शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2020

👌 गांधीगिरी के नाम से लोगों पर सरकारी अत्याचार दमन बंद हो. सामयिक लेख -- करणीदानसिंह राजपूत --


कोई तुम्हारे एक गाल पर थप्पड़ मारे तब दूसरा गाल भी आगे करदो- गांधीगिरी का यह सिद्धांत सरकारी अत्याचार और दमन का पर्यायवाची बन गया है। मुगलों और अंग्रेजी शासन के अत्याचारों दमन के बाद मिली स्वतंत्रता के 73 साल बाद भी जनता पर दमन अत्याचार जारी है।

आजादी के बाद अपने ही लोग एवं अपनी ही गांधीवादी सरकारें और अपने ही नियम कानून।
गांधीगिरी का सिद्धांत कोई तुम्हारे एक गाल पर थप्पड़ मारे तब दूसरा गाल भी आगे करदो- गांधीगिरी के इस सिद्धांत का सरकारीकरण हो गया।
सरकार एक गाल पर थप्पड़ मारती है। आप चाहे दूसरा गाल आगे नहीं करें। सरकार दूसरे गाल पर भी थप्पड़ मार देती है।
* गांधीगिरी में खडे़ रहते हैं तो पिछवाड़े पर नीलें जम जाती हैं।
👌 सरकार की और जनता की गांधीगिरी में बोलने देखने और पालन करने में अंतर है।
* लोकतंत्रिक देश में शिक्षा चिकित्सा आवास रोजीरोटी रोजगारनौकरी आवागमन साधन न्याय आदि मांगने पड़ते हैं और मांगने पर सरकारें डंडे से धुनती है। ऐसे मामलों में गांधीगिरी वाला धरना प्रदर्शन भी गांधीवादी सरकारों को अच्छा नहीं लगता।

सरकारी नौकरी में अच्छे वेतन भत्ते आवास सुविधाएं लेने के बावजूद अनेक अधिकारी कर्मचारी समय पर काम नहीं करते और रिश्वत लेते हैं। एक विभाग भी ऐसा नहीं रहा जिसमें रिश्वतखोरी और कमीशनबाजी नहीं हो। हर विभाग में लूटखसोट कायम हो गई। बैंकों के घोटाले करोड़ों का गोलमाल और आम आदमी को चक्कर पर चक्कर। अनुदान पर भी कमीशन।

राजनैतिक दलों में भी गरिमा लीर लीर हो रही है। दलों के संविधान तालों में बंद और चापलूसों का अपने खास का पदों पर मनोनयन। चुनाव में बढते भ्रष्टाचार को रोक नहीं पाए उल्टा अपराधीकरण बढता गया। चुनाव में उतरने से पहले टिकट लेने वास्ते लाखों करोड़ों के लेनदेन और अस्मिता की सौदेबाजी हो जाए। तब कौनसे आचरण और संस्कारों की बात की जाए।
ये सब विष गांधीवादी सरकारों में पैदा होते रहे और पलते रहे विकसित होते रहे। इस तरह से लोकतंत्र की चुनाव प्रणाली हो तो चुन कर कैसे आएंगें और वे कैसे राज चलाएंगे।
यह सब देख रहे हैं। यह सब भुगत भी रहे हैं।

* देश की आजादी के इतने साल बीत गए अभी तक जनता के समझ में नहीं आया। जनता को किसी ने नहीं समझाया। विद्यालय महाविद्यालय और विश्वविद्यालय सभी सरकारी  और मान्यता शिक्षण संस्थाओं में पाठ्यक्रम सरकारी। जहां यह शिक्षा नहीं कि अत्याचार दमन पर कोई सवाल उठाने की शिक्षा हो। जनता विमूढ़ सी हुई बेबस ताक रही है। कुछ बोली और मुंह खोला तो लट्ठ पड़ा।
* सरकार अलग अलग परिभाषा क्यों समझाए?
👌 यह लोकतंत्र हैं जिसमें भ्रष्टाचार और अत्याचार की रोजाना सैंकड़ों कथाएं सामने आती हैं। सभी स्वयं को देशभक्त धार्मिक संस्कारित बताते हैं।
👌 हम अपने ही हाथों से डंडे से अपनी ही पिटाई कर रहे हैं और आगे भी यही चलता रहेगा.
दि.2 अक्टूबर 2020.



* करणीदानसिंह राजपूत,
पत्रकार,( राजस्थान सरकार के सूचना एवं जनसंपर्क निदेशालय से अधिस्वीकृत)
सूरतगढ़। ( राजस्थान)
94143 81356.
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करणीदानसिंह राजपूत.
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