होली दहन के अगले दिन छारंडी( धुलंडी) के दिन से यह गणगौर त्यौहार चैत्र बदी एकम से शुरू होता है और 16 दिन तक मनाया जाता है। चैत्र सुदी तीज को गाजेबाजज के साथ गणगौर की सवारी निकाली जाती है। उसी दिन मेला भरता है।
* होलिका की राख से सोलह पिंडियां बनाई जाती है। शीतला अष्टमी के दिन से गणगौर की निकाली जाती है।कुंवारी कन्याएं और विवाहित गणगौर का पूजन करती हैं। यह त्यौहार शिव और पार्वती के अटूट दापंत्य के स्मरण पूजन में मनाया जाता है। शिव गण और पार्वती गौर। राजस्थान में ईशर गवर बोला जाता है। गणगौर पर्व के गीत गाते हुए कन्याएं बाड़ियों में पहुंचती हैं और पुष्प दूब आदि लेकर लौटती हैं। सुबह के समय गीत सुनाई देने लगते हैं।
राजस्थानी की प्रसिद्ध पत्रिका माणक ( जोधपुर) के अप्रैल 1989 के अंक में मेरा लेख छपा था।
उसके पांच पृष्ठों के फोटो यहां प्रस्तुत हैं। लेख पढा जा सकता है।
8 मार्च 2023.
करणीदानसिंह राजपूत,
पत्रकार,
सूरतगढ़.
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