सोमवार, 16 नवंबर 2015

श्रीगंगानगर में अतिक्रमण हटा रहे हैं: सूरतगढ़ में वीआइपी अतिक्रमण कराए जा रहे हैं।


हाई कोर्ट के आदेश की जरूरत कहां है? पावर तो पालिका के पास में है:
सूरतगढ़ में पालिका और प्रशासन सो नहीं रहे मिली भगत से देख रहे हैं:
क्या सूरतगढ़ श्रीगंगानगर का हिस्सा नहीं है?

सूरतगढ़।
श्रीगंगानगर में अतिक्रमण हटाने का कार्य शुरू कर दिया गया जो चल रहा है। वीआइपी अतिक्रमणधारियों की जेसीबी चलने से बेइज्जती होती है सो जेसीबी मशीन के पहुंचने से पहले ही खुद कब्जे तोडऩा शुरू कर देते हैं। गंगानगर के अखबारों से मालूम पड़ता है कि वहां की सड़कों के चौड़ा होने पर निखार आने लगा है। राजस्थान उच्च न्यायालय के आदेश से सभी घबराते हैं। गंगानगर में उच्च न्यायालय के आदेश के बाद ही अतिक्रमण हटाने की कार्यवाही शुरू की गई। पहले काफी वाद विवाद भी हुआ लेकिन बाद में उच्च न्यायालय की कार्यवाही से अपने को बचाने के लिए अधिकारियों ने कार्यवाही शुरू की।
श्रीगंगानगर में अतिक्रमण हटाए जाने की कार्यवाही शुरू है और सूरतगढ़ में वीआइपी अतिक्रमणों के कराए जाने की धृष्ठता चल रही है। इसके पक्के उदाहरणों में एक है आवासन मंडल कॉलोनी। आवासों के आगे सड़कों तक पक्के निर्माण कर लिए गए हैं तथा लगातार ये निर्माण चल रहे हैं। जितना आवास का क्षेत्रफल उसके बराबर ही अतिक्रमण। इन अतिक्रमणों के लिए सड़कें संकड़ी की गई और एक सड़क का डिवाइडर तो बीच के बजाय हट कर बना दिया गया जिससे सड़क को ही खिसका दिया गया। पालिका प्रशासन को चाहिए था कि अतिक्रमणों को तुड़वा कर निर्माण कराती मगर गलत करवा दिया गया। गरीब लोग छत के लिए कहीं खाली जमीन पर मामूली कोठा ही बनालें तब जेसीबी तोडऩे पहुंच जाती है तथा ईओं की तरफ से समाचार पत्रों को विज्ञप्ति तक जारी हो जाती है किे कितने रूपए की जमीन को कब्जे से मुक्त करवाया गया। लेकिन आश्चर्य यह है कि आवासन मंडल कॉलोनी के वीआइपी आवासों के आगे और साइड में हो रहे अतिक्रमणों को तोडऩे पालिका नही ंपहुंचती। पालिका कानून में स्पष्ट लिखा है कि सड़क अधिकार क्षेत्र का हिस्सा अतिक्रमण और खांचा भूमि में आवंटित नहीं किया जा सकता लेकिन इसके बावजूद पालिका इस प्रकार के अतिक्रमणों को पालिका के एजेंडे में भी शामिल कर लेता है और उस पर पार्षदगण विचार भी कर लेते हैं।
नगरपालिका के अध्यक्ष ईओ व अन्य कर्मचारियों की यह सहानभूति है या इसमें कुछ काला है।
नगरपालिका वहां की सर्वे रिपोर्ट तो बना सकती है कि किस किसने कितनी सड़क भूमि पर कब्जा किया है। अधिकांश वीआइपी लोगों के आवास उनकी पत्नियों के नाम से हैं और किसी भी प्रकार की आपराधिक कार्यवाही या मुकद्दमा दर्ज होता है तो वे भारी परेशानी में फंस सकती हैं। आश्चर्य यह भी है कि नगरपालिकाओं में अधिकारी जो आवासन मंडल कॉलोनी में निवास करते हैं उन्होंने भी अतिक्रमण कर रखे हैं। जितने भी अधिकारी या कर्मचारियों ने ये अतिक्रमण कर रखे हें वे सभी सभी सरकारी नियमों के आचरणहीनता में आते हैं।
