गुरुवार, 4 फ़रवरी 2021

👌 विजय भंडारी जी की आत्मकथ्य पत्रकारिता पुस्तक 'भूलूं कैसे'- करणीदानसिंह राजपूत.

 



* राजस्थान पत्रिका जयपुर से भेजी गई माननीय विजय भंडारी जी की पुस्तक 'भूलूं  कैसे'आज मुझे मेरे कार्यालय में आनंद डागा के माध्यम से प्राप्त हुई।
भंडारी जी राजस्थान पत्रिका में काफी समय तक प्रधान संपादक रहे। विजय भंडारी जी की यह है पुस्तक आत्मकथ्य है।
श्रद्धेय कर्पूर चंद कुलिश जी की जीवनी पढ़ने के बाद समझता हूं कि यह दूसरी महत्वपूर्ण पुस्तक है। अभी मिलने के बाद प्रारंभ के कुछ पृष्ठ पढ़ पाया हूं। कुछ पृष्ठों के पढने से ही लग रहा है कि भंडारी जी ने अपना बचपन छात्र जीवन जब देश आजादी की लड़ाई लड़ रहा था उस समय का भी रोचक वर्णन किया है। पत्रकारों पर भी बहुत कुछ लिखा है। अनेक पत्रकारों का उल्लेख है।
मैंने माननीय विजय भंडारी जी के कार्यकाल में बहुत कुछ सीखा और बहुत छपा भी था।
मेरा यह मानना है कि यह पुस्तक पत्रकारों के लिए भी अति महत्वपूर्ण पुस्तक है जो इसे पढ़ पाएंगे बहुत कुछ सीख देने वाली है।
पूरी पढ़ने के बाद फिर कुछ लिखूंगा।
पत्रिका की यह खूबी रही है कि माननीय गुलाब जी की पुस्तकें भी जब नई आई तब सूरतगढ़ में विशेष रूप से मुझे भिजवाई गई।
आज यह पुस्तक मिलने पर भी बहुत प्रसन्नता हुई।
विजय भंडारी बहुत सख्त संपादक रहे। समाचारों में त्रुटियां सहन नहीं करते थे। उस समय प्रत्येक संस्करण में स्थानीय संपादक ही प्रथम पृष्ठ पर पहली खबर बनाते थे। शाम को 5 से साढे पांच बजे भंडारी जी फोन पर बात करते। उनकी निगाह से समाचारों की त्रुटियां छिपी नहीं रहती। स्थानीय संपादक को जवाब देना होता था।
उनके कार्यकाल में हर पत्रकार को जो पत्रिका में किसी भी पद पर रहा उन्हें बहुत कुछ सीखने को मिला।
इस पुस्तक में बहुत से पत्रकारों का भी वर्णन  है। वर्तमान प्रधान संपादक गुलाब कोठारी और मिलाप कोठारी का भी वर्णन है।
अभी तो यही कह सकता हूं कि इस पुस्तक में राजस्थान पत्रिका का एवं राजस्थान का बहुत बड़ा इतिहास पत्रकारिता के साथ लिखा हुआ है।
पत्रिका के बाद विजय भंडारी जी ने स्वतंत्र पत्रकारिता भी की।
दि.4 फरवरी 2021.
करणी दान सिंह राजपूत,
स्वतंत्र पत्रकार,
सूरतगढ़।
94143 81356.
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