शुक्रवार, 28 अक्तूबर 2016

ज्योति स्वरूप है परमात्मा इसलिए जलाते हैं दीप: बल्ब में ज्योति नहीं होती:


दीपावली ही नहीं बाद में भी दीप जला कर कार्यक्रम कर- करणीदानसिंह राजपूत -
प्राचीन युग में लौट कर यह जानने की कोशिश करें की हम पृथ्वी लोक भारत भूमि के लोग किसी भी पूजा अर्चना पर्व धार्मिक समारोह आदि में दीप प्रज्ज्वलित कर उसकी ज्योति में अनुष्ठान व कार्य करते हैं। दीप जलाने को और उसकी ज्योति रूपी प्रकाश को अहम मान कर धार्मिक रूप प्रदान कर दिया गया है ताकि लोग इसे हर तरह से अपनाए रख सकें। यह सब कार्य पद्धतियां पृथ्वी लोक में है। पाताल लोक  के लिए संभव है नहीं हो। हमारे जो धार्मिक ग्रंथ हैं और उनमें जो कुछ लिखा हुआ है उसकी सरसरी व्याख्या नहीं हो सकती। सूक्ष्म व्याख्या के बाद ही उसके छिपे हुए सार तत्व को समझा जा सकता है।
     दीप जला कर उसकी ज्योति में आखिर करने के पीछे जो सूक्ष्म तत्व है वह समझना चाहिए। मेरा यह मानना है कि परम आत्मा जिसे परम ब्रह्म नामों से पुकारते हैं वे ज्योति स्वरूप हैं उनका कोई अन्य आकार नहीं है। ज्योति एक बिंदु आकार में है। युगों से यही माना जाता है। जब हम कोई भी कार्य करने के लिए दीप जलाते हैं तो असल में उसी ज्योति स्वरूप के सामने ही हम कार्य करते हैं। दीपावली में वैसे अनेक कारण माने जाते हैं लेकिन इस सूक्ष्म तत्व को भी ध्यान में रखना चाहिए कि हमें दीप ही क्यों जलाने चाहिए?
दीप जलाने से उसकी ज्योति को छूती हुई समीर आसपास के वातावरण को आनन्दित और स्वच्छ करती है। लेकिन बल्ब की रोशनी से ज्योति नहीं निकलती प्रकाश तो होता है। वह अन्य प्रकार से भी किया जा सकता है। लेकिन उससे ज्योति नहीं निकलती जिसे छूकर समीर बहे।
स्पष्ट है कि रोशनी तो किसी भी प्रकार से की जा सकती है लेकिन दीप की ज्योति का लाभ उससे नहीं मिलता। दीपावली पर बार बार कहा जाता है कि दीप जरूर जलाएं।
दीपावली ही नहीं बाद में जब भी कोई कार्यक्रम हो उसमें दीप जलाएं।
केवल दीपावली ही नहीं अन्य पर्वाे पर भी घरो में दीप की ज्योति में ही शुभ कार्य करते हैं।

- करणीदानसिंह राजपूत -
- अधिस्वीकृत स्वतंत्र पत्रकार लेखक,
23,करनाणी धर्मशाला,
सूरतगढ़।
94143 81356

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Dated 11-11-2015.
up dated 28-10-2016.

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