गुरुवार, 3 अक्तूबर 2013

सूरतगढ़ में करोड़ों के भूमि घोटालों में राजनेता


विशेष खबर- सबसे पहले- करणीदानसिंह राजपूत

चारे घोटाले से कई गुणा बड़ा है सूरतगढ़ का भूमि घोटाला

राजस्थान उच्च न्यायालय ने तहसीलदार राकेश न्यौल के स्थानान्तरण आदेश पर रोक लगाई

सूरतगढ़, 3 अक्टूबर। सूरतगढ़ तहसील के भूमि घोटालों में राजनेताओं की ईच्छानुसार करोड़ों की जमीन का गैर कानूनी रूप से पुख्ता आवंटन की कार्यवाही के लिए रिपोर्ट नहीं करने वाले राजस्व तहसीलदार राकेश न्यौल को यहां से एपीओ कर दिया गया था,लेकिन राजस्थान उच्च न्यायालय जोधपुर ने राज्य सरकार के उस आदेश पर स्टे कर दिया है।

उच्च न्यायालय में वकील रामावतार चौधरी ने रिट लगाई जिसमें अखबारों को पेश किया जिनमें यह समाचार प्रकाशित हुआ था। यह रिट आज ही लगाई गई थी।

इस स्टे की सूचना यहां मिली तब राकेश न्यौल ने दफ्तर में सूचना देदी लेकिन खबर है कि स्थानान्तरित होकर आए हुए तहसीलदार ने चार्ज रिज्यूम कर लिया। कानून विदों का मानना है कि इसमें राज्य सरकार का आदेश ही रोक दिया गया है।

    बिहार का चारा घोटाला देश का सबसे बड़ा घोटाला माना जा रहा है,लेकिन सूरतगढ़ में कई घोटाले हैं तथा हरेक घोटाला बिहार के घोटाले से बड़ा है। सूरतगढ़ शहर और शहरी सीमा में भूमि की कीमतें बढऩे से राजनेताओं व बड़े लोगों ने विशाल कॉलोनियों के निमार्ण के लिए जमीनें हड़पनी शुरू की है। जमीन का एक एक घोटाला सौ सौ दो दो सौ करोड़ का है।

राजनेताओं को जमीनें दिलवाने में पटवारी किशोरसिंह का खास नाम है और यह पटवारी बेताज बादशाह कहलाता है।
इस पटवारी को यहां से पहले हटा दिया गया था,लेकिन यह अपनी बनाई संपत्ति के लिए यहां वापस आना चाहता था। राजनेताओं से संपर्क कर उनको जमीनें उपलब्ध कराने में किसी भी स्तर तक रिस्क उठाने में माहिर माने जाने वाले इस पटवारी को यहां बदली करवा कर लाया गया और सूरतगढ़ हल्का दिया गया,लेकिन पटवारी का इस बार का दांव चक्र में उलझ गया। पटवारी की संपति बेशुमार बताई जाती है।
असल में चुनाव से पहले जमीनें हड़पी जाने की ताबड़तोड़ जल्दबाजी में यह मामला पकड़ में आया।
नाव के बाद अगर
चु सीबीआई जांच करवाई गई तो कितने ही राजनेताओं का हाल लालू यादव से बदतर होगा।

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करोड़ों की जमीनों में गिरता राजनीतिज्ञों का ईमान

नेताओं की जमीनों का फर्जीवाड़ा नहीं किया तो तहसीदार को बदल दिया

जमीनें पीछे थी मगर उनको राष्ट्रीय उच्च मार्ग पर लग आए
मुख्यमंत्री का कार्यालय भी दागी हुआ

