*करणीदानसिंह राजपूत*
कलयुग में भगवान राम के सेवक हनुमानजी ही तारणहार हैं और इसलिए सर्वत्र पूजनीय हैं। सबसे अधिक स्थानों पर हनुमानजी के मंदिर हैं। यहां तक की छोटे से गांव मे भी मंदिर हैं तथा सबसे अधिक मंदिर बनाये जा रहे हैं। अनेक देवी देवताओं के मंदिरों में हनुमानजी की प्रतिमाएं भी स्थापित की हुई हैं।
हनुमानजी का पूजन वैसे तो हर दिन ही होता है लेकिन मंगलवार और शनिवार को विशेष होता है। भक्त लोग उपवास भी हनुमानजी के वारों पर अधिक करते हैं।
यह मान्यता भी है कि कलियुग में कोई अन्य सुने ना सुने लेकिन हनुमानजी जरूर सुनेंगे।
ऐसा कौनसा कष्ट है जो हनुमानजी दूर नहीं कर सकते। यानि कि हनुमानजी हर कष्ट को दुख को दूर करने वाले हैं।
बजरंग बाण में तो अपार शक्ति मानी जाती है कि उसके पठन से तो सब कष्ट दूर हो जाते हैं।
हनुमानजी को सिंदूर लगाने का भी विधान है। भोग किसी भी मिष्ठान का लगाया जा सकता है लेकिन विशेष कर पेड़ा बूंदी सर्वाधिक चढाए जाते हैं।
देश भर में अनेक हनुमंत स्थल पूजनीय हैं जहां प्रतिदिन हजारों नर नारी दूर दूर से दर्शन पूजन को पहुंचते हैं। हनुमानजी ब्रह्मचारी हैं इसलिए उनकी प्रतिमा का स्पर्श भक्त पुरूष ही करते हैं।
हनुमानजी अतुलनीय बलशाली माने जाते हैं। ऐसी मान्यताओं और आस्थाओं को रखते हुए ही पूजन अर्चन करना चाहिए।
आज कलियुग में हनुमानजी का पूजन तो सर्वाधिक हो रहा है लेकिन उनकी कृपा कितने लोगों को मिल रही है या मिल पाती है। कुछ ऐसे भी होते हैं जिनके मन में यह होता रहता है कि उन पर कृपा आ नहीं रही है।
ऐसी मान्यता है कि हनुमानजी की पूजा करने वाले के शरीर पर काले नीले और हरे रंग के कोई वस्त्र धारण किए हुए नहीं होने चाहिए। ऐसा मानते हैं कि ये रंग हनुमानजी को प्रिय नहीं है। हनुमानजी इन रंगों को पसंद नहीं करते।
( राजस्थानी के प्रसिद्ध साहित्यकार श्री मनोज कुमार स्वामी ने रंगों वाली बात बताई। स्वामी जी को यह महत्वपूर्ण बात पं.शंकरलाल शास्त्री जी ने बताई जब वे सूरतगढ़ में रिश्तेदारी में आए और करीब पन्द्रह दिन रूके थे। शास्त्री जी की आयु 90 वर्ष के आसपास होगी।वे राजस्थान के नागौर जिले के अलाय में रहते हैं।)00 दि.18 मार्च 2020.
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