरसों से कांटों के बीच

कौन संगी कौन साथी होता है कांटों में

कांटे ही होते हैं संगी साथी और

इस साथ का अहसास कराती है

हर चुभन।


इक्कीस में भी उग आया नया कांटा

कांटा है तो चुभेगा ही.

हर साल कोई न कोई 

कांटा उग आता है और

उसे निकालने में

साल गुजर जाता है।

*****

1 जनवरी 2021.




 करणीदानसिंह राजपूत,

स्वतंत्र पत्रकार ( राजस्थान सरकार के सूचना एवं जनसंपर्क निदेशालय से अधिस्वीकृत)

सूरतगढ़. राजस्थान. भारत.

9414381356.

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