मंगलवार, 21 जुलाई 2015

हाथी निकल जाता है लेकिन कई बार पूंछ फंस जाती है: सावधान सरकारी स्टाफ:


- करणीदानसिंह राजपूत - 
हर व्यक्ति चाहे वह सरकारी सेवाओं में हो चाहे गैर सरकारी किसी व्यवसाय में हो,किसान मजदूर हो। उसकी आइडी यानि कि पहचान एक ही होती है। एक व्यक्ति की दो पहचान नहीं हो सकती और दोहरी पहचान है या वह रखता हे तो मतलब स्पष्ट  है कि उसमें एक पहचान फर्जी है और उसका इस्तेमाल कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में गलत हो रहा है,जानते बूझते गलत इस्तेमाल किया जा रहा है। सरकारी अधिकारी व कर्मचारी है तो उसका जो नाम सरकारी रिकार्ड में है वहीं उसकी असली पहचान है। असली आइडी है। उसके अलावा अगर वह व्यक्ति अनय नाम से पहचान बनाने की कोशिश करता है या कर चुका है तो वह गैर कानूनी ही है। आदमी एक और एक फोटो को वह सरकारी नाम के साथ और उसी फोटो को दूसरे नाम के साथ इस्तेमाल करता है तो बहुत बड़ा धोखा है। निश्चित रूप में वह कोई ऐसा कार्य कर रहा है जिसकी अनुमति उसका सरकारी विभाग नहीं देता।
उदाहरण के रूप में एक शिक्षक सरकारी सेवा में वी नाम से है और फोटो का इस्तेमाल करता है। आज वेतन आयोग की सिफारिश पर वेतन भी बहुत अच्छा होता है। इसके बावजूद अपनी अलग पहचान अलग नाम ए धारण कर प्राईवेट कोचिंग सेंटर चलाने का कार्य भी करना। उसके संपर्क में मोबाइल नम्बर देना और वहां भी फोटो एक का ही इस्तेमाल करना। फर्जी नाम से अन्य नाम से फेस बुक पर एकाउन्ट खोलना। कानूनी जुर्म है। लेकिन पैसे के लिए गुमराह होना या अपराध करना जायज समझने लगते हैं। यहां बात मीडिया से जुड़े लोगों की भी है कि वे भी फर्जी नाम को हाइलाईट करने में उकसाते हैं। सही नाम होते हुए भी फर्जी नाम को छापने में अपनी यारी या दोस्ती समझते हैं। आश्चर्य तो यह होता है कि सरकारी स्टाफ फर्जी नाम से उसी संस्था में कार्यक्रम तक आयोजित कर लेते हैं। जिसकी विभाग अनुमति नहीं देता।

एक और उदाहरण । यह दूसरा उदाहरण भी शिक्षा विभाग का ही है।
एक व्यक्ति शिक्षक प्रशिक्षण महा विद्यालय में नियमित छात्र के रूप में प्रवेश लिए हुए है। वह वहां की कक्षाओं में जाता नहीं है लेकिन उसकी उपस्थिति वहां लगती रहती है। वह सैंकड़ों किलोमीटर दूर अन्य सरकारी महा विद्यालय में स्व वित्त पोषी कक्षाओं को नियमित रूप से पढ़ाता है और वहां से हजारों रूपए मासिक पारिश्रमिक लेता है। पूरे वर्ष में तीस बत्तीस हजार रूपए। वहां हाजिरी लगती हे ओर उसकरी प्रमाणिकता पर पारिश्रमिक मिलता है। व्यक्ति एक ही है उसकी हाजिरी दो स्थानों पर लग रही है। वह परीक्षा देता है और बी.एड.की डिग्री प्राप्त कर लेता है।
किसे पता चलता है। लेकिन पता चल जाता है तब?
जब वह सरकारी महाविद्यालय में अध्यापन के लिए नियमित रूप में हाजिरी लगा कर पढ़ाता है। तो स्पष्ट है कि वह डिग्री फर्जी भी है और सरकार को धोखा देने व फर्जी दस्तावेज तैयार कर असली की जगह इस्तेमाल करने का अपराधी। जिसकी सजा सात साल कड़ी कैद की है। अब इस फर्जीवाड़े में वह अकेला नहीं फंसता। शिक्षक प्रशिक्षण महा विद्यालय में हाजिरी लगाने वाला भी साथ ही फंसता है।
दिल्ली सरकार का कानून मंत्री तोमर फर्जी डिग्री में जेल में बंद है।
अभी भी फर्जी आईडी का उपयोग करते और समारोह करते लोग डरते नहीं है।

आदमी अधिक कमाने के लिए नैतिकता को परे रख कर अनैतिक गैर कानूनी कार्य करता है। कहीं सरकारी नौकरी करता है तो वहां के नियमों को धत्ता बतलाते हुए अन्य कार्य करता है जिसकी मंजूरी उसके विभाग की ओर से नहीं होती मगर वह करता है। सरकारी वेतन जो आज काफी अच्छा है मगर उसमें धाप नहीं।
कोई कह दे तो जवाब मिलता है कि इसमें गलत क्या है?
ऐसा तो चलता है।
कितने ही ऐसा करते हैं।
फंसेंगे तब जो होगा देखा जाएगा।
लेकिन ये होशियारी कभी न कभी धोखा दे जाती हैं।

लोगों को खासकर शिक्षित लोगों को भी परवाह नहीं है कि वे दोहरी आईडी से गलत कार्य कर रहे हैं।
लेकिन एक तथ्यपूर्ण बात कहना चाहता हूं कि हाथी निकल जाता है लेकिन पूंछ फंस जाती है और वह कई बार दंड तक पहुंचा देती है।
साल दो साल नहीं दस पन्द्रह साल बाद भी कहीं न कहीं कानूनी दांव पेंच में फंस ही जाता है।
 

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