सोमवार, 23 अक्तूबर 2017

कितने ईमानदार लोकसेवकों की छवि धूमिल हुई जिससे विधेयक लाना पड़ा? राजस्थान सरकार बताए।


- करणीदानसिंह राजपूत -

राजस्थान की भारतीय जनता पार्टी की सरकार 23 अक्टूबर को एक विधायक सदन में पेश करेगी। इस विधेयक के अनुसार भ्रष्टाचार से संबंधित कोई भी मामला पत्रकार नाम सहित तब तक नहीं छाप सकेगा जब तक सरकार अनुमति नहीं दे देती। भ्रष्टाचार से संबंधित लोक सेवकों के विरुद्ध कोई मामला सीधा पुलिस में और अदालत मेंभी दायर नहीं किया जा सकेगा। उससे पहले सरकार की अनुमति की जरूरत होगी। यदि सरकार 180 दिनों में अनुमति नहीं देती तब मामले को अदालत के अंदर पेश किया जा सकेगा। इसलिए यह भी माना जा रहा है कि सरकार जिसको चाहेगी  फंसाएगी और जिसको छूट देना चाहेगी उस पर मामला दायर करने की अनुमति नहीं देगी। वैसे भी 180 दिन के अंदर सबूतों की नष्ट कर दिए जाने का कहा जा रहा है।

 पूरे देश का मीडिया इसके विरोध में खड़ा है और लोग भी खड़े हैं।

यह तो एक प्रकार से भ्रष्टाचारियों का बचाव और जनता वह मीडिया का गला घोटने वाला मामला है।

सोशल मीडिया में भी नाम पहचान का कोई  प्रकाशन नहीं कर सकते हैं। अगर छापा तो 2 साल कैद की सजा होगी।

एक तरह से यह तो तानाशाही की ओर सरकार बढ़ रही है। सरकार के पास 200 के सदन में 163 भारतीय जनता पार्टी का बहुमत है इसलिए सरकार चाहे जो कर सकती है मगर इसका नतीजा आने वाले समय में सरकार को पदच्युत कर सकता है। सरकार ने यह सारा तामझाम भ्रष्टाचार के मामले में अपनी बदनामी को रोकने के लिए किया है और इसलिए भी किया है कि चुनाव के दिनों में सरकार के ऊपर कोई लोकसेवक का मामला पेश करके लांछन नहीं लगाया जा सकता।

 देश की जागरूक जनता इस प्रकार के कानूनी बदलाव और अंकुश से बेचैन दिखाई दे रही है। निश्चित रूप से राष्ट्रवादी कहलाने वाली भारतीय जनता पार्टी का यह रवैया सही नहीं कहा जा सकता है । 

सरकार  का कहना है कि ईमानदार लोकसेवकों को झूठे मामलों की बदनामी से बचाने के लिए यह किया जा रहा है।

इससे पहले सरकार को बताना चाहिए था कि कितने लोक सेवकों पर झूठे मामले दायर कर परेशान किया गया?

कितने  लोकसेवकों पर मुकदमों में सजा हुई? सरकार ने कितने मामलों में मुकदमा चलाने की स्वीकृति नहीं दी और क्यों नहीं दी? असल में सरकार को मामले पकड़ने चाहिए लेकिन उसके अधिकारी बिना काम वेतन लेते हैं।जनता भ्रष्टाचार से लड़ती है। अब जनता पर रोक लगाने की यह तैयारी है।


इस विधेयक को जाने क्या है इसमें।


‌आपराधिक कानून (राजस्थान संशोधन) अध्यादेश, 2017 के अनुसार ड्यूटी के दौरान किसी जज या किसी भी सरकारी कर्मी की कार्रवाई के खिलाफ कोर्ट के माध्यम से भी प्राथमिकी दर्ज नहीं कराई जा सकती। इसके लिए सरकार की स्वीकृति अनिवार्य होगी। हालांकि यदि सरकार स्वीकृति नहीं देती है तब 180 दिन के बाद कोर्ट के माध्यम से प्राथमिकी दर्ज कराई जा सकती है।


अध्यादेश के प्रावधानों में यह भी कहा गया है कि इस तरह के किसी भी सरकारी कर्मी, जज या अधिकारी का नाम या कोई अन्य पहचान तब तक प्रेस रिपोर्ट में नहीं दे सकते, जब तक सरकार इसकी अनुमति न दे। इसका उल्लंघन करने पर दो वर्ष की सजा का भी प्रावधान किया गया है।


पीयूसीएल ने किया विरोध

इस पर पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) ने ऐतराज जताया है। पीयूसीएल अध्यक्ष कविता श्रीवास्तव ने बताया कि इसके विरोध में 21 अक्टूबर को प्रेस सम्मेलन किया जाएगा।


पीयूसीएल की तरफ से जारी बयान में कहा गया है,  ‘PUCL स्तब्ध है की वसुंधरा राजे के नेतृत्व वाली राजस्थान सरकार अपने गलत कारनामो को ढकने के लिए अब संवैधानिक व उच्चतम न्यायलय के घोषित कानून के विरुद्ध जाकर इस तरह के संशोधन लायी है की लोक सेवकों के अपराधों के विरुद्ध  न कोई पुलिस FIR दर्ज़ कर सकती, ना जांच कर सकेगी, न मजिस्ट्रेट अनुशंधान आदेशित कर सकेगा न खुद कर पायेगा, जब तक सरकार आज्ञा नहीं देती। साथ ही इसके बारे में कोई लिख नहीं सकता, छाप नहीं सकता, जब तक आदेशित न हो।


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