शनिवार, 2 जून 2018

विपक्षी एकता के बीच मोदी का घटता जनाधार


* विशेष रपट - रमेश छाबड़ा *

2017 में यूपी विधान सभा चुनाव में जो प्रचंड बहुमत बीजेपी को मिला तो कहा गया कि विपक्ष 2019 को तो  भूल ही जाय और अब 2024 की तैयारी करे पर एक साल बीतते बीतते 2018 आने पर ऐसा क्या हो गया कि बीजेपी यूपी में एक के बाद एक चुनाव हार रही है।मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ स्वयं अपनी गोरखपुर सीट नहीं बचा पाये और न उपमुख्यमंत्री फूलपुर सीट बचा सके। इस हार पर उस समय मुख्यमंत्री योगीआदित्यनाथ ने कहा था कि वे अति आत्म विश्वास के कारण ये सीटें हारे हैंअब जब वहां कैराना की लोकसभा सीट भी बीजेपी हार चुकी है और नूरपुर विधान सभा सीट पर एसपी ने कब्ज़ा कर लिया है देखना होगा कि अब योगी इस पर क्या कहते हैं ।  बात सिर्फ यूपी की ही नहीं अन्य राज्यों में भी हाल ऐसा ही नज़र आता है।बिहार में जिस लालू को जंगल राज कह कर बदनाम किया जा रहा है उसकी पार्टी ने सुशासन बाबू की पार्टी जेडीयू को जोगी हाट  में भारी अंतर से पटकनी दी है ।

अभी जिन 11 विधान सभा सीट के चुनाव हुए उनमे बीजेपी सिर्फ एक सीट जीत सकी है। 2014 के बाद विभिन्न राज्यों में जिन लोकसभा सीटों पर चुनाव हुए उनमे 13 ऐसी लोकसभा सीटें थी जिन पर बीजेपी काबिज थी पर उप चुनाव के बाद उनमे से 9 सीटें बीजेपी हार चुकी है।अभी अगले  6 महीने में राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ विधान सभाओं के चुनाव होने है।इन दिनों जो वहां से सूचनाएं और सर्वे की रिपोर्ट्स आ रही है  उनके अनुसार राजस्थान और मध्यप्रदेश में कांग्रेस की वापसी के संकेत हैं  इसका असर भी 2019 पर दिखाई दे सकता है। कर्नाटक  में विधान सभा चुनाव के बाद में जिस तरह राज्यपाल के पद का दरुपयोग हुआ और आखिर सुप्रीम कोर्ट के आदेश से जेडीएस कांग्रेस सरकार अस्तित्व में आयी उससे भी बीजेपी नेतृत्व की भद्द पिटी है।इस का एक परिणाम ये हुआ कि वह प्रमुख विपक्षी एक हो गए।हर जगह एक के खिलाफ एक उम्मीदवार उतारने की बातें हो रही हैं।

मोदी की लोकप्रियता का ग्राफ भी जो 2014 में 36 प्रतिशत था जो अब घट कर 34 रह गया है तथा राहुल का ग्राफ जो 2017 में मात्र 9 प्रतिशत था अब बढ़ कर 24 प्रतिशत हो गया है जो राहुल की स्वीकार्यता बढ़ने का संकेत है। 

कुल मिला कर इस समय यही लगता है कि मोदी के लिये 2019 का सफर बहुत आसान नहीं रह गया है।


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