सोमवार, 10 जनवरी 2022

सूरतगढ़ रेलवे स्टेशन के आगे एक नीमऔर एक पीपल मेरे जीवन से जुड़े:करणीदानसिंह राजपूत *

 



सूरतगढ़ जंक्शन रेलवे स्टेशन विशाल बन गया और बहुत बदल भी गया लेकिन जब मैं रेलवे फुट ओवरब्रिज की मुख्यद्वार के पास की ढलान से चढता या उतरता हूं तब पास पास खड़े एक नीम और एक पीपल को देखने कुछ पल रुक जाता हूं। 
इन दो पेड़ों से मेरा जीवन जुड़ा है। मेरा बचपन जुड़ा हुआ है।
नीम का पेड़ मैंने करीब नौ दस साल की उम्र में 1955 के आसपास लगाया था। अब सन 2022 में यह 67 वर्ष का हो चुका है। नीम के पास में ही विशाल पीपल है। पिता रतनसिंह जी इस पीपल के नीचे पुराने घड़ों से पशुओं को पानी पिलाते।
पिताजी रतनसिंह बैस रेलवे में शंटिंग जमादार के पद पर बीकानेर में थे। सन् 1953 में पिताजी की बदली सूरतगढ़ हो गई। हम लोग सूरतगढ़ आ गए। रेलवे स्टेशन के पास ही कुछ क्वार्टर बने हुए थे। एक में हमारा निवास बना। 
मैंने पहली कक्षा बीकानेर में उतीर्ण कर ली थी। मेरा दूसरी कक्षा में सरकारी स्कूल में प्रवेश हुआ। उस समय एक मात्र यही सरकारी स्कूल था जो अब गुरूशरण छाबड़ा राजकीय माध्यमिक विद्यालय बन गया है।



बालपन में एक शौक रहा। पेड़ों के नीचे वर्षा के बाद उगे हुए पौधों को कुछ मिट्टी सहित गट्टा निकाल कर दूसरी जगह पर लगाना। नीम का पेड़ उसी शौक से हमारे क्वार्टर के पीछे लगाया। उसको पानी से सींचने के अलावा झाड़ियां लगाकर सुरक्षित भी किया। महाराजा बीकानेर की कोठी एकदम पास में ही थी। उसमें भी खेलते रहते थे। वहां भी ऐसे गट्टे निकाल कर नीम सरेस खेजड़ी के पौधे लगाए थे जिसमें कोठी के चौकीदार लालूराम नाई का बेटा रूपाराम मेरा साथी सहयोगी रहा। रूपाराम नाई आरसीपी में नौकरी लगा और सेवानिवृत्त होकर गांव चला गया। बीकानेर के नोखा के पास कंवलीसर गांव का निवासी था।
वापस लौटते हैं नीम की कहानी पर। जब नीम ऊंचाई लेने लगा तब रेलवे के निर्माण शाखा कर्मचारियों से आग्रह कर ईंटों से सुरक्षा करवा दी। अधिक बड़ा हुआ तब लोग इसके तने से अपने पशुओं को बांधने लगे। 
हमारे क्वार्टर के पास ही पीपल था। सूरतगढ़ में रेलवे लाईन 1901 में आई थी। उस समय क्वार्टर बने उसके बाद ही पीपल लगाया गया होगा। मेरा अनुमान है कि हम आए तब विशाल पीपल करीब 50 वर्ष का तो होगा। आज 2022 में पीपल करीब 120 वर्ष का हो चुका है। 


पिताजी पुराने घड़ों मटकों को सावधानी से तोड़कर आधा करते थे। उसमें पानी भरते जो पशु पीते रहते थे। पानी करीब दो सौ फुट दूर से लाना होता था। उन दिनों क्वार्टर में नलका बिजली नहीं थी। साप्ताहिक विश्राम के दिन पिताजी का आधा दिन पानी के ठिंगलों की सफाई में लगता। ठीकरी से खुरच खुरच कर काई आदि हटाते। मां बुलाती रहती मगर सफाई पूरी कर और पानी से भरने के बाद ही वहां से हटते। गर्मियों में ठिंगलों की संख्या पांच सात हो जाती थी। पिताजी की सेवानिवृत्ति 1972 में हुई। करीब एक माह तक पार्टियां हुई और ढोल बजते रहे थे। ऐसा प्रेम और भाईचारा जिसकी कोई उपमा नही दी जा सकती।
* रेलवे परिसीमा में इन वर्षों में भी अनेक पेड़ लगाए हैं। उनमें मेरा सहयोग भी रहा है। अनुज प्रेमसिंह सूूर्यवंशी ( सूर्यवंशी उ.मा.विद्यालय) की पर्यावरण प्रेमी टीम ने रेलवे व अन्य स्थानों पर कई सौ वृक्ष लगा दिए हैं।
अब यह कहानी पढ कर आपकी निगाहें भी पुल चढते उतरते जरूर नीम और पीपल को देखेंगी।
* पीपल और नीम के नीचे अब रेलवे विभाग ने कचरा डालना शुरू कर रखा है जबकि एकदम पास ही रेलवे के कार्यालय भी हैं। रेलवे से आग्रह करेंगे वहां साफ सफाई का। पुल भी है तो सफाई तो रखनी ही चाहिए।०0०




मेरे फोटो में सिर पर हैं पिता रतनसिंह और माता हीरा।०0०
दि. 10 जनवरी 2022.
करणीदानसिंह राजपूत
उम्र 76 वर्ष.
( राजस्थान सरकार के सूचना एवं जनसंपर्क निदेशालय से अधिस्वीकृत वरिष्ठ पत्रकार)
सूरतगढ़ ( राजस्थान - भारत)
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