* करणीदानसिंह राजपूत *
हिंदी पत्रकारिता दिवस पर बधाईयों शुभकामनाओं के संदेश पत्रकारों को दिए जा रहे हैं। पत्रकार भी एक दूसरे को शुभकामनाएं दे रहे हैं। इस दिवस पर यह जानना भी जरूरी है कि हिंदी पत्रकारिता में भी अनेक प्रकार से भ्रष्टाचार प्रवेश करा दिया गया है। खुद के लाभ के लिए अनेक प्रकार के गड़बड़ घोटाले करने में अनेक हिंदी समाचार पत्रों के मलिक कोई शर्म महसूस नहीं कर रहे हैं। हिंदी अखबारों में आज संवाददाता ठेका पद्धति पर अनुबंध पर काम कर रहे हैं। समाचार पत्र उन्हें कोई वेतनमान देना नहीं चाहता इसलिए समाचार पत्रों के मालिकों ने अपनी ही अलग श्रमिक उपलब्ध कराने वाली कंपनियां बना दी है। अखबारी लाइन में जो काम करना चाहते हैं वे उन कंपनियों के माध्यम से अखबार में काम करते हैं। संपादक उप संपादक संवाददाता व अन्य कर्मचारी नियुक्त करते हैं। जिस दिन नहीं बनी उस दिन उसकी छुट्टी हो जाती है।* पत्रकारों के लिए वेतनमान तय करने के लिए जो आयोग गठित हुए उनकी रिपोर्ट समाचार पत्रों ने लागू नहीं की और अपने-अपनी कंपनियों बना दी। यह अनुबंध हर वर्ष कुछ राशि बढ़ाता है।
* समाचार पत्रों के प्रबंधन मालिकों के विरुद्ध कदम उठाकर संघर्ष किए जा सकते हैं। अपनी आवाज पर काम कराने के लिए एकता जरूरी है। सारे संवाददाता सारे संपादक विभिन्न समाचार पत्रों में काम करने वाले यदि एक निश्चित दिन तय कर अनिश्चित दिन मांग पूरी होने तक हड़ताल काम बंद करें तो सफलता मिल सकती है। लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है जब तक एकता प्रदर्शित नहीं हो तब तक सफलता नहीं मिल सकती।
* समाचार पत्रों के समूह मलिक यह कहते मिलते हैं कि सभी के लिए वेतनमान लागू करने के लिए बहुत बड़ी रकम चाहिए जो नहीं है लेकिन उनकी खुद की धन संपदा हर साल करोड़ों रुपए बढ़ जाती है। वह कैसे बढ़ती है? क्या उसमें कर्मचारियों का कोई रोल नहीं होता? यह विचारणीय बिंदु है? इस बिंदु पर अखबारों के मालिक काम करना तो दूर रहा सोचना भी नहीं चाहते। यदि उन्हें भनक पड़े की कोई कर्मचारी सर उठा रहा है तो तुरंत उसका स्थानांतरण दूर कर देते हैं या फिर हटा ही देते हैं। कोई भी कमी निकाल कर हटा सकते हैं। एक ही शब्द वाक्य है कि आपकी परफॉर्मेंस ठीक नहीं है।
👍अब हम एक और पक्ष को भी रखना चाहते हैं कि अखबारी लाइन में अनेक वे लोग भी आ गए हैं जिनकी समाचारों से कोई रुचि नहीं है। वे सरकारी स्तर पर जो लाभ मिलते हैं केवल वे लाभ विज्ञापन का बस यात्रा का चिकित्सा सुविधा का लेना चाहते हैं। भूखंड का भी लाभ ।
समाचार पत्र निकालना प्रतिष्ठा भी माना जाता है और इसके लिए भी समाचार पत्र लाईन में प्रवेश कर लेते हैं। इनके अखबार उस संख्या में नहीं निकलते जो रिकॉर्ड घोषित है। आय व्यय सभी फर्जी।
सरकार ने अवैध कार्य रोकने के लिए नियम तो बहुत बनाए हैं लेकिन फिर भी चोर दरवाजे हैं। * डिक्लेरेशन यानि घोषणा पत्र में हिन्दी भाषा लिखा है लेकिन अखबार किसी और यानि दूसरी भाषा में छापा जा रहा है।
अखबार आजकल डिजिटल रूप से इंटरनेट पर डाल दिए जाते हैं और वास्तविक ग्राहक नहीं है। केवल फर्जी आंकड़े दिखाए जाते हैं। यहां प्रश्न है लघु दैनिकों का जो अधिकांश गड़बड़ में हैं। डिजिटल रंगीन डाला जाता है जबकि अखबार काली स्याही प्रिंट होता है। मतलब यह भी एक धोखा।
* साप्ताहिक पाक्षिक अखबार हैं जो जितनी प्रतियां दिखाते हैं उतनी प्रिंटिंग प्रेस से निकलती नहीं है।
* अधिस्वीकरण यानि मान्यता के लिए सरकार ने नियम निकाल रखे हैं लेकिन उन नियमों में भी तोड़मरोड़ करके किसी तरह से खुद को अधिस्वीकृत करा ही लेते हैं, अपने मित्रों को भी फर्जी अधिस्वीकरण के लिए चलाना चाहते हैं।
* राजस्थान सरकार ने स्वतंत्र पत्रकार नवीनीकरण के लिए इस बार सख्ती की जिस कारण से 2 साल के समाचारों की 36 कटिंग अनिवार्य कर दी। जिन्होंने न्यूज़ की कटिंग पूरी नहीं की उन 400 से अधिक संवाददाताओं का अधिस्वीकरण नवीनीकरण नहीं हो पाया था। अपुष्ट सूचनाएं और चर्चा भी है कि उस्ताद माने जाने वाले कुछ स्वतंत्र पत्रकारों ने गुप्त रूप से अपनी न्यूज़ बनाई और प्रिंटिंग प्रेस में अखबारी रूप में छपाई कि यह फलां अखबार में इस तारीख में छपी। असली अखबार से मिलान कराया जाए। पीआरओ से असली से मिलान की रिपोर्ट करवाई जाए,कुछ पूरे पृष्ठ मांग लिए जाएं तो यह होशियारी ठगी क्या दंड देगी?
