सोमवार, 16 नवंबर 2020

* राष्ट्रीय प्रेस दिवस- हम पत्रकार कितने शक्तिशाली या कितने खोखले हुए?

 


- करणीदानसिंह राजपूत -

राष्ट्रीय प्रेस दिवस देश में केवल पत्रकार आपस में स्टीकर बधाई का लगाकर मान लेते हैं कि हम पत्रकारों ने एक दूसरे को बधाई दी शुभकामनाएं दी।
बड़े नेता जिनके पास सत्ता है वे ऊंचे से ऊंचे पद वाले भी प्रेस को अपने भाषण में जो मुश्किल से चार पांच मिनट का होता होगा बधाई देते हैं।
प्रेस दिवस पर इतनी समीक्षा जरूर होनी चाहिए कि पिछले 1 वर्ष में हम पत्रकार लोग कितने मजबूत हुए या कितने खोखले हुए।

पत्रकार साथियों को आश्चर्य नहीं होता की प्रेस की सुरक्षा और विकास होना चाहिए वहीं पर अखबारों के मालिक ही पत्रकारों को बुरी तरह से कुचलने में लगे हुए हैं।
पत्रकारों को अचानक निकाल कर वे पत्रकार के पूरे परिवार की रोजी-रोटी ही नहीं छीन लिए ले रहे बल्कि अनेक प्रकार के कार्य जिनमें शिक्षा चिकित्सा पारिवारिक जिम्मेदारियां होती हैं वे सभी कुचल देते हैं।
आश्चर्य यह भी है कि जो ऐसी क्रूरता करते हैं वे पत्रकारिता विकास के बड़े-बड़े पुरस्कार भी ग्रहण कर लेते हैं। आखिर पत्रकारिता पुरस्कार ऐसे अखबार मालिकों को क्या सोच और समझ कर दिया जाता है? केवल अखबार की संख्या बढ़ाने अखबार के संस्करण बढ़ाने को ही पत्रकारिता का विकास माने? अच्छे खासे पत्रकारों को अचानक घर बैठा देना? कौन से पत्रकारिता विकास के कार्य हैं?
दुर्भाग्य से इस प्रकार के पीड़ा जनक समाचार भी अखबार प्रकाशित नहीं करते। हाल ही में तूफान मचाने वाले दो दैनिकों ने अपने अच्छे खासे चलते हुए कार्यालय बंद कर दिए। छोटे शहरों में जो कार्यालय थे उनको भी बंद कर दिया। पत्रकारों से कहा गया कि वे कंप्यूटर लैपटॉप पर अपने घर बैठ कर के ही समाचार बनाएं भेजें।
अखबारों पर कौन सी विपदा आ गई थी कि अचानक दफ्तर बंद किए गए और इतने से भी जी नहीं भरा तब अनेक पत्रकार साथियों को अचानक नोटिस देकर अग्रिम वेतन देकर  घर भेज दिया गया।
यह कानूनी प्रक्रिया हो सकती है कि 3 महीने का नोटिस हो या 3 महीने का अग्रिम वेतन हो लेकिन सवाल यह पैदा होता है कि जो करोड़ों रुपए का साम्राज्य स्थापित हुआ देशभर में जमीन खरीदी गई उन पर अखबारों के भवन बनाए गए उनमें पत्रकार साथियों का भी योगदान रहा। दिन रात की मेहनत पसीना नहीं एक प्रकार से खून से खींच कर अपने घरेलू कार्य छोड़कर यहां तक की बीमारी में और मृत्यु तक में घर के कार्य छोड़ कर जिन पत्रकारों ने अपना संपूर्ण जीवन लगाया। उनको तिनके की तरह निकाल कर फेंक दिया गया।
अखबार के मालिकों की ओर से क्रूरता दमन करने में कोई कमी नहीं रखी गई। अखबारी लाइन वाले और इससे जुड़े हुए प्रसार मुद्रण आदि के काम में लगे हुए कर्मचारियों को भी दूर-दूर तक स्थानांतरित किया गया था कि वे मजबूर होकर  काम छोड़कर अपने आप ही चले जाएं।
इस क्रूरता में अखबार के मालिकों को कामयाबी भी मिली। यह पीड़ा न जाने कितने पत्रकारों ने और अखबारी कर्मचारियों ने भोगी और आगे भी भोगेंगे क्योंकि बड़े अखबार से जुड़ने का एक सपना सभी में होता है इसलिए बड़ा अखबार जब पीड़ा देता है तो चुपचाप सहन कर लेते हैं।
इस प्रकार के क्रूरता का दमन का जो रास्ता अखबार के मालिकों की ओर से संचालकों की ओर से अपनाया जाता है उसका विरोध किया जाना चाहिए।
ऐसा होता है कि यह कदम कैसे उठाया जाए जो कोई आगे बढ़कर कदम उठाना चाहता है उसका दमन तुरंत ही कर दिया जाता है।

ऐसी स्थिति में राष्ट्रीय प्रेस दिवस का चयन होना चाहिए कि आगे न पीछे देशभर में इसी दिन एक साथ सभी अखबारों में काम बंद और लगातार काम बंद जैसे कदम उठाए जाएं ताकि अखबार के मालिकों को एहसास हो के प्रजातंत्र प्रणाली वाले देश में उनके खुद के अखबारों में दमन की नीति अपनाई जाती है।

अखबार मालिक समझें सोचें और हर पत्रकार हर कर्मचारी को अपना समझे एक परिवार की तरह प्रेम और प्यार प्रदान किया जाए सहयोग किया जाए।००
राष्ट्रीय प्रेस दिवस. 16 नवंबर 2020.




करणीदानसिंह राजपूत,
स्वतंत्र पत्रकार ( राजस्थान सरकार के सूचना एवं जनसंपर्क निदेशालय से अधिस्वीकृत)
सूरतगढ़ ( राजस्थान)
94143 81356.
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