शुक्रवार, 7 मई 2021

प्रधानमंत्री नरेंद्र जी मोदी को नया संसद भवन व नया आवास चाहिए-जलती चिताओं में कैसे बचेंगे लोग और देश ब



* करणीदानसिंह राजपूत *



महामारी कोरोना विषाणु के संक्रमण से मरते लोग।एंबुलेंस नहीं।चिकित्सा नहीं।ऑक्सीजन नहीं।दवाइयों की कमी। देश में लाशें ही लाशें दिख रही है।श्मशानों में जगह नहीं।चिताओं में एक के साथ में अनेक शव जलाए जा रहे हैं। सड़कों पर दम तोड़ा जा रहा है। पूरी दुनिया यह भयावह जीविथ तस्वीर देख रही है। 

ऐसी स्थिति में हमारे प्रधानमंत्री जी को अपने बोलने के लिए संसद का नया भवन और खुद के लिए भी एकदम नया आवास चाहिए। प्रधानमंत्री जी अपने आवास में 7 सालों में ही उक्ता गए या कुछ दिखाना चाहते। वर्तमान भवन भी नया है। सभी आधुनिक सुविधाएं इस भवन में हैं। यह कोई अधिक पुराना नहीं है।


हमारा देश विकसित देशों की श्रेणी में नहीं है। उनसे बहुत पीछे है। दुनिया में हम गरीब देशों की श्रेणी में आते हैं। जहां विश्व स्वास्थ्य संगठन विश्व खाद्य कार्यक्रम आदि के अंदर माना जाता है कि भारत में एक करोड़ से ज्यादा लोग दूसरे समय का भोजन नहीं कर पाते,भूखे रहते हैं। यह भरोसा भी नहीं कि दूसरे वक्त की रोटी अवश्य ही मिल जाएगी। यह स्थिति तब है जब देश में समाजसेवा और धार्मिक सेवा में लाखों स्थानों पर लोगों को लंगरों में पेट भराया जाता है। ऐसा गरीब देश। जिसमें लोगों के पास रोजगार नहीं पैसा नहीं और सरकारी स्तर पर एक दो रूपये किलो गेहूं चावल आदि दिया जाता है। चिकित्सा, शिक्षा नहीं। रहने को करोड़ो लोगों के पास आवास में झुग्गी झोपड़ी तक नहीं।

ऐसे देश के प्रधानमंत्री जी को अपने लिए नया आवास चाहिए। संसद भवन भी नया चाहिए। प्रधानमंत्री जी कितने समय मतलब कितनी बार बोलते हैं, लेकिन संसद भवन नया चाहिए।


अमेरिका दुनिया का सबसे अमीर देश और विकसित देश उस देश के राष्ट्रपति जिस भवन में रहते हैं व्हाइट हाउस जो करीब 200 साल पुराना बताया जाता है उसमें रहना शान समझा जाता है लेकिन हमारे देश के प्रधानमंत्री जी को नया आवास चाहिए। 

 यह केवल आलोचना का विषय नहीं। देश की आर्थिक स्थिति में हम कहां हैं?अमेरिका ब्रिटेन के लोगों की औसत आय क्या है और हमारे यहां के नागरिक की औसत आय क्या है?


 इस और सच्चाई को भी छोड़ दिया जाए लेकिन महामारी में जब दुनिया से सहायता आ रही हो लोग हमारे यहां मर रहे हों।  उस समय भी नया संसद भवन और प्रधानमंत्री को नया आवास चाहिए तो समझ लेना चाहिए कि भारत में लोकतंत्र और लोकतंत्र में अपने आप को राष्ट्र का सेवक मानने वाले प्रधानमंत्री की वास्तविक स्थिति क्या है? 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सत्ता में हैं तब तक हो सकता है कि मीडिया नहीं बोले नहीं लिखे लेकिन इतिहास कभी भी चाटूकारों के द्वारा नहीं लिखा जाता। सोशल साइट जिसे सोशल मीडिया कहते हैं। उन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यों की प्रशंसा करते हुए कसीदे काढे जाते हैं। एक विशेष प्रकार का प्रचार अभियान चल रहा है जिसने प्रधानमंत्री को भारत के विकास के लिए ऐसा बताया जा रहा है कि उससे पहले कभी विकास नहीं हुआ और यह पुरानी भविष्यवाणियों से जोड़ा जा रहा है कि प्रधानमंत्री का अवतरण हुआ है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दूसरा कार्यकाल शुरु है। वे हिंदुस्तान के ऐसे पहले प्रधानमंत्री हैं जो मीडिया की प्रेस कॉन्फ्रेंस में आने से भयभीत रहते हैं। उन्हें भय लगता है कि पत्रकारों के प्रश्नों के जवाब मैं उनका मन देश-विदेश सबके सामने बेपर्दा हो जाएगा। प्रेसकान्फ्रेंस ही नहीं की जाती।

