गुरुवार, 8 अक्तूबर 2015

ममता सारस्वत को पोषाहार घोटाले से बचाने में सूरतगढ़ प्रेस मुंह क्यों छिपा रही है?


प्रेस क्लब पत्रकार वार्ता आयोजित कर ममता का बयान लेकर बता सकता है सच्च।
सूरतगढ़ में पोषाहार गायब होने में कई बार जाँचें हो गई:99 हजार की रिकवरी के नोटिस जारी हो गए:
लेकिन प्रेस क्लब के सदस्य पत्रकारों ने पांच दस लाइन की न्यूज तक नहीं बनाई:
ममता सारस्वत सूरतगढ़ की बेटी है तो फिर सूरतगढ़ के पत्रकारों का कुछ तो सोच होगा?
स्पेशल रिपोर्ट-
सूरतगढ़। महिला बाल विकास विभाग सूरतगढ़ में बच्चों के लिए आने वाले पोषाहार में लाखों की गड़बड़ी होने और जाँच में सारस्वत धर्मशाला में काफी संख्या में भरे हुए थैले सारस्वत धर्मशाला में बरामद होने,कई बार जांच हो जाने,93 हजार रूपए की तत्कालीन सीडीपीओ व स्टोरकीपर से वसूली के आदेश हो जाने के समाचार श्रीगंगानगर से पत्रिका में लगते रहे हैं।
जिस अविधि में यह गड़बड़ी हुई उस अवधि में ममता सारस्वत यहां पर महिला बाल विकास अधिकारी यानि कि सीडीपीओ थी। आजकल वे हनुमानगढ़ में इसी पोस्ट पर हैं।
ममता सारस्वत का पीहर सूरतगढ़ में है और उनके पहले राजस्थान की अधिनस्थ सेवाओं में चयन होने,सर्विस लगने के बाद तथा अब सन 2012 की राजस्थान प्रशासनिक सेवा प्रतियोगिता में चुनी जाने के समाचार लगे हैं तथा बधाई के बोर्ड अभी लगे हुए हैं।
ममता सारस्वत के कार्यकाल में पोषाहार में गड़बड़ी हुई वह निश्चित रूप से गरीब बच्चों के मुंह में जाने वाला था। उसमें जो भी दोषी हो वह बचना नहीं चाहिए।
लेकिन सूरतगढ़ के जो पत्रकार चयन होने पर कसीदे काढ़ते रहे हैं,उन्होंने कभी एक समाचार भी नहीं बनाया। सूरतगढ़ के पत्रकारों ने यह जाानने की कोशिश भी नहीं की कि सच्च क्या है?
श्रीगंगानगर से पत्रिका में कई समाचार छपे। लेकिन यहां के प्रेस क्लब के अध्यक्ष हरिमोहन सारस्वत व सदस्य पत्रकारों व अखबारों ने कभी भी ममता के लिए एक लाइन लिखने की कोशिश नहीं की। ममता से पूछा तक नहीं। उसका पक्ष भी जानने की कोशिश क्यों नहीं की? ममता के बचाव में खोजबीन करना तो दूर रहा।
सूरतगढ़ प्रेस क्लब के अध्यक्ष व सदस्य पत्रकार तथा अन्य पत्रकार जो स्वागत सत्कार करते रहे हैं वे अब पीछे क्यों हैं?
प्रेस क्लब के सदस्य बाहर के अधिकारियों को बचाने में उनको क्लीन चिट देने में ऐसे समाचार छापने में आगे रहे हैं तो फिर ममता तो सूरतगढ़ की है उसके लिए एक लाइन क्यों नहीं लिखी।
सूरतगढ़ के थानाधिकारी सीआई रणवीर साईं पर आरोप था कि पकड़े गए तीन चोरों को छोड़ दिया गया। आंदोलन चला। जांच की गई और पुलिस की जाँच में एक हैडकांस्टेबल को आरोपी बना कर जाँच का पत्र थमा दिया गया। पत्रकारों ने घटना की सच्चाई पर दो लाइन नहीं लिखी। सीआई को क्लीन चिट का शीर्षक लगा कर समाचार छापा। यह संदेश पत्रकार किसको देना चाह रहे थे? इस सीआई के कार्यकाल में आधी कीमत सस्ती कीमत पर सामान देने की बुकिंग के नाम पर लाखों रूपए लेने वाले थाने ले जाने के बाद छोड़ दिए गए थे।
अब विकलांगों को नौकरी देने के नाम पर तीस तीस हजार के ड्राफ्ट लेने वाले कस्टडी में तो लिए गए हैं मगर कार्यवाही क्या हुई है? कसीदे काढऩे वाले पत्रकार कैसे भूल गए वह घटना। क्लीन चिट का समाचार इस तरह से लगाया मानों कोई बहुत बड़ा किला फतह करके थानाधिकारी आया हो और अब सदा के लिए यहां पर पोस्टिंग हो गई हो। नगरपालिका के ईओ पर आरोपों के समाचार व एसीबी की जाँचें होने व कार्यवाही के समाचार भी नहीं लगाए गए। उपखंड अधिकारी के आवास पर नगरपालिका के 8 लाख रूपए लगा दिए गए। गलत लगाए गए लेकिन पालिका को हर घोटाले में क्लीन चिट देकर बचाव करते रहे। बाहरी अधिकारियों को बचाने में जब आगे आते रहे। तब अब क्या हो गया कि ममता सूरतगढ़ की होते हुए भी उसके लिए कोई समाचार नहीं बनाया गया?

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