रविवार, 27 दिसंबर 2015

पत्रकार वार्ता में शालीनता और मर्यादा भी जरूरी


- करणीदानसिंह राजपूत -
पहले बड़े बड़े शहरों में ही पत्रकार वार्ताओं का आयोजन होता था लेकिन समय की करवट और अखबारों के जिला व उपखंड तथा तहसील सतर पर प्रकाशन होने के कारण जानकारी देने लेने के लिए राजनैतिक सामाजिक समाजसेवी संगठनों की ओर से,कभी कभी पीडि़त जन की ओर से और कभी प्रशासन व पुलिस की ओर से भी प्रेस वार्ताओं का आयोजन कर लिया जाता है। इनका एक खास उद्देश्य होता है अधिक से अधिक जानकारी देना और अधिक से अधिक जानकारी लेना।
कई बार ऐसा होता है कि उतावले पन में या किसी अन्य सोच से कुछ पत्रकार अपने अपने दो चार सवाल पूछ कर खिसकते हैं और कुछ दूर जाकर बतियाने लगते हैं। इससे निश्चित रूप से प्रेसवार्ता में खलल पड़ता है। उचित होता है कि आने पूछ लिया तो अन्य कोई पूछे तो उसको जवाब मिले उसका भी इंतजार करलें। संभव है आपके सवाल से अनय का सवाल अधिक वजनदार हो और वह प्रकाशन करने से अखबार की शोभा बढ़े और आपका रूतबा भी बढ़े।
कई पत्रकार प्रेसवार्ता में अन्य पत्रकार के सवाल पर मिली जानकारी या जवाब को अपने अखबार में नहीं छापते। केवल अपने सवाल का ही उत्तर छाप कर कर्तव्य पूरा कर लेते हैं। पाठकों के सामने जानकारी को जानबूझ कर छुपाने से चाहे पत्रकार अपने को बड़ा और चतुर समझे लेकिन जो उत्तर देने वाला है उसके मन में घृणा तो हो ही जाती है। यह भी होता है कि किसी राजनेता को खुश करने के लिए ऐसा कर लिया गया। लेकिन जब दूसरा अखबार वह जवाब या जानकारी छाप देता है तो पाठकों के मन में आता ही है कि जिसने छुपाया वह खरा नहीं है। आम जनता के बीच में अपने खरेपन पर धूल डालने का यह कार्य अच्छा नहीं माना जाता। आयोजक जब कहें कि अब बस है तब उठना ही उचित होता है।
सूरतगढ़ बाबत भी लिखा जाए तो अनुचित नहीं होगा।
गंगाजल मील के विधायक काल की पत्रकार वार्ताओं में यही हुआ कि एक दो सवाल के जवाब लिए और खड़े होकर नास्ते पानी में लग गए। मील से सवाल होते रहते मील जानकारियां देते रहते लेकिन वे उनके अखबारों में नहीं छपी। मील की बातें न छपने का कितना नुकसान मील को हुआ है वह मील ही जान सकते हैं। नास्ता पानी रखा है तो वह दस पन्द्रह मिनट बाद भी खाया पीया जा सकता है।
पूर्व विधायक स.हरचंदसिंह सिद्धु की पत्रकार वार्ताओं में भी यही रूख रहा। बीच में उठना और जो टाईप मैटर दिया वह नहीं छापना। राज्य सतर के मुद्दे भी गायब किए जाते रहे।
विधायक राजेन्द्रसिंह भादू की पत्रकार वार्ता में भी यही हुआ। पत्रकार दो चार सवालों बाद उठ कर पीछे जाकर खड़े हो गए। भादू बैठे रहे लेकिन पत्रकारवार्ता छिन्न भिन्न करदी गई। वार्ता में केवल सूरतगढ़ के ही नहीं विधानसभा क्षेत्र के जैतसर व राजियासर आदि के पत्रकार भी आए हुए थे। उनको भी जानकारियां लेनी थी। सवाल करने थे लेकिन कुछ पत्रकारों को इसमें कोई रूचि नहीं थी। जो उठे उनके सवाल भी विधानसभा क्षेत्र के लायक नहीं थे। उनको इतना तो इंतजार करना ही चाहिए था कि अन्य छोटे स्थानों के पत्रकार आए हैं तो वे क्या पूछते हैं। वहां पर कोई विकास हुआ या नहीं या कोई कमी रही। उन पत्रकारों की जिज्ञासा धरी रह गई। उन्होंने क्या सोचा होगा बड़ी जगह के पत्रकारों के बारे में। जैतसर के एक पत्रकार ने तो कह भी दिया था कि उनके सवाल तो बाकी ही रह गए। भादू पूरी तैयारी के साथ आए थे और विभागों का रिकार्ड भी लाए थे। उसमें बिना महत्व का तो नहीं होगा लेकिन सवाल यह है कि पत्रकारवार्ता में बीच में उठने वालों ने उस रिकार्ड में से बाद में भी कोई सामग्री छापी नहीं।
राजेन्द्र भादू की पत्रकारवार्ता में किए गए दावों के विरूद्ध जवाब में बहुजन समाज पार्टी की पत्रकार वार्ता हुई। उसमें भी कुछ पत्रकारों ने अपना सदा वाला रूख अपनाया। खड़े हुए और पीछे जाकर खड़े हो गए। एक बढ़े अखबार के पत्रकार बीमार हो गए। लेकिन जो प्रिंट मैटर दिया गया उसमें पानी सेम सड़क शिक्षा सहित भादू की कोठी बाबत भी था लेकिन वह सारा ही पाठकों से छुपा लिया गया।
प्रेसवार्ता की उपयोगिता पत्रकारों को समझनी ही चाहिए और आयोजकों से संपन्न की घोषणा का इंतजार भी करना ही चाहिए।

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