गुरुवार, 1 फ़रवरी 2018

बड़ी संख्या में भाजपा कार्यकर्ता राजेन्द्रसिंह भादू को नेता नहीं मानते




उनके सूरतगढ़ विधायक सेवा केन्द्र पर बैठकों में अनेक पदाधिकारी व कार्यकर्ता झांकना भी नहीं चाहते-भाजपा के बड़े नेताओं को यह मालूम भी है।

टिप्पणी- करणीदानसिंह राजपूत

सूरतगढ़,26-4-2015.
अपडेट 5-5-2017.
अपडेट 1-2-2018.

राजेन्द्रसिंह भादू यहां के विधायक तो बन गए लेकिन भाजपा कार्यकर्ताओं के प्रिय नेता नहीं बन पाए। कार्यकर्ताओं की बड़ी संख्या उनको नेता नहीं मानती। उनके विधायक सेवा केन्द्र पर आयोजित होने वाली बैठकों में प्रमुख नेता व कार्यकर्ता शामिल ही नहीं होते जिनमें महिलाओं की भी बड़ी संख्या है। भाजपा के अनेक वरिष्ठ नेता व कार्यकर्ता भादू के विधायक सेवा केन्द्र में जाना तो दूर उधर झांकना तक नहीं चाहते और बड़े नेताओं को इस हालात का मालूम भी है। भाजपा की स्थिति यहां पर निरंतर कमजोर हुई है और कमजोर होती जा रही है। भाजपा के सदस्य बनना अलग बात है कि पार्टी के सत्ता में होने के कारण लोग कागजी सदस्य बन गए हैं। भाजपा की गिरती हालात इस रिपोर्ट की पुष्टि जनता करती है। भाजपा के पुराने नेता व कार्यकर्ता भादू द्वारा पैदा किए जा रहे हालात से पार्टी की बन रही छवि से दुखी हैं, लेकिन नए चुनाव में जुड़े लोग भी परेशान हैं।
विधायक सेवा केन्द्र में होने वाली बैठकों में चाहे वे कितनी भी महत्वपूर्ण रही हों उपस्थिति कमजोर रही है।
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के 25 अप्रेल को जयपुर आगमन की रैली में पहुंचने के लिए बुलाई गई बैठक में नया खुलासा हो गया कि भादू को नेता नहीं माना जा रहा है।
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के जयपुर आगमन को लेकर समस्त स्थानों पर बैठकें की गई थी। सूरतगढ़ में विधायक सेवा केन्द्र पर भी नगर व देहात मंडलों की बैठक आयोजित की गई। वही दिखाई दिया जो पहले लिखा जा चुका है। अनेक नेता व प्रमुख कार्यकर्ता नहीं आए।
शाम के एक अखबार में खबर छपी जिसमें नाम तक छापे गए लेकिन उसमें पूर्व राज्यमंत्री राम प्रताप कासनिया का नाम नहीं था। कासनिया के साथ रहने वाला ग्रुप भी नहीं था। पूर्व विधायक अशोक नागपाल को जिलाध्यक्ष पद से हटा दिया गया था सो वे तो शामिल नहीं होने वाले थे मगर पंजाबी लॉबी के लोग नहीं थे।
आश्चर्य यह है कि भाजपा के प्रमुख वर्तमान व पूर्व पदाधिकारी भी नहीं आए। नगरपालिका के वर्तमान पार्षदों में से भी कई नहीं आए।
पालिकाध्यक्ष काजल छाबड़ा का नाम भी नहीं था। उनके पति का नाम जरूर था। पंचायत समिति प्रधान का नाम भी उपस्थिति में नहीं था।
महिला मोर्चा की टीम में से भी कोई नहीं थी। इसमें महिला मोर्चा में भादू पक्ष की कार्यकर्ता भी नहीं थी।
भादू को नेता नहीं मानने वाले और भादू से नाराज रहने वाले नेता व कार्यकर्ताओं का विचार है कि भाजपा का कार्यालय हो तो पहुंच जाएं लेकिन विधायक सेवा केन्द्र भादू का व्यक्तिगत कार्यालय है जो उनके व्यावसायिक दुकान में स्थापित हैं। वहां पर कोई कार्यकर्ता अपने स्वतंत्र विचार नहीं रख पाता जो लोकतांत्रिक पार्टी में जरूरी है।
सूरतगढ़ में भाजपा के कमजोर होते जाने का एक कारण पार्टी कार्यालय का न होना है और भादू चाहते तो यह कार्यालय स्थापित हो जाता।
सूरतगढ़ से भादू को विधायक चुनाव की भाजपा की टिकट मिलने के बाद नरेन्द्र मोदी और वसुंधरा के नाम पर भादू को वोट देना कार्यकर्ता की मजबूरी बना और वे जीत गए। भाजपा के नेता व कार्यकर्ताओं ने वोट दे दिए और जनता ने भी वोट दे दिए मगर आज भी बड़ी संख्या भादू को नेता नहीं मानती। भादू को नेता नहीं मानने वाले कार्यकताओं के मुंह से जब कोई बात निकलती है तो यह लगता है कि वे लोग टाइम पास यानि कि समय व्यतीत कर रहे हैं।
सूरतगढ़ में विधायक सेवा केन्द्र खोले जाने के बाद से दूरियां और बढ़ गई हैं कारण कि वहां पर भादू के पुत्र अमित भादू या उनके नजदीकी देखरेख करते हैं। जैतसर में भादू का विधायक सेवा केन्द्र और खोला गया है जहां पर महीने में 2 बार लोगों से भेंट होने या एक प्रकार से जन सुनवाई होने की घोषणा अखबारों से मालूम पड़ी है। सूरतगढ़ के लोगों को मालूम पड़ गया है तथा जैतसर के इलाके के लोगों को अब मालूम पड़ जाएगा कि कितनी सेवा हो पाती है।
हालात से लगता है कि भाजपा में बड़े नेता या प्रभारी अपने स्वागत अभिनन्दन तक सीमित हो रहे हैं तथा सूरतगढ़ के विधायक व इलाके की मोनिटरिंग नहीं कर रहे। समीक्षा नहीं कर रहे।


एक लोकप्रिय प्रसिद्ध नेता का मीडिया से संपर्क का गुण होता है लेकिन यहां तो मीडिया से कोसों दूरी है और टिकट मिलने,चुनाव लडऩे,जीतने और उसके बाद से आजतक मीडिया से बात नहीं की। कभी पत्रकार वार्ता बुला कर पार्टी के बारे में बात नहीं की।


भाजपा के 2 साल पूर्ण होने पर एक पत्रकार वार्ता आयोजित की।
लेकिन भाजपा के 3 साल बेमिसाल पर पत्रकार वार्ता आयोजित नहीं की।
भाजपा के 4 साल पूर्ण होने पर भी पत्रकार वार्ता की हिम्मत नहीं की।
विधायक को डर है कि पत्रकार सवालों की बौछार कर देंगे तो जवाब देना मुश्किल हो जाएगा।

( आप क्या सोचते हैं? बताएंगे।)




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