बुधवार, 6 जुलाई 2016

निहालचंद को मंत्री बनाये जाने वाले दिन से लोग खुश क्यों नहीं थे?


आखिर क्या कारण था जिससे लोग कह रहे थे कि गलत को बना दिया:
उस दिन तो काम वाली कोई बात ही नहीं थी,फिर क्यों सही नहीं मान रहे थे निहाल का राज्यमंत्री बनाया जाना?
केन्द्रीय बजट में राजस्थान से भेदभाव तो तीस चालीस से सालों होता रहा है:


- करणीदानसिंह राजपूत -
निहालचंद मेघवाल की घर वापसी तो नहीं कहा जाना चाहिए क्योंकि वे राज्यमंत्री पद से हटाए जाने के बावजूद सांसद तो हैं और लोकसभा के चुने हुए सांसद। निहालचंद को मंत्री परिषद से बाहर किए जाने के समाचार पहले ही आने लगे थे और आखिर वह दिन भी आ ही गया। उनसे मंत्री पद वापस लिए जाने से गंगानगर जिले के अनेक लोग बहुत खुश हैं। ऐसा लग रहा है मानों उन्हें कारूं का खजाना मिल गया हो। कमेंट्स तो आजकल सोशल नेट पर तत्काल ही आने लगते हैं। लोगों ने जो मन में आया वह लिखा।
श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़ दोनों जिले अति महत्वपूर्ण हैं। एक पाकिस्तान से लगता हुआ और दूसरा पंजाब हरियाणा से लगता हुआ। दोनों जिलों की समस्याएं और कार्य केन्द्र से संबंधित काफी हैं इसलिए यहां का प्रतिनिधित्व केन्द्र के मंत्री मंडल में रहना चाहिए था।
निहालचंद पर आरोप है कि उन्होंने इलाके के लिए कुछ नहीं किया। नई रेलें चलाने,रेलों का विस्तार कराने व सड़कें बनवाने जैसे कार्य नहीं हुए। लोगों की बात में दम है लेकिन क्या सच्च में निहालचंद ने ये कार्य नहंी करवाए? क्या हो सकता है कि कभी कोई मंत्री जानते बूझते अपने क्षेत्र में काम नहीं करवाए?
इनके लिए बजट उपलब्ध करवाना सरकार का दायित्व होता है। बजट उपलब्ध नहीं कराने का या कम कराने का जो दोष केन्द्रीय सरकार पर या प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर डाला जाना चाहिए वह दोष अकेले निहालचंद पर डाला जा रहा है।
रेलों की बात पर पहले चर्चा करें कि इससे पहले चालीस पचास सालों से सभी सुनते रहे हैं कि केन्द्र में किसी भी दल की सरकार रही हो,राजस्थान को रेलों का तोहफा कम ही मिलता रहा है। रेलों की चलाने की मांग हो या नई रेल पटरियां बिछाने की मांग हो,दक्षिण इलाके के मंत्री ले जाते रहे हैं। रेलों के विस्तार में भी यही होता रहा है। यही हालत सड़कों की रही है। निहाल के अल्प कार्यकाल की बात नहीं कर रहा हूं,तीस चालीस सालों की बात कर रहा हूं। तथ्य देखें और आँकड़े देखलें।
निहालचंद चाहे सांसद हो चाहे राज्यमंत्री रहे हों इलाके की बात केन्द्र में रखना उनका दायित्व था। रेलों सड़कों की मांग तो उन्होंने रखी ही थी लेकिन बजट देना सरकार का ही दायित्व था। केन्द्र में पहले कांग्रेस की सरकारों के समय आरोप लगाये जाते रहते थे कि राजस्थान से भेदभाव किया जाता हें रेल बजट दक्षिण वाले उड़ा ले जाते हैं। अब भाजपा की सरकार केन्द्र में आई तब यह दायित्व बनता था कि वे हिन्दुस्तान के हर राज्य को समुचित बजट देते और सभी क्षेत्रों में आवश्यकतानुसार विकास करते। ऐसा हुआ नहीं या ऐसा किया नहीं? निहालचंद बजट जैसी चीज छीन कर तो ला नहीं सकते थे? राजस्थान सरकार के प्रपोजल भी केन्द्र में जाते रहे होंगे। मुख्यमंत्री राजस्थान भी राजस्थान में विकास चाहती रही होंगी। तो क्या माना जाए कि वे भी असफल रहीं?
