आपातकाल के बंदियों को पेंशन:वसुंधरा राज मंत्रीमंडल का निर्णय:सूरतगढ़ में आपातकाल:
विशेष रिपोर्ट- करणीदानसिंह राजपूत
सूरतगढ़,5 जनवरी 2014.
आपातकाल के मीशा और रासुका बंदियों को भाजपा के पिछले वसुंधरा राज में पेंशन के नियम बन गए थे लेकिन कांग्रेस की गहलोत सरकार ने रोक लगा दी थी,लेकिन भाजपा राज दुबारा आने पर वह पेंशन दुबारा लागू कर दी गई है जो कि कल्याणकारी राज की कार्यवाही का एक शुभ संकेत है। अभी इसमें शांति भंग में बंदी बनाए गए और नजरबंद किए गए लोगों को पेंशन सुविधा देना बाकी है।
इंदिरा गांधी के राज में सब कुछ वह नहीं हुआ जो सराहा जाए। सन 1975 में 25 जून को आपातकाल लागू कर संपूर्ण देश को जेल बना दिया गया था उसकी आलोचना संपूर्ण संसार में हुई थी। बहुत दर्दनाक हालात में लोग गुजरे। हजारों लोग तबाह हो गए। अनेक लोग मौत के शिकार हुए अनेक के कारोबार ठप हुए तथा बाद में पनप ही नहीं सके।
देश के कई लेखकों ने अपने लेखों में लिखा है कि आपातकाल के घावों को समय ने मरहम लगाई है। लेकिन यह सच नहीं है। केवल शब्दों में लिख देने मात्र से मरहम नहीं लग पाती। उन लेखकों को मालूम नहीं कि अनेक परिवार वे पीड़ाएं अभी भी भोग रहे हैं। जिनके रोजगार बंद हो गए, कारोबार उजड़ गए वापस पनपे ही नहीं,उनके मरहम कैसे लग गया? आपातकाल लागू करने की तिथि को 40 साल हो चुके हैं। आपातकाल को भोगने वाले लोग करीब 70 प्रतिशत तो अब इस संसार में नहीं है, जो हैं वे सब 50 साल से उपर की आयु में यानि कि वृद्धावस्था में है। जो जीवित हैं उनमें से अनेक वृद्धावस्था में भयानक अभावों व कष्टों में जीवन व्यतीत कर रहे हैं और जो संसार से विदा हो चुके हैं उनके परिवार कष्टों भरा जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
अनेक लोग जिनमें पत्रकार लेखक बुद्धिजीवी और राजनीतिज्ञ शामिल हैं वे इस पीड़ा को जानते बूझते भी समझ नही पा रहे।
सूरतगढ़ के लोगों में में भी आपातकाल के शिकार अनेक लोग हुए। लेकिन यहां जांबाज जोशीले लोग भी हैं। आपातकाल के लगाए जाने के अगले ही दिन रेलवे स्टेशन के आगे विरोध में आम सभा करके सरकार को चुनौती तक दे दी गई थी। उस सभा में गुरूशरण छाबड़ा व हरचंदसिंह सिद्धु सहित कई जांबाजों ने संबोधित किया था।
गिरफ्तारी के बाद गुरूशरण छाबड़ा ने राजनैतिक बंदी का दर्जा दिए जाने की मांग को लेकर श्रीगंगानगर जेल में स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त 1975 से आमरण अनशन शुरू कर दिया था। अन्य कैदी सांकेतिक अनशप पर रहे थे। छाबड़ा को इसके लिए कालकेठरी में डाल दिया गयाप था जिनमें अमूमन मृत्युदंड फांसी पाए कैदियों को डाला जाता है। उनसे कोई मिल नहीं सकता था लेकिन किसी तरह मिल लिया जाता था। हरचंदसिंह सिद्धु ने भी तीन दिन बाद आमरण अनशन का नोटिस दे दिया था। इस पर उनको अन्यत्र स्थानान्तरित किया गया। सिद्धु को अजमेर जेल में काल कोठरी में डाल दिया गया था और आसपास कोई पूछता तो बताया जाता कि इसमें पागल है। सिद्धु को तो हथकड़ी व बेड़ी भी लगाई गई थी।
छाबड़ा के आमरण अनशन का यह असर हुआ कि सभी को राजनैतिक बंदी माना गया।
सूरतगढ़ के करीब 24 लोग जेलों में बंदी रहे। इनमें मीसा में भी रहे। वे लोग अब विभिन्न राजनैतिक दलों में हें। गुरूशरण छाबड़ा व हरचंद सिंह बाद में विधायक भी बन गए थे।
आपातकाल के मीशा और रासुका बंदियों को भाजपा के पिछले वसुंधरा राज में पेंशन के नियम बन गए थे लेकिन कांग्रेस की गहलोत सरकार ने रोक लगा दी थी,लेकिन भाजपा राज दुबारा आने पर वह पेंशन दुबारा लागू कर दी गई है जो कि कल्याणकारी राज की कार्यवाही का एक शुभ संकेत है। अभी इसमें शांति भंग में बंदी बनाए गए और नजरबंद किए गए लोगों को पेंशन सुविधा देना बाकी है।
