सोमवार, 14 मार्च 2016

अपराध प्रशासन का और लाठी-गोली किसानों पर


करणीदान सिंह राजपूत
कानौर हैड पर आंदोलनकारी किसानों पर लाठियां गोलियां चलाने
की घटना पूरी तरह से प्रशासन और पुलिस की कत्र्तव्यहीनता और
लापरवाही का नतीजा थी। अपनी गलती और अपराध को छिपाने के लिए
किसानों को निशाना बनाया गया।
कानौर हैड पर राकेश बिश्रोई और सत्यप्रकाश सिहाग का
चढऩा और मर जाने की चेतावनी देना कोई बड़ा अपराध नहीं।
ऐसी कितनी ही घटनाएं विगत में हुई है लेकिन उनमें लाठी-गोली
चलाने की गलती नहीं हुई।
दोनों का कानौर हैड पर चढऩे का पूरा घटनाक्रम साबित
करता है कि प्रशासन पूर्ण रूप में दोषी है। प्रशासन ने हैड पर
अवरोधक लगाए जिन पर हजारों रुपये का खर्चा हुआ था। इसके
बावजूद वहां पर राकेश बिश्रोई व सत्यप्रकाश सिहाग कैसे पहुंच
गए? वहां पर अनेक अधिकारियों व सैकड़ों जवानों की ड्यूटी
थी। वे क्या कर रहे थे? इतनी घोर लापरवाही रही। इस
लापरवाही की सजा तो अधिकारियों को मिलनी चाहिए। बड़े पुलिस व
प्रशासन अधिकारी घटना स्थल से बीसियों किलोमीटर दूर थर्मल पावर
स्टेशन की आवासीय कॉलोनी परिसर में बने इरेक्टर हॉस्टल में
क्या कर रहे थे? अपने-अपने मु यालयों से रवाना होने के बाद
इन्हें सीधे घटनास्थल पर ही पहुंचना था। इरेक्टर हॉस्टल में
रहकर घटनास्थल पर नजर रखना उपयुक्त था या घटनास्थल पर
पहुंचकर नजर रखना उचित था?
अपनी आपराधिक त्रुटियों, बोखलाए अधिकारियों ने किसानों पर
लाठी-गोली चलवाई। ऐसा तो अंग्रेजी शासनकाल में भी नहीं हुआ
करता था।
असल में अपराध पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों का रहा। प्रभावित
लोग या अन्य मुकदमा कराएं तो उनके पदों और नामों से करवाएं।
अभी तो सीधे मुकदमें दर्ज कराने की मांग की जा रही है। वह भी
मु यमंत्री वसुंधरा राजे से। जो दर्द दे उसी से इलाज कराने की
गुजारिश क्यों?



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