मंगलवार, 31 मई 2022

नगरपालिका अध्यक्ष ओमप्रकाश कालवा के विरुद्ध पार्षदों की बढ़ती संख्या:क्या होगा।

 


* करणीदानसिंह राजपूत *


लोग दूसरों के घरों में आग लगाने का काम करते हैं लेकिन नगरपालिका सूरतगढ़ के अध्यक्ष ओम प्रकाश कालवा ने तो अपने ही घर में आग लगा ली। जब खुद आग लगाए तो दूसरा कौन बुझाए? पूर्व विधायक गंगाजल मील भी शायद अब लगी आग को न बुझा पाएं। 

पहले लगता था कि कांंग्रेस बहुमत का बोर्ड है और निर्दलीयों का भी पूरा साथ है व ऊपर से भाजपा की चुप्पी का साथ है। ऐसे में कोई एक दो कांंग्रेस पार्षद नाराज हुए तो रो कर रह जाऐंगे। मास्टर जी को यह भूल रह गई या सोचने में गलती कर बैठे कि अब रोजाना नई राजनीति और नई विधियां होने लगी है। पार्षद नाराज होते रहे जिनकी संख्या बढती हुई अब खतरे का अहसास कराने वाली हो गई। अध्यक्ष जी के गुब्बारे में बातों व चापलूसी की हवा भरने वाले घेर कर बैठे रहेंगे और वह सुरक्षा कवच मानते रहें तो लापरवाही वाली सोच होगी। एक गुमान होता है कि बड़ा अखबार और उसका पत्रकार न्यूज में बचाता रहेगा। पत्रकार के पास राजनीति और नई विधियों का खाना एकदम खाली। विज्ञप्ति से न्यूज बनाने वाले आफत से नहीं बचा सकते। अध्यक्ष बनाने वाले पार्षद दूर होते जाएं तो किसी को भी बिठा कर सुरक्षा चक्र का घेरा होना मानते रहें। पार्षदों ने जांच की मांग का चेतावनी पत्र दिया, एडीएम से मिले। वह खबर रुकी तो नहीं। आगे जब अभियान जोर पकड़ेगा तब वे खबरें भी आएंगी। तब यह सुरक्षा चक्र तो ऐसा है कि ये बुझाने वाले तो होंगे नहीं। जिनसे दोस्ती रखनी थी उनको नाराज किया और जिसके पास आग बुझाने के लिए दो बूंद पानी नहीं उनको साथ रखा। वैसे तो सोच कुछ हद तक सही है अध्यक्ष की लापरवाहियों से शहर की जो दुर्दशा हो रही है वह बड़े अखबार में छप नहीं रही। यहां तक तो पत्रकार का साथ लाभकारी मिल रहा है। बीसियों समाचार रुकवा ही लिए। लेकिन यह कब तक। पत्रकारों के भरोसे से तो जयपुर दिल्ली की सत्ता एं भी कभी सुरक्षित नहीं रही। एक दो को खास बनाया वे कुछ कर नहीं पा रहे उल्टे विरोधियों की संख्या बढ गई। रोजाना नया घोटाला नयी लापरवाही का समाचार रिपोर्ट। अखबारों की संख्या बढ गई। बड़े के नाम को दोस्ती का हार मान पहने रहो। 

चेतावनी से धरना 3 जून से शुरू होगा। चार को सभी में छप जाएगा। सुरक्षा चक्र में भी छप जाएगा। 

सभी उठा पटक को छोड़ कर विचार किया जाए कि जब सब आराम से चल रहा था तो पार्षदों से सिर फुटोवल जैसी हालात कैसे बनती गई। पार्षदों की तो इसमें गलती मानी नहीं जा सकती। पार्षदों का काम जनता का काम। वे आएंगे और जल्दी भी मचाएंगे। जो जल्दी मचाए और चक्कर कटवाने का विरोध करे वह पार्षद विरोधी हो गया। पार्षदों को छोड़ें मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के सरकार के आदेश के काम करने में भी ढील और वह भी इतनी ज्यादा कि आलोचनाएं होने लगी। 

शहर के हालात से जनता नाराज और काम नहीं करने की नीति से पार्षद नाराज। नाराज पार्षदों की संख्या बढकर प्रभावी संख्या हो गई है और ज्यों ज्यों बढेगी, उससे टेंशन बढेगी। 

अब तक जो अध्यक्ष रहे उनमें से अधिक बदनामी हो रही है। कंट्रोल वाली हालत नहीं लग रही। ढाई साल के कार्य काल में कुछ किया नहीं और आगे कोई जादू होने वाला नहीं।

इस बार की शिकायत में आरोप गंभीर है। सीधा निशाना है कि नगरपालिका भूमि पर अध्यक्ष ने कब्जा किया है। अभी तक जवाब आया नहीं है। यह मामला आरोप ना कहने से भी खत्म होने वाला नहीं है। अध्यक्ष जवाब देह है। आरोप की पावर क्या है। यह भी ऐसी कि यह चक्रव्यूह टूटना और बचना कठिन लगता है। राजनैतिक गुरूओं से सलाह लें। मील सा.को भी बता दें कि कितना कबाड़ा नगरपालिका में हो चुका है और पार्षदों की नाराजगी खतरे के निशान को छूने लगी है।

दि. 31 मई 2022.

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