सोमवार, 1 फ़रवरी 2016

आपातकाल के शांतिभंग बंदियों को पेंशन दिए जाने की मुख्यमंत्री से मांग:

आपातकाल लोकतंत्र रक्षा सेनानी संगठन संयोजक ने एडीएम के मारफत ज्ञापन दिया:
सूरतगढ़,1 फरवरी। आपातकाल लोकतंत्र रक्षा सेनानी संगठन ने राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधराराजे से मांग की है कि आपातकाल में मीसा रासुका बंदियों की तरह शांति भंग में जेलों मे बंद रहे लोगों को भी पेंशन व मेडिकल सुविधा दी जाए। संगठन के संयोजक करणीदानसिंह राजपूत ने अतिरिक्त जिला कलक्टर सूरतगढ़ के माध्यम से यह ज्ञापन मुख्यमंत्री को भिजवाया है। 
संयोजक ने अतिरिक्त जिला कलक्टर को उस समय की हालत से अवगत करते हुए जानकारी दी कि सूरतगढ़ से 12 लोगों को शांतिभंग में व 12 लोगों को रासुका में गिरफ्तार किया गया था।
        ज्ञापन में लिखा गया है कि शांति भंग के तहत जेलों में बंद रहे कार्यकर्ताओं को आपने जयपुर जन सुनवाई दिनांक 3 फरवरी 2014 को आपने आश्वस्त किया था। इसके बाद राजस्थान विधान सभा में माननीय मंत्री गुलाबचंद कटारिया ने एक जवाब में बताया था कि सरकार इस पर विचार कर रही है। 
माननीय युनुस खानजी ने भी राजस्थान के प्रभारी अरूण राय खन्ना जी से भेंट कर कार्यकर्ताओं को आश्वस्त किया था कि शीघ्र ही इस पर निर्णय घोषित किया जाएगा। ओंकारसिंह लखावत जी आदि ने भी समय समय पर कार्यकर्ताओं को आश्वस्त किया कि मुख्यमंत्री वसुंधराजी विचार कर रही हैं।
        संयोजक ने लिखा है कि यह निर्णय शीघ्र ही घोषित किया जाए ताकि जो वृद्धावस्था में हैं वे लाभ उठा सकें।
चूंकि यह अत्याचारी घटना 41 वर्ष पूर्व हुई थी। आपातकाल में बंदी रहे
जीवित लोगों की उम्र इस समय 60 वर्ष से अधिक है और कई 90-95 वर्ष के  लोग बीमार व लाचार हैं। अनेक लोग यह संसार भी छोड़ चुके हैं जिनके पीछे उनकी पत्नियां बहुत बुरे हालात में हैं। अनेक कार्यकर्ता व उनकी पत्नियां संसार छोड़ चुके हैं।
आपातकाल में भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धाराओं 107,151,116/3 आदि
में शांति भंग में भी अनेक कार्यकर्ताओं को बंदी बनाया गया व जेलों में
ठूंस दिया गया था। उस समय पुलिस और प्रशासनिक मजिस्ट्रेट तत्कालीन सरकार के दिशा निर्देशों के तहत ही कार्य कर रहे थे।
शांति भंग अधिनियम में भी जेलों की यातनाएं कम नहीं थी। जेलों में महीनों तक बंद रहे कार्यकर्ताओं का जो नुकसान हुआ और व्यवसाय आदि चौपट हुआ उसे वापस जमाया नहीं जा सका।
आपातकाल का विरोध करने वाले अनेक लोग बीपीएल परिवारों में हैं तथा रहने को मकान तक नहीं है।
आपसे अग्रह है कि उस समय शांति भंग कानून में बंदी बनाए गए लोगों को भी पेंशन सुविधा प्रदान की जाए ताकि शेष जीवन शांतिमय बीता सकें।
संयोजक ने यह जानकारी भी दी है कि सूरतगढ़ एक मात्र स्थान था जहां पर आपातकाल के विरोध में  27 जून 1975 को आम सभा हुई थी। यहां के बंदी बनाए गए कार्यकर्ताओं को श्रीगंगानगर बीकानेर अजमेर आदि जेलों में रखा गया था।
श्रीगंगानगर जेल में तो 15 अगस्त 1975 को आमरण अनशन आँदोलन भी हुआ औरसितम्बर में राज्य सरकार ने सभी को अधिकारिक तौर पर राजनैतिक बंदी मानतेहुए आदेश जारी किया था।

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