आपातकाल लोकतंत्र सेनानियों का भरोसा न टूटे, उचित समय बीत रहा है सम्मान करें।
* करणीदानसिंह राजपूत*
मेरे देशवासियों,नेताजी सुभाषचंद्र बोस और आजाद हिंद फौज भारत की आजादी के लिए युद्ध कर रहे थे और हम लोकतंत्र सेनानियों ने भी आपातकाल 1975-77 में देश की आजादी के लिए ही युद्ध किया था।
अंग्रेजी शासन ने देश को बेड़ियों में जकड़ रखा था और आपातकाल में कांग्रेस के इंदिरा शासन ने बेड़ियों में जकड़ दिया था। अंग्रेजी शासन में और आपातकाल के इंदिरा शासन में कोई अंतर नहीं था। शासन के विरुद्ध आवाज उठाने वालों को जेल में डालना और उन पर अत्याचार करना दोनों शासन में हुआ।
युद्ध करना हंसी खेल तो नहीं था। अपना परिवार, व्यवसाय पढाई छोड़कर नौकरियों को त्याग कर विरोध में उठे और युद्ध में कूद पड़े। किसी ने यह परवाह नहीं की कि पीछे परिवार व्यवसाय का क्या होगा? वृद्ध माता पिता का क्या होगा? बच्चों की शिक्षा का क्या होगा? शादी लायक पुत्री बहन का क्या होगा? देश की आजादी संविधान की रक्षा के लिए सिरों पर कफन बांध निकले थे।
युद्ध जीत कर लौटे तब उजड़े उजड़े से परिवार और व्यवसाय थे। परिवारों के सदस्य कंकाल नहीं थे मगर उनके शरीर कंकालों से कम नहीं थे। उनकी रोटी छूट गई थी। भोजन आधा या चौथाई रह गया था।
युद्ध के विजेता लोकतंत्र सेनानियों ने अपना बहुत खोकर उजड़ कर देश को बचा लिया। जिस मातृभूमि को नमन करते हैं उसको बचा लिया।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लोकसभा में कहा आपातकाल में जिन लोगों ने कुरबानियां दी उनके कारण आज प्रजातंत्र जीवित हैं और हम लोग सत्ता में हैं।ऐसे कुर्बानियां देने वालों का सम्मान किया जाना चाहिए।
प्रधानमंत्री के कहने के बाद सम्मान कौन करेगा? यह कर्तव्य किसका हो जाता है?
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लोकसभा में कहने के बाद भी इतने वर्ष बीत गए। आपातकाल युद्ध जीतने वाले मोदीजी पर भरोसा करते हुए सम्मान की आशा में एक एक कर सैंकड़ों संसार से विदा हो गए। अपनी पत्नियों को मां भारती के पास छोड़ गए।
आज भी योद्धाओं को सम्मान की आशा है और उसी आशा की ज्योति को जलाए मैं भी खड़ा हूं। मेरा आपसे देशवासियों से यही कहना है कि यह भरोसा नहीं टूटे। यह टूट गया तो फिर ऐसा युद्ध करने को कौन आगे आएगा। अपना सब छोड़ कर।
आप आपातकाल के लोकतंत्र सेनानी हैं या नहीं हैं मगर समय है कि आज लोकतंत्र सेनानियों के साथ उठ खड़े हों ताकि उनको सम्मान मिले और यह देश इस सम्मान का गवाह बन सके।
* हम नेताजी सुभाषचंद्र बोस और उनके सैनिक जैसे भी नहीं है,लेकिन मातृभूमि भूमि और संविधान के रक्षक तो रहे हैं।
* आपातकाल लोकतंत्र सेनानियों का सम्मान करें.*
जय हिंद।
दि.22 जनवरी 2022.
करणीदानसिंह राजपूत, 76 वर्ष
पत्रकार लेखक आपातकाल जेलबंदी।
विजयश्री करणी भवन,
सूरतगढ़ (राजस्थान) भारत।
91 94143 81356.
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लेखक.
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