सोमवार, 21 दिसंबर 2020

👍 नगर पालिकाओं की बैठकें चर्चा और हंगामों तक सीमित रह जाती है- पार्षद बहुत कर सकते हैं।*

 


* करणीदानसिंह राजपूत *
नगर पालिकाओं की बैठकें सभापति के द्वारा रखे गए प्रस्तावों पर चर्चा और हंगामों के शोरगुल में महत्वपूर्ण मामलों को हल किए बिना समाप्त हो जाती है। अनेक मामले इसलिए बैठकों में आ नहीं पाते जो कस्बों व नागरिकों के लिए महत्वपूर्ण होते हैं मगर सभापति की उन पर रूचि नहीं होती या स्वयं पर किसी प्रकार की आपत्ति या संकट समझ कर एजेंडे में शामिल ही नहीं करते।

नगरपालिका बोर्ड की साधारण बैठकों में सभापति की ओर से रखे गए प्रस्तावों पर राय होती है तब पार्षद चर्चा जोरशोर से करते हैं और खूब ऊंचे स्वर में भी बोलते हैं तथा अपनी राय भी दे देते हैं। प्रस्ताव चर्चा के बाद पारित हुआ माना और लिख दिया जाता है। यदि प्रस्ताव पर पार्षदों की विपरीत राय है तो संशोधन करवाएं और अस्वीकार है तो चर्चा के बाद मत विभाजन करवाएं। इसके लिए पार्षद कहते नहीं। मत विभाजन के बाद स्थिति एक दम स्पष्ट हो जाए कि कितने पक्ष में कितने विरोध में मत हुए का मालूम हो और नोटिंग हो तब दूसरे प्रस्ताव को शुरू होने देना चाहिए।
प्रस्ताव पर नगरपालिका में क्या नियम है यह बैठक में स्पष्ट भी करवाया जा सकता है। बैठक में उपस्थित अधिशासी अधिकारी को नियम बताने और पुस्तक पेश करने का कहकर खुद पार्षद भी नियम पढ कर सही जानकारी ले सकते हैं। अध्यक्ष और अधिशासी अधिकारी को प्रस्ताव बाबत नियम बताने ही होंगे। पार्षदों का इस पर ध्यान ही नहीं होता इसलिए सभापति और अधिशासी अधिकारी अपनी मनमर्जी से प्रस्ताव रखते हैं और पारित होना भी लिखते हैं।
* पार्षद / पार्षदों की ओर से भी प्रस्ताव रखा/ रखे जा सकते हैं। यह बैठक में और पहले पेश किए जा सकते हैं। सभापति की मंजूरी से ही इस प्रकार के प्रस्ताव एजेंडे में शामिल किए जाते हैं। सभापति एजेंडे में शामिल करे या नहीं करे,लेकिन इस प्रकार से रखना जरूर चाहिए।
इससे सभापति की  मनमर्जी पर काफी  रोक लगती है। सभापति नगर में अनावश्यक कार्य नहीं करवा सकता जिससे भ्रष्टाचार भी रुक सकता है। नगरपालिकाओं में कार्य सही हो सके के लिए कार्यों का विभाजन और राय के लिए समितियां बनाने का स्पष्ट नियम है। सभापति को 6 माह में इन समितियों का गठन करने का निर्देश भी है,लेकिन सभापति यह नहीं करते और सारी सत्ता को अपने कब्जे में ही रखते हैं। पार्षदों की ओर से इस पर गंभीरता नहीं होती। सभापति यह कार्य नहीं करे तो निदेशालय में शिकायत की जा सकती है। इसके लिए 6 माह से पहले मांग भी की जा सकती है। बैठक में भी प्रस्ताव लाया जा सकता है।
पार्षदों के लिए महत्वपूर्ण है कि वे एजेंडे के प्रस्तावों पर एक दूजे पार्षदों से अच्छी तरह से अध्ययन और तैयारी कर बैठक में शामिल हों। 00
सामयिक लेख.
करणीदानसिंह राजपूत.
स्वतंत्र पत्रकार ( सूचना एवं जनसंपर्क निदेशालय, राजस्थान सरकार से अधिस्वीकृत)
सूरतगढ़.
94143 81356.
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मेरी इंटरनेट साइट पर बहुत मैटर है। उसे अवश्य ही देखते रहें।
करणी प्रेस इंडिया
Karni press india
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