देश के सामने एक और बड़ी सच्चाई सामने नहीं आ रही है और जिस दिन वह सच्चाई सामने आएगी तब सारी देशभक्ति का सार उजागर हो जाएगा।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आपातकाल लगाने के दिन को कालादिन बताते हुए संसद में कहा था कि जिन लोगों ने कुरबानियां देकर संविधान को और लोकतंत्र को बचाया। उनका सम्मान किया जाना चाहिए। प्रधानमंत्री जी ने कांग्रेस को खूब कोसा था। उनके भाषणों में ऐसा दो बार हुआ जब आपातकाल का वर्णन कर राजनीति की।

संसद में यह भी कहा कि आपातकाल में कुर्बानियां देने वालों की वजह से आज हम यहां मौजूद हैं।  प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगाया। 26 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक आपातकाल रहा। मूल अधिकार खत्म किए गए। अखबारों पर सेंसर,जब्ती और पत्रकारों को जेलों में डाल दिया गया था। लाखों लोगों को मीसा,रासुका, सीआरपीसी, व अन्य कानूनों में जेलों में डाला गया। बहुत अत्याचार किए गए। बाबू जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में और अनेक संगठनों ने जिसमें आर एस एस और विभिन्न विचारों के संगठनों ने विरोध प्रदर्शन कर जेलें भरी। इंदिरा ने सत्ता को सुरक्षित रखने के लिए यह किया। जो लोग जेलों में गए उनका सब नष्ट हो गया। वे और परिवार पनप नहीं सके। संतानें हर क्षेत्र में पिछड़ गई। आपातकाल के ये लोकतंत्र सेनानी 60 से ऊपर 65,70,75,80,90 साल की वृद्धावस्था में पीड़ाएं भोगते हुए हर रोज 15,20 संसार छोड़ रहे हैं। उनकी वीरांगनाएं भी बहुत कष्ट भरी जिंदगी गुजार रही हैं, जिसे जीना कहना ही अनुचित है।

भारत सरकार की तरफ से सम्मान और सम्मान निधि प्रदान होनी चाहिए। स्वतंत्रता आंदोलन के बाद देश में लोकतंत्र बचाने संविधान बचाने का यही बहुत बड़ा आंदोलन था।

 2014 से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी को संगठनों की ओर से हजारों पत्र लिखे जा चुके हैं लेकिन एक उत्तर नहीं दिया गया। मन की बात में बोलने के लिए भी हजारों संदेश भिजवाए गए, लेकिन मन में कहीं सम्मान करने का विचार प्रगट नहीं हुआ। यही हाल गृहमंत्री अमित शाह जी का है। उन्होंने भी किसी पत्र का उत्तर नहीं दिया। प्रधानमंत्री जी से भेंट का समय मांगा लेकिन कोई क्रिया प्रतिक्रिया नहीं हुई। सच्च में ऐसे प्रधानमंत्री पहले नहीं आए। सभी के काल में पत्रों के उत्तर जरूर दिए गए। सच्च में यह पहले प्रधानमंत्री हैं जिनके कार्यकाल में पत्रों के उत्तर नहीं दिए जा रहे। वे भी आपातकाल लोकतंत्र सेनानियों के पत्रों के उत्तर। 

कुछ सांसदों ने लोकसभा और राज्यसभा में लोकतंत्र सेनानियों की यह दर्दनाक हालात पेश की और सम्मान प्रदान करने का आग्रह भी किया लेकिन प्रधानमंत्री जी ने कभी मुंह नहीं खोला।

देश के लिए अपना बस छोड़ कर कुर्बानियां देने वालों को पत्र का उत्तर नहीं देना बहुत बड़ी सच्चाई है। जब कुर्बानियां देने वालों की मौतें दिखाई नहीं पड़ती तो अन्य मौतों का भी क्या?

दि.7 मई 2021.



करणीदानसिंह राजपूत,

उम्र 75 वर्ष 6 माह.

पत्रकार,

आपातकाल जेलयात्री पत्रकार,

सूरतगढ़ ( राजस्थान )

94143 81356.

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