बीकानेर रोड के महाराणा चौक से बाई ओर से लगातर आधी रोड तक दुकानदारों के अक्रिमण है और उनेक बनाए ढ़लान के कारण केवल आधी रोड पर ही आवागमन होता है तथा भारी समस्या होती है। दुकानदारों ने 6 फुट आगे तक फुटपाथ पर अतिक्रमण को करने के बाद आगे स्लॉप बना कर और जगह रोक ली। मौका देखें कि सारे निर्माण सिमंट कंक्रीट के पक्के बनाए गए हैं। पालिका शिकायत के बावजूद नहीं देखती। जीवन बीमा निगम कार्यालय से आगे धार्मिक, समाजों के निर्माण व व्यावसायिक निर्माण अपने स्थान से बारह फुट आगे तक सड़क अधिकार क्षेत्र में बना लिए गए हैं और उनके विरूद्ध कोई कार्यवाही तक नहीं हुई। एक बहुत बड़ा मॉल सड़क पर बना लिया गया है। उसक आगे वाहन सड़क को और अधिक रोक लेते हैं तथा पचास फुट तक की सड़क केवल 8 फुट तक रह जाती है। प्रशासन को भी कोई परवाह नहीं है। यह सड़क सार्वजनिक निर्माण विभाग की है और वे भी सड़क को कभी देखते नहीं। यहां पर नगरपालिका ने कब्जे हटवाने से अपने को बचा लिया और नाले का निर्माण ही बदल लिया।
सब्जी मंडी में दुकानों से आगे तक  अतिक्रमण हैं। रेलवे रोड पर भी अतिक्रमण हैं।
रामप्रताप कासनिया के निवास से भगतसिंह चौक को मिलाने वाली सड़क दोनों ओर से अतिक्रमण का शिकार होते हुए कहीं 10 तो कहीं 12 फुट चौड़ी रह गई। पालिका ने उसके अतिक्रमणों को हटवाने के बजाय बची हुई सड़क पर ही डामर फिरवा दिया। विधायक राजेन्द्र भादू निवास के पास की सड़कें अतिक्रमण का शिकार हैं। पुलिस थाना सिटी और राजकीय चिकित्सालय के बीच की 80 फुट चौड़ी सड़क आधी रह गई है। सेठ रामदयाल राठी उच्च माध्य.स्कूल के आगे से निकल कर होटल आशियाना के आगे से जाने वाले बाईपास पर पहले अतिक्रमण हुए। उनके फर्जी कागजातों पर कई लोगों ने पट्टे बनवा लिए और आवासीय पट्टों पर वहां बड़े बड़े व्यावसायिक निर्माण कर लिए। आश्चर्य यह है कि उन व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के आगे पांच से दस फुट तक और अतिक्रमण हो गए।
उच्च न्यायालय के आदेश से तोड़े जाने के बजाय पालिका ही चुस्त हो जाए कि कब्जे होने ही न दे।
अभी भी जो कब्जे हो रहे हैं उनको तुरंत रूकवाया जाए। वीआइपी अतिक्रमणों को तुड़वाने के लिए कार्यवाही की जाए। सरकार से भारी भरकम
वेतन लेने वाले अधिकारी अपने दफ्तरों से बाहर निकल कर शहर का निरीक्षण करें ।
पुच्छला- वैसे देर सवेर कोई न कोई तो उच्च न्यायालय जाएगा ही। करलो जितने कब्जे करने हैं बाद में खुद को ही तोडऩे हैं। 

- ब्लास्ट की आवाज की तीसरी आँख -16 नवम्बर 2015 से।

यह ब्लॉग खोजें