रविवार, 1 मई 2016

मजदूर नेताओं का संस्थानों के सेठों से गठजोड़ कौन तोड़े:


- करणीदानसिंह राजपूत -
मजदूर दिवस 1 मई को सरकारी व गैर सरकारी संस्थानों में छुट्टी रहती है ताकि मजदूर कामगार इस दिन समारोह आयोजित कर सकें आपस में मिल कर अपनी बात सांझी कर सकें।
कई बार 1 मई को रविवार आ जाता है। सरकार और संस्थानों को अवकाश घोषित नहीं करना पड़ता। छुट्टी पर छुट्टी पड़ जाती है।
इस बार भी ऐसा ही हुआ है। रविवार के कोटे में मनाओ समारोह और करो मजदूर हित की बात।
मजदूरों के अनेक संगठन। राजनैतिक दलों की विचारधारा से बन गए संगठन। नेताओं के आपस में विचार न मिलने से बन गए कितने ही संगठन।
अब अधिकांश संगठन मजदूरों की बात नहीं करते वे अपने बड़े नेताजी की बात करते हैं या फिर संस्थान के मालिक सेठ की।
आज मजदूर अलग अलग है,संगठन अलग अलग है मगर यूनियनों के नेता और संस्थानों के मालिक एक हैं।
यह सच्च है लेकिन इस गठजोड़ को तोड़े कौन?
नेतागण तो चाहते हैं कि यह फूट बनी रहे।
मजदूर एक हो जाएगा तो उसकी ताकत को कोई तोड़ नहीं पाएगा।
पहले ताकत रही जिसके कारण समारोह होते जूलूस निकाले जाते और अखबारों में बड़े बड़े लेख छपते। कई अखबार परिशिष्ठ निकालते। मजदूरों की बातें छपती कहानियां छपती और परेशानियां छपती। बड़ी बड़ी संस्थानों के मालिक प्रबंधक भय खाते और कुछ छप जाता तो सुधार करते।
अब मजदूर दिवस पर कहां छपते हैं लेख और कौन निकालता है परिशिष्ठ।
यही कारण हालात उजागर करते हैं कि मजदूर समझें और एकता का निर्णय करें।



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