भूखंडों की राशि जमा मगर पट्टे नहीं देती नगरपालिका:
* करणीदानसिंह राजपूत *
सूरतगढ़ 21 मार्च 2025.
नगरपालिका में भूखंड नियमन की राशि जमा कराने के बावजूद गरीबों और अल्पआय वालों को पट्टे नहीं दिए गये। सरकार के निर्देश स्पष्ट थे मगर नगरपालिका प्रशासन ने काम नहीं किया। राजनेताओं ने प्रशासनिक अधिकारियों ने नगरपालिका के सत्ताधारियों ने एक नहीं सुनी।इन लोगों में कोई एक भी संघर्ष करने वाले धरना प्रदर्शन करने वाले नहीं। गांधीवादी तरीके से आमरण अनशन पर भी कोई बैठने वाला नहीं जिससे शासन प्रशासन का ध्यान खिंचे और कोई काम हो सके। बिना शक्ति दिखाए हाथ जोड़ने से कौन काम करता है? इसलिए भूखंडों के पट्टे नहीं मिले।
* नगरपालिका प्रशासन द्वारा नीलामी के रूपये जमा करवा लेने के बावजूद भूखंडों के पट्टे नहीं देने का एक और मामला भी है जो अधिक गंभीर है। नगरपालिका की अपनी भूमि नहीं थी फिर भी लगभग साढ़े छः वर्ष पूर्व औद्योगिक क्षेत्र के पास किशनपुरा आबादी के नजदीक कॉलोनी घोषित कर भूखंड नीलाम कर दिए। श्रीमती काजल छाबड़ा के अध्यक्षता काल में यह कार्य हुआ। काजल छाबड़ा खरीदारों के साथ नहीं दिखती और खरीदार उसका नाम नहीं लेते कि यह बड़ी गलती उसकी रही। ऐसा कोई प्राईवेट व्यक्ति या कंपनी कर दे तो तुरंत मुकदमा हो जाए लेकिन यहां तो उसका नाम ही नहीं लिया जा रहा।
* भूखंड क्रेताओं ने गुरुवार 20 मार्च 2025
को ज़िला स्तरीय जनसुनवाई शिविर में जिला कलेक्टर से मिलकर परिवाद सौंपा। पत्र में क्रेताओं ने लिखा है कि नगर पालिका सूरतगढ़ द्वारा सितंबर 2018 में औद्योगिक क्षेत्र के पास एक आवासीय कालोनी काटी गई थी जिसके कुल 150 भूखंडों में से लगभग 50 भूखंड खुली नीलामी के द्वारा विक्रय किए गए थे। लगभग 80% लोग पूरी राशि जमा करवा चुके हैं लेकिन उन्हें नगर पालिका द्वारा पट्टे जारी नहीं किए गए है। नगर पालिका न्यायालय के स्थगन का हवाला दे रही है जबकि यह स्थगन नीलामी के एक वर्ष बाद आया था। नगर पालिका चाहती तो उस एक वर्ष में पट्टे जारी कर सकती थी। नगर पालिका ढंग से न्यायालय में पैरवी भी नहीं कर रही है और 6 वर्ष बाद भी कोर्ट में मामला ज्यों का त्यों है।
भूखण्ड खरीददारों अनिल रांका,संजय बैद और पन्नालाल वैष्णव ने कलेक्टर को बताया कि भूमि तरमीम के ऊपर कोई स्थगन नहीं है। ईमानदारी से तरमीम करवा कर नगरपालिका क्षेत्र को तय करके मामले का तुरंत समाधान हो सकता है। इस गंभीर समस्या का प्राथमिकता से समाधान करवाया जावे ताकि सरकार को पूरे पैसे जमा करवा चुके भूखंड खरीदारों को उनका अधिकार मिल सके। इससे पहले भी जिलाकलेक्टर,जिले के प्रभारी मंत्री,विधायक आदि से मिल चुके लेकिन मिलने मिलाने से कोई परिणाम नहीं निकला। अब भी कुछ होने की संभावना कम है।
* इन खरीदारों के पास पैसे की शक्ति हो सकती है मगर एक शक्ति दबाव की होती है जो इनके पास नहीं है। इनके पास धरना प्रदर्शन करने वाला गांधीवादी तरीके से आमरण अनशन करने वाला कोई एक भी नहीं है। इनके पास दबाव डालने की शक्ति नहीं है। उच्च न्यायालय में मामला रिट लगाने की आर्थिक ताकत है मगर वहां जाने की ईच्छा बनाना हंसी खेल नहीं है सो मामला मांगपत्र देने,अधिकारियों से मिलने तक ही सीमित होकर रह गया है। ताकत तो बनाने से ही बनती है। अभी राजस्थान दिवस 30 मार्च आने वाला है। अपनी ताकत दिखलाएं और 21 मार्च को ही लिखित में दें आमरण अनशन की चेतावनी 30 मार्च की। गांधी वादी और शांतिपूर्ण आंदोलन की शासन प्रशासन में से परिणाम निश्चित रूप से निकल कर आएगा। जो प्रशासन ढीला चल रहा है वह जागेगा और अधिकारी कर्मचारी सभी काम कर जमीन तय करेंगे चिन्हित करेंगे और पट्टे मिल पाएंगे।०0०