खास रपट- करणीदानसिंह राजपूत

सूरतगढ़ के शहरी क्षेत्र में और पास की जमीनों के रेट करोड़ों रूपए होने के कारण अस्थाई कास्त वाली जमीनों को गरीबों से जैसे तैसे हथिया कर उनका पुख्ता आवंटन कराने में नेताओं का ईमान गिरता जा रहा है। पुख्ता आवंटन के लिए कब्जा कास्त की रिपोर्ट  तहसीलदार देता है तब संभागीय कमिश्रर  पुख्ता आवंटन करता है। नेता खासकर कांग्रेसी सत्ताधारी और उनके साथ रहने वाले चाटुकार भाजपाई पिछले सालों से जमीनों की हेराफेरी में लगे हुए हैं। जमीनों को खरीदने के बाद उच्च मार्ग पर लाने का फर्जीवाड़ा चलता है।
विधानसभा चुनाव की आचार संहिता लगने ही वाली है इसलिए सत्ताधारी नेता जल्दी से जल्दी जमीनों का पुख्ता आवंटन कराने को लालायित हो रहे हैं तथा राजस्व कर्मचारियों व अधिकारियों से झूठी रिपार्टें चाहते हैं। अधिकारियों को झूठी रिपोर्ट देने से बाकी का जीवन कोर्ट कचहरी व जेल में दिखाई देता है। सूरतगढ़ के राजस्व व अन्य अधिकारी झूठी रिपोर्ट से बचना चाहते हैं।
ऐसे ही एक मामले में राजस्व तहसीलदार राकेश न्यौल ने झूठी रिपोर्ट देने से इन्कार का दिया तो नेताजी ने मुख्यमंत्री कार्यालय से उनका स्थानान्तरण करवा दिया। तहसीलदार को आए हुए केवल 2 माह ही हुए थे।

मामला है राष्ट्रीय उच्च मार्ग के पास की मोहनी देवी की जमीन का। भरतजी को  इस जमीन में लगाव हुआ और यह जमीन पीछे से खिसका कर उच्च मार्ग पर ला दी गई। पहले किसी प्रयाग वाल्मिकि की जमीन सडक़ के पास थी उसे पीछे कर दिया गया। पटवारी ने गोल मोल रिपोर्ट दी कि आसपास के लोगों से पूछने पर मालूम हुआ कि मोहनीदेवी कब्जा कास्त है। इस रिपोर्ट को राजस्व तहसील से जिला कलक्टर के पास भिजवा दिया गया। कलक्टर कार्यालय से फाइल वापस आ गई। स्पष्ट लिखा जाए कि विक्रमी संवत 2042 से अब तक कब्जा कास्त है। अब यह रिपोर्ट दी जाए तो साफ साफ जेल दीखती है। पुराने रिकार्ड की ना जाने कितनी नकलें ली जा चुकी है,उसमें झूठी रिपोर्ट को जगह जगह इन्द्राज कैसे किया जाए?
राजस्व तहसीलदार पर दबाव बनाया जाता है। लेकिन तहसीलदार कह देता है कि सीधे तो रिपोर्ट नहीं करता। गिरदावर से पहले करवा दी जाए। गिरदावर हाल ही में पदोन्नत हुआ। वह कहता है कि मुझे क्यों मरवा रहे हो? मैं यह नहीं करता।
राजस्व तहसीलदार दबाव बनाया जाता है। विधायक जी के भ्राता तहसीलदार के पास में पहुंचते हैं। तहसीलदार को जिला कलक्टर कार्यालय में पहुंच कर मुख्यमंत्री की ऑन लाइन बैठक में भाग लेना होता है। आदर सत्कार कर तहसीलदार निकल जाता है।
तहसीलदार को नेता ही लाए थे और वह काम नहीं करे। मुख्यमंत्री के कार्यालय में ना जाने क्या क्या कहा जाता है और वहां से निर्देश कि अपीओ कर दिया जाए।
तहसीलदार के स्थानान्तरण की खबर से हलचल शुरू होती है और शनिवार को ही काफी लोग तहसील में पहुंच जाते हैं। तहसीलदार जी के मुंह से सच्च फूट कर बाहर निकलने लगता है। वहां पर खड़े कई लोग पुष्टि करते हैं। तहसीलदार को फोन पर कहा जाता है कि भरत जी आए थे और आपने उनका आदर सत्कार नहीं किया। तहसीलदार कहते हैं कि भरत जी आए ही नहीं। विधायक जी के दो भाई आए थे और उनका पूरा आदर सत्कार किया गया था।
बस आदर सत्कार वह बाकी रहा कि जमीनों के पुख्ता करने के लिए फर्जी रिपोर्ट नहीं की गई। यह एक जमीन नहीं। कितनी और जमीनें हैं। शहर में सन सिटी के पीछे उच्च मार्ग के पास में जहां पर सात पत्रकारों को भी प्लाट दिए जा चुके हैं। अभी उसका पुख्ता आवंटन नहीं हुआ है। इसके
अलावा घग्घर डिपे्रशन की जमीनें जिन पर कुछ नेताओं की नजरें हैं लेकिन उन पर रिपोर्ट हो नहीं सकती। राज बदलना निश्चित है और उसके बाद में ना जाने कितने प्रकरण खुलेंगे और फर्जीवाड़े में कौन कौन घेरे में आऐंगे।

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