* जन संपर्क विभाग ने जब प्रपत्र भराए थे। उनमें स्पष्ट था कि जिस अखबार से अधिस्वीकरण करा रहे हैं उसके अलावा किसी अन्य में कोई जुड़ाव नहीं है। लेकिन दूसरे में भी कार्यरत हैं और अभी भी हैं। सरकार को झूठी रिपोर्ट भी दे रहे हैं। आखिर उस दूसरे की आय को किस तरह से छिपा रहे हैं। किसी अन्य को अधिस्वीकरण दिलाने के लिए अपने अखबारों में उनके नाम से न्यूज भी लगा रहे हैं। सवाल उठता है कि न्यूज का कितना पारिश्रमिक उक्त संवाददाता को भेजा गया। यह अखबार के खाते में दर्ज होना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं है। स्वतंत्र पत्रकार की आय भी तो अखबारी लाईन से होनी चाहिए। यदि आय नहीं है तो व्यवसायिक नहीं शौकिया छपना माना जाता है। इसमें अधिस्वीकरण नहीं हो सकता आय का स्रोत पत्रकारिता दिखना होता है।* यहां पर यह भी है कि अनेक अधिस्वीकृत स्वतंत्र पत्रकारों ने सरकार को प्रपत्र में लिखित दिया है कि कहीं पर भी उनका काम नहीं है आजीविका का अन्य स्रोत नहीं है। केवल पत्रकारिता है,लेकिन वे अन्य संस्थाओं में नियुक्त होते हुए पैसा उठा रहे हैं। यदि सख्त जाचें हों तो फर्जी दस्तावेज पेश करने वाले ऐसे
पत्रकार धोखाधड़ी में आएंगे। ऐसे कुछ वरिष्ठ पत्रकार हर माह सम्मान राशि भी ले रहे हैं जो गड़बड़ी में आगे हैं। पकड़ में आए तब क्या होगा?
👌ऐसे फर्जीवाड़े वाले पत्रकार असल में पत्रकारिता को ही बदनाम कर रहे हैं।अनेक पत्र बाजार में कहीं भी दिखाई नहीं देते केवल गुप्त रूप से छपते हैं फाइल कॉपियां छपते हैं और सरकार से लाभ ले रहे हैं। कुछ लाभ लेना चाहते हैं। सालों से गुप्त। स्वतंत्र पत्रकार का अधिस्वीकरण और दूसरे अखबार में संपादक भी बने हुए।
*असल में जितने अखबार बाजार में आने चाहिए एक या दो प्रतिशत ही आ रहे हैं लेकिन सरकार से सारे लाभ लेना चाहते हैं। सच में कहा जाए तो हिंदी पत्रकारिता में भी भ्रष्टाचार का प्रवेश हो गया है। इस कारण से आम लोगों को हिंदी पत्रकारिता से जो लाभ मिलना चाहिए वह मिल नहीं रहा है क्योंकि भ्रष्ट पत्रकार जनता के मुद्दों को जनता की समस्याओं को उठाना नहीं चाहते। सरकार से लाभ लेना चाहते हैं। यह नेताओं और अधिकारियों की चाराजोई करके अपना घर भर रहे हैं। ये फर्जी फाईल कापियां निकालने वाले असली अखबारों का हिस्सा हड़प रहे हैं। ये जनता के हितों के लिए कोई काम नहीं करते।
इन फर्जी अखबारों और पत्रकारों के विरुद्ध भी कार्य करने की आवश्यकता है, ताकि भ्रष्टाचारी अखबारी लाइन को छोड़ दें।०0०
30 मई 2025. हिंदी पत्रकारिता दिवस.
करणीदानसिंह राजपूत,
पत्रकारिता 61 वां वर्ष.
(राजस्थान सरकार से अधि स्वीकृत आजीवन)
सूरतगढ़ ( राजस्थान )
94143 81356
*******
००००००