सोमवार, 12 अप्रैल 2021

प्रशासनिक अधिकारियों की सफलता कर्मचारियों और जनता से खुशनुमा संबंध हों



* करणीदानसिंह राजपूत *

प्रशासनिक अधिकारियों की कार्य प्रणाली किस प्रकार की होनी चाहिए कि वे जनता में और अपने सरकारी कार्यालय के कर्मचारियों में लोकप्रिय हो। ये संबंध प्रशासनिक अधिकारी को जीवंत बनाए रखते हैं।
दो स्थानों पर कुशलता से कार्य,अपने दफ्तर में कर्मचारियों से और बाहर जनता के काम करने वाले लोकप्रिय होते हैं।
उनकी लोकप्रियता बनावटी नहीं होती इसलिए कभी खत्म नहीं होती। उनका कार्य करने का तरीका आत्मा से होता है। वे दिखाने के लिए काम नहीं करते।
काम निपटाने हैं, यह सोच तो हर अधिकारी करता रहा है। लेकिन बहुत अच्छा करते रहने के बावजूद भी अनेक कार्य बाकी भी रहते हैं और निपटाए कार्यों में कहीं न कहीं खामियां भी  रह जाती है।सारे दिन काम करके भी सरकार की नजरों में  वह कुशल अधिकारी के रूप में फिर भी माना नहीं जाता।
प्रशासनिक अधिकारी यदि कुशलता से जनहित के कार्य करे तो भी उसे अपने दफ्तर से ही यह शुरुआत करनी होगी क्योंकि उसके हर कार्य दफ्तर के छोटे बड़े बाबू कहीं ना कहीं जुड़े हुए होते हैं।
एक दफ्तर में ना जाने कितने काम होते हैं इसलिए सबसे पहले अपने दफ्तर को संभालना देखना और जरूरी होता है। अमूमन अधिकारी कर्मचारियों के कार्य बहुत साधारण में लेता है। कर्मचारी छुट्टी का आवेदन मेडिकल छुट्टी का आवेदन प्रमोशन की पीड़ा भोगता रहता है। फाइल स्वीकृति में पड़ी है लेकिन अधिकारी उनको देखना नहीं चाहता।
पीड़ित कर्मचारी अपने साथ होने वाले व्यवहार से दुखी होकर कार्य में रुचि नहीं लेता और इससे जनता का काम प्रभावित होता है।  प्रशासनिक अधिकारी को कुशलता से जनता के काम करने हेतु पहला कार्य अपने दफ्तर को संभालना साफ सुथरा रखना बहुत जरूरी है।

इसमें कर्मचारियों से संबंधित कार्य जो 1 दिन में या एक-दो घंटे में निपटाए जा सकते हैं उनको तुरंत देखना और निपटाना बहुत जरूरी है। कर्मचारियों के कार्य पहले होने चाहिए। कर्मचारी खुश हैं तो वे अधिकारी की हर बात को निर्देश को शीघ्र ही पालन करेंगे  और अच्छे ढंग से भी करेंगे। अमूमन क्या होता है?
जैसे अधिकारी अपने प्रमोशन और अच्छे स्थान पर जाने की इच्छा रखता है आगे बढ़ने की इच्छा रखता है, वैसे ही अधीनस्थ कर्मचारी की भी अपने प्रमोशन की इच्छा रहती है लेकिन सब कुछ फाइल में होते हुए भी अधिकारी उसकी स्वीकृति के हस्ताक्षर वास्ते देखने का समय नहीं निकालता।
संबंधित बाबू एक बार पेश करता है अधिकारी बाद में देखने का कहता है तो दुबारा वह बाबू फाइल को पेश करने की हिम्मत ही नहीं करता।  इस तरह से किसी का प्रमोशन आदेश जारी होना होता है तो वह रुका पड़ा रहता है हालांकि इससे अधिकारी को व्यक्तिगत कोई भी लाभ नहीं होता बल्कि वह कर्मचारी की निगाह में क्रोधी माना जाता है। कर्मचारी को भी प्रमोशन का लाभ बिना देरी के मिलना ही चाहिए।

अनेक बार कर्मचारी अपने या अपने परिवार की बीमारी में छुट्टी लेने की कोशिश करता है और अधिकारी काम का हवाला दे दे कर छुट्टी नहीं देता।  कर्मचारी इसे पीड़ा जनक मानता है। अधिकारी का घर कुछ भी नहीं लगता। प्रमोशन पर सूची तैयार है फाइल कंप्लीट है तो उसे तत्काल ही स्वीकृति मिलनी ही चाहिए।

