क्या कैशलेस चुनाव करवाएंगे?
नोट बंदी के एक वर्ष पूरा होने पर पक्ष और विपक्ष में इसकी सफलता को लेकर बहस छिड़ी हुई है ।पूर्व प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह नोटबंदी को जहाँ मोदी सरकार की भूल मानते हैं वही सरकार इसे सफल बता कर इसका जश्न मना रही है।।विपक्ष इस दिन को काला दिन बता रहा है वहीँ सरकार इसे कालाधन विरोधी दिवस के रूप में देख रही है हालाँकि सरकार को ऐसे दिवस मनाने की जरुरत नहीं होती लेकिन हमेशा चुनावी मोड में रहने वाले हमारे प्रधान मंत्री तो सरकार में रह कर भी विपक्ष जैसा आचरण करते रहे हैं।प्रधान मंत्री ने ट्वीट कर कहा है कि देश की सवा सौ करोड़ जनता ने काले धन के खिलाफ निर्णायक जंग लड़ी है और जीती है। पहली बात तो यही है कि अगर कोई लड़ाई जीत ली जाती है तो किसी को कहने की जरुरत नहीं रह जाती।दुनिया खुद देखती है और वो कहती है।काले धन के खिलाफ लड़ी इस जंग के बाद जब यह देखा गया कि पूरी मुद्रा का 99 प्रतिशत रूपया वापिस बैंकों में जमा हो गया है तो ये साफ़ हो गया कि काला धन पकड़ा नहीं गया ।यों समझिये कि लोगों ने इसे सफ़ेद कर लिया है।यही नहीं इस नोटबंदी से न नकली नोटों का प्रचलन बंद हुआ और न आतंकवाद पर लगाम लगी जो उस समय दावा किया जा रहा था।लेकिन अब अरुण जेटली नोटबंदी के फायदे बताते हुए यह कह रहे है कि इससे देश कैशलेस की तरफ बढ़ गया है व टैक्स कलेक्शन में वृद्धि हुई है।ये तो ऐसे ही हुआ कि जैसे कोई परीक्षा में फेल छात्र ये कहे कि देखिये इस परीक्षा से उसके प्राप्तअंकों का पता चल गया और इसलिए वो अपने आपको उतीर्ण समझे।जहाँ तक कालेधन की बात है उसकी कुल राशि का मात्र 1 प्रतिशत ही तो नकदी में था वो भी नहीं पकड़ा गया।शेष धन जो बेनामी संपत्ति, प्रोपर्टी ज्वेलरी वगेरह में है उस पर तो अब तक कोई कार्रवाई हुई ही नहीं।मोदी जी बार बार इसे गरीबों के लिए और बेईमानो के खिलाफ उठाया हुआ कदम बता कर जनता की सहानुभूति बटोरते रहे हैं।अगर सरकार कालेधन पर सचमुच गंभीर है तो उसे बताना होगा कि उसने इसके सृजन को रोकने के लिए अब तक क्या किया ?वो काम ये नहीं करेंगे क्योंकि इन्हें चुनाव भी लड़ने हैं और चुनाव के लिए सबसे ज्यादा काले धन की जरुरत रहती है। देखा जाय तो हज़ारों करोड़ रुपयों से लड़े जाने वाले हमारे चुनाव एक तरह से काले धन पैदा करने का एक बड़ा कारक हो गए हैं।चुनाव में जब तक धन बल की भूमिका इसी तरह बनी रहेगी ,काला धन पकड़ लेने के बाद भी कोई लाभ नहीं होगा क्योंकि इसका सृजन लगातार जारी रहनेवाला है।कैशलेस इकोनॉमी का दावा करने वाले एक चुनाव तो कैशलेस या जैसा वो कहते रहे हैं कर के दिखाएँ ।केंद्र और राज्य सरकारें सब उनकी है अब और क्या चाहिए इन्हें? गंगा साफ़ करनी हो तो गंगोत्री से शुरू करना पड़ेगा।काला धन समाप्त करना है तो चुनावों में धन बल अंकुश लगाना होगा व उसके बाद उन्हें काले धन के लिए किसी नोट बंदी की जरुरत रहेगी।हर बैंक खाते व मोबाइल नंबर को आधार से जोड़ने की वकालत करने वाले अगर वोटर आईडी को आधार से जोड़ कर क्या पूरी चुनाव प्रणाली को स्वच्छ करने का कार्य करवाये तो ही सही मायने में चुनाव सुधर हो सकेगा जिसमे जाली मतदान पर अंकुश लग पायेगा और सबको पता चल जायेगा की ये लोग अपने वास्तव में अपने उद्देश्य व देश के प्रति ईमानदार हैं।
रमेश छाबड़ा
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