मंगलवार, 10 नवंबर 2015

मुख्यमंत्री स्तर पर लापरवाही ने गुरूशरण छाबड़ा जी की जान ली है, हत्या का मुकदमा चलना चाहिए।


 

पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने आरोप लगाया है कि छाबड़ा जी की जान ली गई है। 
 उनका स्पष्ट ईशारा वर्तमान मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की तरफ था। 
अशोक गहलोत का यह वक्तव्य 7 नवम्बर 2015 को आया है। मुख्यमंत्री स्तर पर लापरवाही ने सत्याग्रही गुरूशरण छाबड़ा जी की जान ली है, जिसके लिए हत्या का मुकदमा चलना चाहिए।
इस घटना ने लोकतंत्र की धज्जियां उड़ा दी हैं। एक प्रकार से वो शहीद हो गये। एक सत्याग्रही के रूप में उन्होंने लोकतंत्र में सरकार तक अपनी बात पहुंचाने का जो तरीका होता है, उसके तहत अनशन करने का रास्ता चुना था लेकिन सरकार ने उसका सम्मान नहीं किया, ऐसा मैं मानता हूं।
मुख्यमंत्री और उनकी सरकार के स्तर पर यह संवेदनहीनता की पराकाष्ठा है, जिसका जवाब उसके पास नहीं है। लोकतंत्र में समस्याओं का समाधान बातचीत के जरिये किया जाता है लेकिन इस सरकार ने कोई डायलाॅग नहीं रखा ये एक दुखद बात है।
कितनी दुखद बात है कि छाबड़ा जी के निधन का समाचार जब सभी ओर फैल चुका था, तब मुख्यमंत्री सुसज्जित थ्री व्हीलर में बैठकर घूम रही थी। अगर उस कार्यक्रम को 2-4 दिन के लिए स्थगित कर देते तो क्या फर्क पड़ जाता। दिन भर उन्होंने अन्य मामलों में ट्वीट किये, अगर एक ट्वीट छाबड़ा जी के दुखद निधन पर भी कर देती तो प्रदेशवासियों को लगता कि मुख्यमंत्री को भी इससे आघात लगा है। देश और दुनिया भी देखती कि राजस्थान में एक सत्याग्रही शहीद हो गया।
मेरा मानना है कि लोकपाल और पूर्ण शराबबंदी जैसे जनहित को मुद्दा बनाकर अनशन पर बैठे छाबड़ा जी से अगर सरकार डायलाॅग रखती तो उनकी जान नहीं जाती। इस मामले में अगर कोई लापरवाही हुई है तो निश्चित रूप से जांच का विषय है। मुझे इस बात पर भी अफसोस है कि मुख्यमंत्री की बात तो छोड़ दीजिए, उनसे उनकी मांगों के संबंध में चर्चा करने हेतु इस सरकार का कोई मंत्री तक नहीं गया। मुख्यमंत्री अपनी व्यस्तता दर्शाते हुए छाबड़ा जी को एक फोन भी कर लेती तब भी उनको यह अहसास हो जाता कि सरकार उनकी तरफ ध्यान दे रही है।

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