शनिवार, 25 नवंबर 2017

सूरतगढ़-2 सैकिंड का झगड़ा जिसे शांत कराने वाला कोई नेता नहीं

- करणीदानसिंह राजपूत-

सूरतगढ में एक दुकानदार और एक रेहड़ी वाले के बीच झगड़ा हुआ और शहर के बीच की प्रमुख सड़कों रेलवे रोड और बीकानेर रोड के महाराणा प्रताप चौक पर अवरोधक लगाकर सड़कों को बंद  कर दिया गया।

मामूली सी 2 सेकंड की घटना और घंटों तक सड़कें जाम होने से लोगों को परेशानी हुई। ऊपर से 27 नवंबर को बाजार बंद की घोषणा कर दी गई।

 एक लाख की जनता के बीच लगता है कि सत्ताधारी और गैर सत्ताधारी राजनैतिक व्यक्तियों में कोई भी इतना समझदार और प्रभावशाली नहीं है,जो दोनों पक्षों को समझा कर या डांट डपट कर शांत कर देता।

पुलिस और प्रशासन ऐसी साधारण सी घटना में भी हाथ बांधे खड़े रहे और समझा कर या मामूली सा दबाव देकर सड़कें नहीं खुलवा पाए। पुलिस और प्रशासन इस प्रकार की स्थिति में जहां मामूली सी बात राजनीतिक रूप धारण कर ले वहां चुप रहना ही बेहतर समझते हैं।यही हालत सूरतगढ़ की हुई पुलिस और प्रशासन आवागमन को ही डाइवर्ट करने में लगे रहे।

 मौके का अवलोकन जिन लोगों ने किया वे सभी हतप्रभ थे।चकित थे। पुलिस के अवरोधक सड़क जाम करने वालों ने इस्तेमाल किए। पुलिस उनको दूर नहीं कर पाई।

धरना लगाए हुए दुकानदारों की संख्या 50-60 से अधिक नहीं थी।

पब्लिसिटी के लिए कहें या चैनलों पर अखबारों पर न्यूज़ अच्छी छप जाए के  लिए टायर तक जलाया गया और प्रशासन ने उसके बुझाने के लिए तत्काल कोई कार्यवाही नहीं।

सबसे बड़ा आश्चर्य यह है कि राजनीतिक नेता और कार्यकर्ता दो पक्षों में बंट गए। कुछ दुकानदारों के साथ हुए और कुछ रेहड़ी वालों के साथ हो गये। 

शहर में रहने वाले लोग और बाहर से शहर में आने वाले लोग भलीभांति जानते हैं कि सड़कें कब्जा करने में न दुकानदार भले हैं और न रेहड़ी वाले भले हैं। दोनों ही मनमाने तरीके से सड़कों पर कब्जा करने में आगे रहते हैं और यातायात पुलिस तथा नगर पालिका ऐसे कब्जा करने वालों का साथ देती है। रेहड़ी का नियम एक निश्चित स्थान पर रहना नहीं है।घूमते फिरते रेहड़ी की दुकानदारी होती है।दुकानदार का अधिकार शटर से बाहर नहीं है मगर रेलवे रोड बीकानेर रोड और अन्य सड़कें सभी के फुटपाथ चौकियां बनाकर कब्जा कर लिए गए।इससे भी दुकानदारों का पेट हीं भरा स्लोप बना कर आधी दूरी तक सड़कों पर कब्जा किया गया। जहां पर स्थाई रूप से सामान रखते हैं।

 दुकानदारों को कभी भी अपने अतिक्रमण पर शर्म नहीं आई।समाचार पत्रों में इन अतिक्रमणों के समाचार छपते रहे लेकिन बेशर्मी से फुटपाथों को तोड़ तोड़ कर 4-5 फुट ऊंचा उठाया गया, जहां कोई चल फिर नहीं सकता। वृद्ध व्यक्ति बच्चे महिलाएं जो सड़क के बीच चल नहीं सकते उन्हें फुटपाथ चाहिए लेकिन Footpath को कोई छोड़ना नहीं चाहता। 

