गुरुवार, 5 जनवरी 2023

नहरों का टूटना चलता रहेगा क्योंकि न जिम्मेदारी न स्थाई प्रबंध की कोशिश।

 

* करणीदानसिंह राजपूत *

नहरों की शाखाओं वितरिका माईनरों का टूटना 40-50 सालों से चल रहा है और आगे भी चलता रहेगा, क्योंकि सरकारी अधिकारियों ने इस टूटने की प्रक्रिया के लिए कोई स्थाई हल नहीं किया।


 श्री गंगानगर जिले में यह साधारण सी बात हो गई है। इसका एक कारण यह भी है कि टूटने पर किसी भी अधिकारी की जिम्मेवारी तय नहीं की जाती। नहरों की शाखाएं उप शाखाएं टूटती रहती हैं और बेचारे किसान उन्हें सुधारने का बांधने का काम करते हैं। किसानों की मेहनत उनके ट्रैक्टर आदि जो नहरों के पुन:बांधे जाने के अंदर काम में आते हैं,उनकी कीमत कभी आंकी नहीं जाती,कभी उनकी मेहनत आंकी नहीं जाती। यह टूटना साधारण टूटना ही वर्षों से माना जाता रहा है।सरकार भी इस पर गौर नहीं करती। सरकार के प्रतिनिधि अधिकारी भी गौर नहीं करते और परेशान और पीड़ित होने वाले किसान भी इस पर गौर नहीं करते। किसान इस टूटन पर मेहनत करके जोड़ते हैं और फिर अपने कामों में लग जाते हैं। आज तक  नहर प्रणाली के टूटने की प्रक्रियाओं के हजारों समाचार छपे होंगे लेकिन किसी में भी यह सवाल नहीं उठाया गया कि अआखिर इनको स्थाई रूप से कब रोका जाएगा।

 सीधा-साधा एक सवाल कौंधता है कि इसका नुकसान किसी अधिकारी से वसूला नहीं जाता। किसी अधिकारी की जेब पर इसका असर नहीं पड़ता।उसके सर्विस पर भी असर नहीं पड़ता। असर पड़ता है तो केवल किसान पर उसकी फसल पर उसकी आमदनी पर।

 जब एक शाखा उपशाखा माईनर  आदि टूटते हैं तो उस समय जिनकी सिंचाई की बारी होती है वे बारिया पिट जाती हैं और उस से संबंधित किसानों की फसल पर असर पड़ता है।

 मैंने अपनी पत्रकारिता में अनेक बार शाखाओं उपशाखा और माइनरों के टूटने पर मौके परपहुंच कर  फोटोग्राफी की और समाचार दिए।मैंने यह सब 40- 50 साल से देखना शुरू किया और आज भी टूटन की घटनाएं इलाके के अखबारों में पढ़ता रहता हूं। 

मैंने इंदिरा गांधी नहर भाखड़ा नहर और गंग नहर के इलाकों में अनेक यात्राएं की है और टूटने के समय मौके पर भी पहुंचा हूं।पीड़ित किसानों को भी मैंने देखा है बातचीत की है लेकिन उनका यह नुकसान स्थाई रूप से किसी भी सरकार ने रोकने की कोशिश नहीं की। 

सामान्यतः देखा जाए तो नहरों के शाखाओं के निर्माण में खामियां रहने से, अधिक पानी डाले जाने से,आंधी तूफान में पेड़ नहरों में गिर जाने से नहरों की अंदर सफाई नहीं होने से ये घटनाएं होती रहती है,लेकिन कभी जिम्मेवारी तय नहीं हुई। 

सरकारें लगातार नहरी कर्मचारियों के पद खत्म करती रही है और आज स्थिति यह है कि नहर प्रणाली को संभालने के लिए पर्याप्त संख्या में न कर्मचारी है न अधिकारी हैं। 

सरकारें केवल दोहन करना जानती है। सिंचाई प्रणाली से उत्पादन होता है तो वह राष्ट्रीय संपदा होती है। सिंचाई प्रणाली टूटती है तो यह राष्ट्रीय नुकसान होता है लेकिन राजस्थान सरकार को और सिंचाई अधिकारियों को कोई परवाह नहीं है।

मेरे लेख राजस्थान पत्रिका सहित देश के अनेक समाचार पत्रों पत्रिकाओं में छपते रहे हैं।

 ** मेरा एक विस्तृत लेख सिंचाई प्रणाली की टूटने के बाबत आज की दिनांक 5 जनवरी 2023 से करीब 36 वर्ष पहले 'नवभारत टाइम्स' जयपुर के 19 अप्रैल 1987 के अंक में प्रकाशित हुआजिसमें 8 चित्र छपे। आधा पृष्ठ से  कुछ अधिक सामग्री रही। इतने बड़े लेख छपना मामूली नहीं होता।

मेरे रिकॉर्ड से वह अंक आप सबके सामने प्रस्तुत कर रहा हूं और बड़े रूप में ही इसे लगा रहा हूं ताकि कोई प्रिंट निकालना चाहे तो निकाल सके। वैसे जूम करके इसे पढ़ा जा सकता है। यदि कोई पत्रकार भाई प्रकाशित करना चाहें तो वे  इन अंतिम पंक्तियों को निकाल करके प्रकाशित कर सकते हैं।

5 जनवरी 2023.

करणी दान सिंह राजपूत,

 स्वतंत्र पत्रकार,

(1965-66 से पत्रकारिता लेखन)

( राजस्थान सरकार के सूचना एवं जनसंपर्क निदेशालय से अधिस्वीकृत )

सूरतगढ़ (राजस्थान)

94143 81356.

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