टिप्पणी- करणीदानसिंह राजपूत
अड़ोस पड़ोस वाले जानते तक नहीं लेकिन कुछ लोग उनको विधायक के सपने दिखाते हैं।
आज जिसको देखो वो कहता है या कहती है कि विधान सभा का चुनाव लडेंग़े।
पार्टी के हैं तो कहेंगे पार्टी से टिकट मांगेंगे।
वाह क्या बात है।
पहले कई कई सालों तक मेहनत करनी पड़ती थी। पार्टी का और लोगों का काम करना होता था। अब तो किसी इकाई के अध्यक्ष व महामंत्री हैं तो भी पार्टी की टिकट का दावा करने लग जाते हैं। उनको लगता है कि उनके हंसमुख चेहरे को देख टिकट मिल जाएगी और लोग उसी चेहरे को देख वोट दे देंगे। बस। इसी सोच से आज छोटे से छोटा राजनैतिक कार्यकर्ता अपनी अपनी विवरणिका तैयार करने और करवाने में लगा है। अपनी दो चार प्रदर्शनों की न्यूज और खुद के सबसे आगे के फोटो उसमें होते हैं। कुल मिला कर पन्द्रह बीस से तीस चालीस पेज तक की यह रंगीन विवरणिका जिसके हजारों रूपए वसूले जाते हैं। चेहरे के साथ खाता पीता परिवार हो तो संगी साथी भी विवरणिका तैयार करवा देते हैं।
अब केवल ऐसी विवरणिका पर टिकट मांगने की तैयारी की जाती है। संगी साथी ऊपर तक की पहुंच बता देते हैं।
बस टिकट मिल ही गई समझो। झांसेबाज दिल्ली जयपुर के चक्कर लगवाने लगते हैं। झांसेबाजों के तार पार्टियों के अध्यक्ष महामंत्री तक कुछ ना कुछ जान पहचान तक तो होते ही हैं। कोई अध्यक्ष का खास तो कोई महामंत्री का खास।
ये इतने प्यार से बोलते हैं कि टिकटार्थी को लगता ही नहीं कि ये खास संगी लूट रहे हैं।
इस प्रकार की हालत में कहा जा सकता है कि छोटे छोटे इकाई के अध्यक्ष महामंत्री की विधायक बनने की यह सोच कैसे और क्यों बनी या झांसेबाजों ने उत्सुकता जगा दी। यह भी होता है कि कुछ सोच बन जाती है तो फिर झांसेबाजों का काम होता है उसमें पंख लगाने का। ऐसे उड़ाते हैं कि आकाश ही आकाश नजर आता है।
असल में जो बड़े नेता लोग हैं वे कुछ काम ही नहीं कर रहे। ऐसी हालत में दस पन्द्रह इकाई सदस्यता वाले नेता नेतियों को सपना लेना बुरा नहीं लगता। नेता नेती इसलिए लिखा है कि वे स्वयं को कार्यकर्ता होना भूल जाते हैं और नेता नेती समझने लग जाते हैं। अनेक कार्यकर्ताओं को सुहाने स्वपन दिखलातें हैं।
सुहाने सपने देखना बुरा नहीं। लेकिन यह भी देख लेना चाहिए कि क्या क्या लुट गया और क्या क्या लुट सकता है।
इस राजनैतिक लालसा की डगर पर संभल कर चलना ही उचित है।
प्रलोभन देने वाले सपने दिखलाने वाले बड़े हितैषी दिखते है,मगर राजनीति में सीधे नहीं लुच्चे लोग और लुच्चे नेताओं के छोटे छोटे लुच्चे प्रतिनिधि भी होते हैं। कहीं ऐसा ना हो कि सपना लेते हुए सब कुछ लुट जाए और नींद खुले तब अपनी लुटने की दास्तान किसी को बतलाने वाली स्थिति ही नहीं रहे।
सावधानी बरतने के लिए सचेत करना हमारा फर्ज है।
7- 5 - 2013.
Updated 1-2-2017.
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