उच्च न्यायालय ने अतिक्रमण हटाने का निर्देश दिया जिस पर कुछ आशा बंधी की हर सड़क पर चौकियां हटेंगी और वापस Footpath बन जाएंगे तो आम जनता आराम से चल फिर सकेगी। प्रत्येक दुकान में आना जाना आसानी से हो सकेगा लेकिन अभी गौरव पथ का नाला एक तरफ बना है।दुकानदारों ने इस नाले पर ढाई तीन फिट ऊपर कब्जा कर पट्टियां लगाई है। इस स्थिति में उन की पेड़ियां हर हालत में सड़क पर तीन फुट आगे तक पहुंचेंगी लेकिन दुकानदारों को अपनी यह स्थिति नजर नहीं आती। 

शहर के राजनीतिक व्यक्तियों ने भी दुकानदारों के फुटपाथ पर हुए अतिक्रमणों पर जबान नहीं खोली। कारण स्पष्ट है की दुकानों के मालिक बहुत पैसे वाले हैं।

 नगर पालिका ने भी फुटपाथों पर पक्के अतिक्रमणों को रोका नहीं। कम से कम  गौरव पथ निर्माण में तो अब ये अतिक्रमण रोक दिए जाने चाहिए थे। लेकिन नाले के ऊपर फिर से अतिक्रमण होने शुरू हुए संभव है कि फिर अदालती कार्यवाही से ही कुछ होगा।

दुकानदारों ने 27 नवंबर के बंद का आह्वान किया है। इसमें कुछ वह नेता भी शामिल हैं जो कभी किसी भी समस्या पर घरों से कोठियों से बाहर नहीं निकले।अब चुनाव आने वाले हैं इसलिए उनके चेहरे नजर आने लगे हैं।ऐसे नेता दुकानदारों को स्थाई वोटर मानते हैं इसलिए वे दुकानदारों के साथ हैं और रेहड़ी वालों को दूसरे प्रदेशों का मानते हैं। ऐसा प्रचार भी शनिवार को चर्चाओं में गरम रहा की बाहर से आने वाला मामूली सा रेहड़ी वाला दुकानदार से उलझा और दुकानदार के थप्पड़ मार दिया।

यह घटना केवल दो व्यक्तियों के बीच में हुई। किसी भी हालत में इसे बड़ी घटना नहीं कहा जा सकता।दुकानदार और रेहड़ी वाले इस मामूली सी बात में समझौता कर सकते थे लेकिन लगता है कि इस मामूली घटना को भड़काने में लोग आगे रहे।

महाराणा प्रताप चौक पर CCTV कैमरे लगे हुए हैं वहां पर जो कुछ शनिवार के दिन हुआ और रात तक चला पूरा घटनाक्रम देखा जा सकता है की आग लगाने में भड़काने में कौन-कौन लोग आगे रहे।

 दुकानदारों की ओर से 27 नवंबर का आह्वान किया गया है लेकिन आश्चर्य है कि पूर्व में जितने भी बंद घोषित हुए उनमें दुकानदारों ने कभी भी दो-तीन घंटे से ज्यादा बंद नहीं रखा और डेढ़ 2 बजे बाजार खोलने में सदा आगे रहे। अब वे ही दुकानदार 27 नवंबर का पूर्ण बंद कैसे कर पाएंगे? 

27 नवंबर बीत जाएगा लेकिन यह सवाल जिंदा रहेगा की क्या दुकानदारों को Footpath ऊंचे उठाकर कब्जा करने का हक है?क्या दुकानदारों को सड़क पर सामान रखने का हक है? क्या यह सामान रखना अतिक्रमण नहीं है? रेहड़ीवाला किसी दुकान के आगे निकलता हुआ सामान देने लग जाए तो वह 5-10 मिनट रुकता है तब दुकानदार को अड़चन क्यों होती है?

 जब दुकानदार दुकान खोलते ही सड़क पर सामान रखता है और शाम तक रखता है,तब उसे अपनी स्थिति पर कभी भी सोचने-विचारने का मौका क्यों नहीं आया?

लगता है कि शहर की लोगों की भलाई के लिए, शहर के दुकानदारों और रेहड़ी वालों की भलाई के लिए सोचने वाला एक भी नेता नहीं है,जो एक आवाज दे और सब शांत होकर कह उठें कि सभी पक्ष भाईचारे से रहेंगे और मामूली सी बातों से झगड़ा फसाद नहीं करेंगे।

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