इंदिरा गांधी के राज में सब कुछ वह नहीं हुआ जो सराहा जाए। सन 1975 में 25 जून को आपातकाल लागू कर संपूर्ण देश को जेल बना दिया गया था उसकी आलोचना संपूर्ण संसार में हुई थी। बहुत दर्दनाक हालात में लोग गुजरे। हजारों लोग तबाह हो गए। अनेक लोग मौत के शिकार हुए अनेक के कारोबार ठप हुए तथा बाद में पनप ही नहीं सके।
देश के कई लेखकों ने अपने लेखों में लिखा है कि आपातकाल के घावों को समय ने मरहम लगाई है। लेकिन यह सच नहीं है। केवल शब्दों में लिख देने मात्र से मरहम नहीं लग पाती। उन लेखकों को मालूम नहीं कि अनेक परिवार वे पीड़ाएं अभी भी भोग रहे हैं। जिनके रोजगार बंद हो गए, कारोबार उजड़ गए वापस पनपे ही नहीं,उनके मरहम कैसे लग गया? आपातकाल लागू करने की तिथि को 40 साल हो चुके हैं। आपातकाल को भोगने वाले लोग करीब 70 प्रतिशत तो अब इस संसार में नहीं है, जो हैं वे सब 50 साल से उपर की आयु में यानि कि वृद्धावस्था में है। जो जीवित हैं उनमें से अनेक वृद्धावस्था में भयानक अभावों व कष्टों में जीवन व्यतीत कर रहे हैं और जो संसार से विदा हो चुके हैं उनके परिवार कष्टों भरा जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
अनेक लोग जिनमें पत्रकार लेखक बुद्धिजीवी और राजनीतिज्ञ शामिल हैं वे इस पीड़ा को जानते बूझते भी समझ नही पा रहे।
सूरतगढ़ के लोगों में में भी आपातकाल के शिकार अनेक लोग हुए। लेकिन यहां जांबाज जोशीले लोग भी हैं। आपातकाल के लगाए जाने के अगले ही दिन रेलवे स्टेशन के आगे विरोध में आम सभा करके सरकार को चुनौती तक दे दी गई थी। उस सभा में गुरूशरण छाबड़ा व हरचंदसिंह सिद्धु सहित कई जांबाजों ने संबोधित किया था।
गिरफ्तारी के बाद गुरूशरण छाबड़ा ने राजनैतिक बंदी का दर्जा दिए जाने की मांग को लेकर श्रीगंगानगर जेल में स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त 1975 से आमरण अनशन शुरू कर दिया था। अन्य कैदी सांकेतिक अनशप पर रहे थे। छाबड़ा को इसके लिए कालकेठरी में डाल दिया गयाप था जिनमें अमूमन मृत्युदंड फांसी पाए कैदियों को डाला जाता है। उनसे कोई मिल नहीं सकता था लेकिन किसी तरह मिल लिया जाता था। हरचंदसिंह सिद्धु ने भी तीन दिन बाद आमरण अनशन का नोटिस दे दिया था। इस पर उनको अन्यत्र स्थानान्तरित किया गया। सिद्धु को अजमेर जेल में काल कोठरी में डाल दिया गया था और आसपास कोई पूछता तो बताया जाता कि इसमें पागल है। सिद्धु को तो हथकड़ी व बेड़ी भी लगाई गई थी।
छाबड़ा के आमरण अनशन का यह असर हुआ कि सभी को राजनैतिक बंदी माना गया।
सूरतगढ़ के करीब 24 लोग जेलों में बंदी रहे। इनमें मीसा में भी रहे। वे लोग अब विभिन्न राजनैतिक दलों में हें। गुरूशरण छाबड़ा व हरचंद सिंह बाद में विधायक भी बन गए थे।
गुरूशरण छाबड़ा वर्तमान में जयपुर में रहते हैं तथा सन 2013 में राजस्थान में संपूर्ण शराबबंदी की मांग को लेकर आमरण अनशन पर बैठे थे। कई बार प्रयास के बाद कुछ ङ्क्षबदुओं को मान कर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अनशन समाप्त करवाया था।
सरदार हरचंदसिंह सिद्धु वर्तमान में सूरतगढ़ में रहते हैं तथा अभी भी सरकारी भ्रष्टाचार दुराचार के विरोध में संघर्षरत हैं।
सूरतगढ़ के बंदी लोगों के बारे में अलग से विवरण देंगे।
सरदार हरचंदसिंह सिद्धु वर्तमान में सूरतगढ़ में रहते हैं तथा अभी भी सरकारी भ्रष्टाचार दुराचार के विरोध में संघर्षरत हैं।
सूरतगढ़ के बंदी लोगों के बारे में अलग से विवरण देंगे।
करणीदानसिंह राजपूत |
=लेखक राजस्थान सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त पत्रकार है तथा आपातकाल में जेल में बंद था। लेखक का भाई गोपसिंह सूर्यवंशी मीसा में बंद रहा था।