फेस बुक पर रोजाना
तुम्हारा बदलता हुआ,
इतराता हुआ लुभावना रूप,
कितनों की करता है,नींद हराम,
आती है अलग अलग टिप्पणियां,
कितने कितने अर्थ लिए,
लेकिन तुम्हें भाती है,
तभी तो रूप बदल बदल आती हो,
अंग प्रत्यंग देख देख,
कैसे कैसे शब्दों में नाइस,गुड लुकिंग,
वेलकम सी टिप्पणियां,
लेकिन हर रूप में
दंत पंक्तियां वही,
सामने के दो दांतों में झिरी,
कहा जाता है,मान्यता है,
अविश्वसनीय होते हैं दंत झिरी वाले।
अब बताओ,
कैसे करूं टिप्पणी?
और क्या करूं टिप्पणी।
लेकिन
तुम चाहने वालों के लिए,
आती रहो,
नहीं तो वे बेचैन होंगे
और उनकी टिप्पणियों के बिना
तुम भी रहोगी बेचैन। 00
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काव्य दि. 18-10- 2013.
अपडेटेड. दि.14-2-2021.