मील और कालवा को साथ मिलाए कासनीया का चुनाव परिणाम क्या होगा!
खास रपट- करणीदानसिंह राजपूत सूरतगढ़ विधानसभा का पिछले 50 सालों का सन् 1967 से 2018 तक का रिकार्ड रहा है कि लगातार दुसरी बार कोई भी विधायक नहीं बन पाया। कांग्रेस के सुनील बिश्नोई दूसरी बार लगातार खड़े हुए तो हारे। वे दो बार जीते लेकिन लगातार खड़े हुए तो जीत नहीं पाए। पावर रसूख सब था लेकिन हार का मुंह देखना पड़ा। भाजपा के रामप्रताप कासनीया सन् 2018 में जीते और अब सन् 2023 में लगातार दूसरी बार चुनाव में खड़े हैं। कासनीया पिछला इतिहास दोहराएंगे या जीत कर नया इतिहास रचेंगे। आरोपों से घिरी मील टीम का कासनीया को साथ मिला है मगर शहर की पीड़ित जनता इस पर राजी नहीं हुई है। इनके मिलने से रामप्रताप कासनीया को कितने वोट मिलेंगे और कितने छिटक जाएंगे? जनता के मूड का संकेत शुभ नजर नहीं दिख रहा। मील तीन आए लेकिन साथ में कार्यकर्ता कितने आए? पूर्व विधायक गंगाजल मील, पंचायत समिति प्रधान हजारीराम मील और पंचायत समिति के डायरेक्टर हेतराम मील वोट भाजपा के रामप्रताप कासनीया को वोट देने का कहने के लिए कासनीया के साथ घूमेंगे? नगरपालिका की अध्यक्षता और सदस्यता से सस्पेंड ओमप्रकाश कालवा को साथ देखकर लोग वोट देंगे? इसपर मील साथ हों तो लोग कहेंगे कि इनसे तो बचना चाहते थे और कासनीया इन्हीं को साथ लेकर घूम रहे हैं। इन लोगों की मांग से वोट देना चाहिए या नहीं। जब क्रिकेट खेल में एम्पायर निर्णय नहीं कर पाते तब थर्ड एम्पायर का निर्णय मान्य होता है। यहां जनता थर्ड एम्पायर है और उसका निर्णय एकदम सटीक होगा। * सीवरेज घोटाले में सस्पेंड कालवा को साथ घुमाते जनसंपर्क करना वोट मांगना और जनता की नाराजगी से घिरे पूर्व विधायक मील के साथ आने का प्रचार करना आने वाले भूकंप का खतरा है। कोई एक दो मसले हों तो गिनलें लेकिन जब मसले अधिक हों और कीमती वोट जीत को दूर फेंक रहे हों तब खतरों को दूर रखना समझदारी होती है। अगर इनको आराम करने का नहीं कहा गया दूर नहीं रखा गया तो सूरतगढ़ सीट का वही इतिहास होगा जो पहले बताया जा चुका है। * कासनीया के खैरख्वाहों को,भाजपा और मोर्चों के नगर जिला पदाधिकारियों को शहर की जनता से पूछ लेना चाहिए कि पूर्व विधायक गंगाजल मील,पूर्व नगरपालिका अध्यक्ष ओमप्रकाश कालवा को साथ लेने से साथ घूमने से हर रोज कितने वोट बढ रहे हैं या घट रहे हैं। जनता की सुन लेना चाहिए या फिर राज्य की मिलने वाली सीटों में सूरतगढ़ सीट को जोड़कर नहीं देखना चाहिए। यह भी ध्यान रखना होगा कि कासनीया सबसे कमजोर टिकटार्थी और लोगों की नये चेहरे की मांग थी। * गंगाजल मील सन् 2008 में जीते विधायक बने मगर सन् 2013 में 32593 वोटों से हारे और तीसरे क्रम पर धकेल दिए गए। 32 हजार593 वोटों की हार कम नहीं होती और उससे भी ज्यादा पीड़ा तीसरे नम्बर पर लगा दिए जाने की जिंदगी भर सालती रहेगी। यह उदाहरण ताजा है। यह भी इतिहास में लिखा जा चुका है और इसे कोई बदल भी नहीं सकता। कमजोर बीज और मिलावटी खाद हो तो फसल का अनुमान किसानों को पहले से ही लग जाता है। यही हाल सूरतगढ़ सीट का है। राजनीति में यही सच्च है कि जनता चाहती है तब सिर पर बैठाती है और मारती है तब बहुत बुरी तरह से मारती है। 6 नवंबर 2023. ०0०