बुधवार, 7 सितंबर 2011

लोकदेवता बाबा रामदेव का प्राचीन जाल मंदिर सूरतगढ़ - विशाल मेला

प्राचीन जाल मंदिर का गोल गुबंद और प्राचीन जाल

लोकदेवता बाबा रामदेव की सजी प्रतिमा

पूजन करते हुए श्रद्धालु

एक श्रद्धालु नारी अपने बच्चे को गोद में लिए जाल के तने का स्पर्श के साथ मनौती करते हुए

जाल के बांधी जाती है मनौतियों के लिए धजाएं



मेले में वेणियां खरीदने का रिवाज बहुत है- सजी हुई वेणियां

खरीदारी



मेले में गोदना गुदवाने का रिवाज- ग्रामीण युवक गोदना गुदवाते हुए

मेले में लक्कड़ी के सजावटी, घरेलू और एक्यूप्रेशर उपकरणों की दुकान

मिट्टी के रंग बिरंगे बर्तनों की बिक्री भी होती है

लोकदेवता बाबा रामदेव का प्राचीन जाल मंदिर सूरतगढ़ - विशाल मेला
बाबा का पूजन और जाल पर मनौतियों की सैंकड़ों धजा बांधी गई
विशेष रिपोर्ट और छाया चित्र :  करणीदानसिंह राजपूत
सूरतगढ़, 7 सितम्बर, 2011.लोकदेवता बाबा रामदेव का प्राचीन जाल मंदिर दूर दूर तक प्रसिद्ध है जहां से श्रद्धालु नर नारी आने परिवारों के साथ दर्शन पूजन को मेले पर पहुंचते हैं। यहां पर दसमी को मेला भरता है। दूर से आने वाले श्रद्धालु प्राय रात को ही आ जाते हैं और रात को ही नवमी का पूजन कर रात्रि जागरण में भाग लेकर दसमी की भोर में ही दर्शन कर लौट जाते हैं। दसमी को पूरे दिन मेला रहता है और रात के दस बजे तक चलता रहता है।
    इस प्राचीन मंदिर की प्रसिद्धि का मुख्य कारण आस्था है कि जाल की टहनी के मनोतियों की सफेद धजा यानि फरियां बांधने से वह कार्य पूर्ण होता है। श्रद्धालु चुपचाप बाबा का स्मरण करते हुए धजा बांधते रहते हैं। यह माना जाता है कि धजा बांधने वालों में स्त्रियों की संख्या जयादा होती है। बाबा के दर्शनों के लिए दूर दूर से आने वाले श्रद्धालु जो ध्वज लेकर आते हें वे जाल के तने के आगे उस ध्वज को रखते हैं। इस जाल के तने के पास भी पूजन किया जाता है। मनौतियों के लिए इस तने का स्पर्श करके भी हाथों को नेत्र और भाल के लगाते हुए बाबा भली करी का गुणगान चलता रहता है। बाबा के मंदिर में श्रद्धालु नारियल, खोपरा, लड्डू, पताशा, जलेबी, बूंदी पेड़ों का भोग लगाते हैं। इसके अलावा अनाज और झाड़ू भी चढा़ते हैं।
मेले में नाना प्रकार की दुकानें सजती हैं जिन पर खूब खरीदारी होती है।
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