जहां तक रेलों के विस्तार की बात है। ये मांगे और सुझाव बीकानेर के सांसद अर्जुनराम मेघवाल ने भी दिए थे। लेकिन विस्तार तो नहीं हो पाया, जो रेलें बीकानेर आकर ठहर जाती हैं उनको श्रीगंगानर तक विस्तार देने की मांग तो अर्जुनराम ने भी की थी। उनके संसदीय क्षेत्र में गंगानगर जिले का हिस्सा भी आता है।
अब श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़ जिलों की केन्द्र से संबंधित हर कार्य के लिए अन्य को खोजना पड़ेगा। भाजपा वाले कहने भी लगे हैं कि निहाल का हाथ पकड़ कर काम करवा लेते थे अब बीकानेर जाकर अर्जुनराम का हाथ पकड़ कर काम करवा लेंगे। अब समझ में नहीं आता कि निहालचंद के हाथ पकड़ कर काम करवा लेते थे तब कौनसे काम रह गए जो हाथ पकड़ कर करवा नहीं सके?
वैसे सच्च तो यह है कि निहालचंद को मंत्री बनाये जाने वाले दिन से लोग खुश नहीं थे।
लोग कह रहे थे कि गलत को बना दिया गया। उस दिन तो काम वाली कोई बात ही नहीं थी,फिर क्यों सही नहीं मान रहे थे निहाल का राज्यमंत्री बनाया जाना? आखिर उन कारणों को भी अब आलोचनाओं में शामिल किया जाना चाहिए कि निहालचंद से लोग खुश क्यों नहीं थे? निहालचंद पर एक आरोप था कि रायसिंह नगर विधानसभा सीट उनके असहयोग के कारण भाजपा को गंवानी पड़ी। निहालचंद का संसदीय चुनाव में टिकट दिए जाने का भी विरोध हुआ था लेकिन भाजपा के पास में अन्य कोई चेहरा नहीं था। निहालचंद को मंत्री परिषद में स्थान मिलने के बाद दुराचार के आरोप सहित शिकायतें भी हुई थी। पीएम का बुलावा भी आया और वहां भी हाजिर हुए थे। यह भी आता रहा था कि मुख्यमंत्री खुश नहीं थी। उन्होंने जो नाम भिजवाए थे उनमें से मोदी मंत्री परिषद में किसी को भी शामिल नहीं किया गया था। वे अपने सांसद पुत्र को केन्द्र के मंत्रीमंडल में स्थान दिलवाना चाहती थी। निहालचंद के राज्यमंत्री बनाए जाने के बाद भी केन्द्र में शिकायतें होती रही थी लेकिन उस समय उन पर कोई कार्यवाही नहीं हुई। अगर उस समय हटाए जाते तो लोगों के आरोपों की पुष्टि होती और बवाल मचता। वैसे जिन लोगों ने आरोप लगाए उन्होंने भी कोई सबूत नहीं दिए थे।
वैसे उनको हटाए जाने की चर्चाएं तो कई दिनों से आ रही थी। ऐसी स्थित में उन्होंने अपने कार्यों की समीक्षा जरूर की होगी कि गलतियां या कमियां कहां कहां रही हैं? निहालचंद ने मंत्री परिषद से हटाए जाने के बाद पहला वक्तव्य जो मीडिया को दिया है कि वे पार्टी के निष्ठावान कार्यकर्ता थे और रहेंगे। यही वक्तव्य होता है। अब वे पद विहीन होकर 8 जुलाई को अपने क्षेत्र में लौटेंगे व जनता के रूबरू होंगे।
वैसे सांसद का दायित्व भी कम नहीं होता है और उनके पास में वक्त
है कुछ कर दिखलाने का।



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