मंगलवार, 24 अक्तूबर 2023

पार्टियां टिकट नहीं देकर अपमान करे तो मन को दबाये नहीं चुनाव लड़ लेना चाहिए।

 

* करणीदानसिंह राजपूत *

राजनीति और चुनाव में जीत हार का फैसला जनता करती है मगर पार्टियों के आका हारने का खतरा,रिपोर्ट का कहकर टिकट नहीं देकर जनता में अपमानित करे या ऐसा माहौल बनाए तो अपनी ईज्जत के खातिर विद्रोही निर्णय करना गलत नहीं होता। अपमान का घूंट पीकर एक दिन भी कोई चल नहीं सकता फिर जनता में रहना। 

* पार्टियां टिकट नहीं देकर अपमान करे तो मन को दबाकर रखने के बजाय चुनाव लड़ लेना चाहिए। पार्टी का टिकट केवल एक माध्यम होता है और असली फैसला जनता करती है। पार्टी की टिकट जीत नहीं होती। पार्टी के टिकट होते हुए भी हार हो जाती है। इसलिए चुनाव लड़ने का फैसला ही नहीं सच्च में चुनाव लड़कर पार्टी नेताओं की मोनोपोली खत्म करनी चाहिए। पांच दस साल के कामों का फैसला पंद्रह बीस दिनों में और कभी कभी तो तुरंत फुरंत कर दिए जाने की चोट का घाव किसी अस्पताल और डाक्टर के पास नहीं होता। इस चोट का घाव तो चुनाव से ही भरता है। एक पार्टी से नाराज होकर दूसरी पार्टी की ऊंखली में सिर कुटवाने के बजाय निर्दलीय चुनाव लड़ने के ही अधिक लाभ मिलते हैं। सत्ता के लिए किसी पार्टी का समर्थन निर्दली आसानी से कर सकता है और किसी दलबदल कानून की रोक में भी नहीं उलझता। टिकट काटने वालों को सबक सिखलाने और बदला लेने का मन हो तो फैसला सुनाने में देरी नहीं होनी चाहिए। समझदार व्यक्ति देरी नहीं करते।लोग ताते घाव पर चोट पर तुरंत आते हैं और ढीलढाल हो तो किसी ओर के साथ निकल पड़ते हैं। ईज्जत चली जाए तो करोड़ों रूपये फिर किस काम के? कोठियां कारें किस काम की?लोग तैयार हों टिकट कटने पर आक्रोशित हो तो फैसला तुरंत होना चाहिए ताकि आक्रोश ठंडा न हो। सवाल है। आपकी ईज्जत आपके हाथ।


* प्रजातंंत्रीय प्रणाली*


👍 पार्टी ने टिकट सोच विचार करके नही दी। राज करते,चुनाव लड़ते बहुत साल हो गये,जीत की आशा न हो तब पार्टी दूसरे कार्यकर्ता, नेता,दूसरे वर्ग को मौका देती है। पार्टी का यह निर्णय गलत नहीं माना जाता। यह जनता की राय से लिया गया निर्णय होता है।

* आपको भी पार्टी ने ही टिकट दिया और लोगों ने वोट दिए थे तो अब आप तय पार्टी प्रत्याशी को साथ दें वोट दें। 

यह प्रजातंंत्रीय प्रणाली है। आपसे पहले भी कोई था। उसके स्थान पर आपको महत्व दिया। अब नये को महत्व दें। 

 * ऐसी स्थिति में टिकट न मिलने पर विद्रोह करना चुनौती देना घातक और खतरे वाला होता है। क्या चालीस पचास हजार लोग साथ हैं? अब ऐसी स्थिति में दूसरी पार्टी में जाना तो उनके आगे आत्मसमर्पण करना,सरेंडर करना ही कहलाएगा। स्वयं की बुद्धि काम नहीं करती तब सलाहकार चुनाव लड़ाकर सदा के लिए खात्मा करवा देते है या सरेंडर करवा देते हैं। ०0०


दिनांक 24 अक्टूबर 2023.

करणीदानसिंह राजपूत,

पत्रकार,

( राजस्थान सरकार से अधिस्वीकृत)

सूरतगढ़ (राजस्थान)

94143 81356.

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* प्रकाशित कर सकते हैं। *

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