देश के सबसे अधिक ताकतवर नरेंद्र मोदी और अमित शाह इन दिनों परेशान कसमसाए से हैं एक प्रधानमंत्री है और दूसरा भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष है।
यह पावरफुल जोड़ी राजस्थान भाजपा प्रदेश अध्यक्ष की खाली पड़ी कुर्सी भरने में सफल नहीं हो पार रही है।
इनके प्रस्तावित नाम गजेंद्र सिंह शेखावत पर राजस्थान सरकार की मुखिया वसुंधरा राजे सहमति नहीं दे रही है।
कई दौर की बैठकों के बाद भी मामला जैस का तैस बना हुआ है और यहां राजस्थान की मुख्यमंत्री है जो टस से मस नहीं हो रही है।
नए प्रदेशाध्यक्ष के सहमति बनाने के लिए 13-6-2018 को अनेक नेता दिल्ली में एकजुट हुए, लेकिन ये कोशिश फिर से नाकाम हुई।
भाजपा कार्यकर्ता सहित जनता को भी यह समझ में आ गया है कि चाहकर भी दिल्ली में बैठे बड़े नेता राजस्थान को लेकर कोई निर्णय नहीं कर पा रहे हैं।
ऐसे में एक बड़ा सवाल भी खड़ा हो गया है कि राजस्थान के आगामी विधानसभा चुनाव 2018 में आखिर दिल्ली की कितनी चल पाएगी?
भाजपा के चाणक्य माने जाने वाले अमित शाह राजस्थान के प्रदेश नेतृत्व के आगे बौने नजर आ रहे हैं।
यह पहला मौका है जब भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष किसी प्रदेश को लेकर इतने चिंतन और मंथन के दौर से गुजर रहे हैं।
नए अध्यक्ष को लेकर जिस तरह से प्रदेश और दिल्ली के बीच मामला ठना हुआ है, उसने पार्टी के शीर्ष पदाधिकारियों की नींद उड़ा दी है।
पार्टी अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने विश्वासपात्र केंद्रीय राज्यमंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत को प्रदेशाध्यक्ष के पद पर देखना चाहते हैं तो दूसरी तरफ मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे जातिगत समीकरण गड़बड़ाने के हवाले से शेखावत के नाम पर कतई तैयार नहीं हैं। शेखावत का नाम जब-जब पार्टी नेतृत्व की ओर से आगे रखा गया है, तब-तब वसुंधरा राजे केंद्रीय नेतृत्व की राह मे खड़ी हो गई।
राजनीति के जानकारों का मानना है कि प्रदेशाध्यक्ष पद की इस तनातनी के बीच आगामी चुनाव में पार्टी को नुकसान होने की आशंका बढ़ती जा रही है।
हर राज्य में विधानसभा चुनाव से पहले अपनी पकड़ मजबूत करने की रणनीति में माहिर अमित शाह को राजस्थान में अत्यधिक मुश्किल पेश आ रही है।
प्रदेश अध्यक्ष पद से वसुंधरा के चहेते अशोक परनामी की अघोषित छुट्टी के बाद जैसे ही अमित शाह ने नए प्रदेशाध्यक्ष के रुप में जोधपुर से लोकसभा सदस्य एवं केंद्र में कृषि राज्य मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत के नाम का दांव चला, वसुंधरा राजे के खुले विरोध से वो उलटा पड़ गया।
अब राज्य के नए प्रदेशाध्यक्ष का नाम तय होने के बाद भी आलाकमान उसे घोषित नहीं कर पा रहा है। वो इंतजार में बैठा है कि राजस्थान थोड़ा नरम हो तो आगे कदम बढ़ाया जाए, लेकिन अभी तक के हालात ये बताते हैं कि राजस्थान के मामले में मोदी-शाह को पटखनी मिली है। दिल्ली से चले हर आदेश का पालन हर राज्य करते रहे हैं, लेकिन राजस्थान में ये आदेश हर बार हवा में ही उड़ते रहे हैं।
आलाकमान की मुश्किल ये है कि प्रदेशाध्यक्ष के मामले में यदि पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व प्रदेश के नेताओं की अनदेखी करते हुए निर्णय करता है तो चुनाव के नतीजों के लिए वह जिम्मेदार हो जाएगा। साथ ही टिकट बंटवारे से लेकर भी स्थिति उलझ जाएगी।
इस बीच माना जा रहा है कि भाजपा में इस गुटबाजी का लाभ कांग्रेस को चुनाव के दौरान मिल सकता है। साथ ही इस अंदरूनी कलह को कांग्रेस चुनाव में कैश भी करने की कोशिश कर सकती है। इस खींचतान के बीच एक बात साफ नजर आ रही है कि इसका बड़ा कारण टिकट वितरण में अपना वर्चस्व बनाए रखना ही मुख्य है। अगर केंद्रीय नेतृत्व गजेंद्रसिंह को अध्यक्ष बनाने में नाकाम रहता है तो विधानसभा चुनाव में टिकट वितरण का काम भी दिल्ली के पास नहीं होगा।
भाजपा का प्रदेशाध्यक्ष तो होगा ही,लेकिन इस प्रकरण में खटास तो पड़ ही गई है और उसके परिणाम पार्टी को न चाहते हुए भी भोगने ही पड़ेंगे।