गुरुवार, 2 दिसंबर 2021

रेल मंत्रालय और रेलवे बोर्ड आम भारतीयों के यात्रा हितों पर काम क्यों नहीं कर रहे



* करणीदानसिंह राजपूत *

* सांसद और यात्री समितियां भी चुप *


रेलवे ने देश भर में कोविड-19 के कारण बंद रेल सेवाएं मेल एक्सप्रेस पैसेंजर शुरू कर दी।

अभी महत्वपूर्ण सुविधाएं वरिष्ठ नागरिकों व अन्य प्रकार के यात्रियों को दिए जाने वाले छूट के नियम अभी रोक रखे हैं। छूट की सुविधाएं अधिस्वीकृत पत्रकारों के लिए भी बंद पड़ी हैं।


रेलवे ने मेल एक्सप्रेस ट्रेनों में जनरल कोचों में भी सीटों का आरक्षण करना अनिवार्य कर रखा है जो बेहद परेशानी का कारण बना हुआ है।

जनरल कोच में भी आरक्षण के लिए कम से कम 1 दिन पूर्व का समय चाहिए।(जहां से ट्रेन शुरू होती है वहां तो ट्रेन रवानगी के आधा घंटा पहले तक साधारण रूप से आरक्षित टिकट लिया जा सकता है लेकिन आगे के स्टेशनों पर यह सुविधा नहीं है। 

देश में प्रतिदिन अचानक यात्रा करने वाले लोग भी हैं जो 1 दिन पहले टिकट आरक्षित नहीं करवा पाते जो यात्रा के दिन ही सीधे टिकट खिड़की से टिकट लेना चाहते हैं लेकिन टिकट खिड़की से सीधे टिकट नहीं मिल पाती।

ऐसे लाखों लोग प्रतिदिन रेलवे स्टेशनों से निराश होकर लौटते हैं और मजबूरी में बहुत ऊंचे किराए पर बसों में यात्रा करते हैं। रेलवे को इन वापस जाने वाले यात्रियों से मिलने वाले करोड़ों रूपये के राजस्व का नुकसान होता है।


रेलवे ने जब सभी गाड़ियां शुरू कर दी जिनमें पैसेंजर गाड़ियां भी है।पैसेंजर गाड़ियों के टिकट सीधे टिकट खिड़की से मिलते हैं कोई आरक्षण नहीं होता ऐसी स्थिति में मेल और एक्सप्रेस गाड़ियों के जनरल कोचों के लिए आरक्षण रखना पूरी तरीके से अनुचित है।


ऐसा लगता है कि रेल मंत्रालय,रेलवे बोर्ड और रेलवे फायनेंसियल कमिश्नर कार्यालय  में आम जनता के हित और रेलवे की आय के लिए सोचने वाला कोई अधिकारी नहीं है।

जब पैसेंजर ट्रेन में यात्री को टिकट खिड़की से टिकट मिल सकती है तो मेल एक्सप्रेस के जनरल कोच के लिए टिकट खिड़की से टिकट नहीं दिया जाना नैसर्गिक न्याय और नीति विरुद्ध है। 

देशभर में प्राइवेट समाज सेवी लोगों और संस्थाओं ने रेल विकास और संघर्ष समितियां बना रखी है जो यात्रियों की सुविधाओं के लिए रेलवे से मांग करती रहती हैं।आश्चर्य यह है कि ऐसी रेल समितियों की तरफ से भी जनरल कोच में आरक्षण बंद करने और वरिष्ठ नागरिकों को कंशेसन पुनः शुरू की मांग नहीं उठाई जा रही है। कुछ समितियां सुझाव देती भी हैं तो उन पर कोई कार्यवाही नहीं की जाती। अभी भी रेलवे ने कुछ बंद रेलों को मांग किए जाने के बावजूद भी पुनः शुरू नहीं किया है।


आश्चर्य यह भी है कि हमारे सांसद भी आम जनता के लिए सोच नहीं रहे। रेलवे जो नियम लागू करे जो नियम रोक दे,चाहे जो रेलें महीनों तक बंद करदें। सांसदों की कोई राय होती होगी। रेल मंत्री भी कोई शक्ति रखते होंगे। देश में रेल मंत्रालय है तो रेलवे बोर्ड की जरूरत क्यों है? रेलवे बोर्ड को खत्म किया जाना चाहिए। रेलवे बोर्ड की जरूरत है तो आम भारतीय साधारण यात्री का हित भी जरूरी है।०0०

2 दिसंबर 2021.




करणीदानसिंह राजपूत.

पत्रकार ( राजस्थान सरकार के सूचना एवं जनसंपर्क निदेशालय से अधिस्वीकृत)

सूरतगढ़ ( राजस्थान)

94143 81356.

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