अधिकारी को देखना चाहिए कि उसके दफ्तर में यदि वह नया आया है तो पूर्व से कितनी फाइलें पेंडिंग पड़ी है जिनमें कर्मचारियों की फाइलें कितनी हैं?
कर्मचारियों की फाइलें प्रमोशन की है या फिर छुट्टी से संबंधित है तो वे दो चार हो सकती हैं। इतनी कम संख्या हो तो उनको क्यों रोकी जाए जो तत्काल ही निपटाई जानी चाहिए।
उनके निपटाने में महीने क्यों लगें? यदि कर्मचारी प्रमोशन प्राप्त करता है तो वह निश्चित रूप से अधिकारी को बहुत बड़ा आदर देगा, इसलिए अपने दफ्तर के कर्मचारियों के कार्य पहले करने बहुत जरूरी हैं। इसे प्राथमिक रूप से तय किया जाना चाहिए।
यह मानकर चलें कि जब आप अधिकारी प्रमोशन चाहते हैं तो कर्मचारी भी चाहता है।  पूर्व के अधिकारी ने प्रमोशन की फाइल पर या छुट्टी की फाइल पर हस्ताक्षर करने से चूक कर दी,नहीं कर पाया तो नए अधिकारी को अपना दफ्तर जमाने के लिए यह कार्य सबसे पहले कर देना चाहिए। यह उसकी पहली कुशलता का प्रमाण होगा जो कार्यालय से शुरु होगा। 

इसके बाद आता है जनता का कार्य अधिकारी कहते हैं कि वे जनहित के कार्य को प्राथमिकता देंगे लेकिन इसमें चूक होती रहती है।
हो सकता है अधिकारी जानबूझकर कार्य नहीं रोकना चाहता लेकिन फिर भी जो कार्य तत्काल निपटाया जा सकता हो एक-दो दिन में निपटाया जा सकता हो तो उसको उसी तरीके से तत्परता से निपटाया जाना चाहिए। तुरंत निपटाए जाने वाले कार्य के लिए कोई भी व्यक्ति दफ्तर के चक्कर लगाए। स्थानीय शहर से आए या दूर से आए तो यह मानकर चलें कि उसका समय भी लगा है और आने जाने में उसका खर्चा भी लगा है।

यदि कार्य तत्काल कर दिया जाए तो यह मानकर चलना चाहिए कि जिसका कार्य हुआ है वह उस अधिकारी का बिना पैसे का बहुत बड़ा प्रचारक बन जाता है। वह जो बात अपने निकटतम लोगों के बीच में करेगा अपने गांव में करेगा। उसकी आवाज उसके दिल से निकली हुई आवाज होगी। उसकी आवाज में कपट और छल नहीं होगा वह अपने दिल से कहेगा कि अधिकारी कर्तव्य के प्रति समर्पित और इमानदार है और उसने बिना किसी लाग लपेट के बात सुनी और तुरंत कार्य कर दिया। यह अधिकारी की बहुत बड़ी सफलता की निशानी होगी।
उसके कार्य से चाहे वह उपखण्ड, जिला मुख्यालय या फिर राज्य की राजधानी से हो। यदि कर्मचारी और जनता खुश है तब सरकार की योजनाओं को उस क्षेत्र में लागू करने में विकसित करने में आसानहोगी। अधिकारी को किसी प्रकार की परेशानी और  रुकावट का एहसास तक नहीं  हो सकता।
अधिकारी के व्यवहार से जनता खुश होकर कार्य करने के लिए आगे आएगी।
ऐसा भी होगा कि अधिकारी के व्यवहार से अन्य अधिकारियों की टीम सरकारी कार्य और योजनाओं को तत्परता से  करने में जुटेगी।

सरकार की योजनाएं यदि तुरंत लागू होती है सुनके पूरे होने का प्रतिशत अधिक होता है तो उसकी कार्यप्रणाली की गूंज सरकार के हर मंत्री और सचिवालय तक पहुंचती है।
अधिकारी श्रेष्ठ माना जाता है और पूर्व में उसकी श्रेष्ठता की पूंजी बनाई हुई है तो उस पूंजी में और अधिक वृद्धि हो जाती है।
यह कार्यप्रणाली बहुत मामूली सी लगती है लेकिन अधिकारी को जनता की नजरों में शिखर पर पहुंचाने में उत्प्रेरक प्रमाणित होती है।

लेख- दि.11-अप्रैल 2021.
करणीदानसिंह राजपूत,
स्वतंत्र पत्रकार,
(राजस्थान सरकार के सूचना एवं जनसंपर्क निदेशालय से अधिस्वीकृत)
सूरतगढ़।
94143 81356.
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