रविवार, 7 दिसंबर 2014

राजे के तानाशाही आदेश से परनामी ने नागपाल का सिर कल्म कर दिया:


अशोक जी नागपाल की भाजपा में वापसी मुश्किल:
नागपाल का एक ही  पुत्र जो सिरियस जिंदगी मौत में था और उस समय टिकटों के निर्णय हो रहे थे।
भाजपा में तानाशाही रूल-पार्टी के संविधान पर नहीं चलाई जा रही पार्टी।
विशेष रिपोर्ट - करणीदानसिंह राजपूत -
भाजपा के जिलाध्यक्ष रहे अशोक नागपाल की नगर परिषद के चुनाव में गलती थी या नहीं थी? अभी इस विषय के बजाय मैं सीधे रूप में ीााजपा के प्रजातंत्र और संगठन विषय को पाठकों के सामने और भाजपा के दिग्गजों से लेकर कार्यकर्ताओं के सामने रख रहा हूं।
भाजपा के दिग्गज नेता पार्टी में पूर्ण प्रजातंत्रीय प्रणाली बतलाते हैं और दावा करते रहे हैं। लेकिन भाजपा नेताओं के इन दावों में कहीं भी सच्चाई नहीं है।
नागपाल का सिर कलम किए जाने में मुख्यमंत्री का आदेश क्यों हुआ? और अभी भी कहा जा रहा है कि नागपाल का स्पष्टीकरण मुख्यमंत्री के सामने रखा जाएगा। नागपाल दोषी हैं या नहीं हैं? इसका फैसला तो संगठन के अध्यक्ष अशोक परनामी को ही करना चाहिए था? फैसला वसुंधरा राजे ने किया और वह पूरा अशोक परनामी ने किया। भाजपा के बड़े नेता आखिर अपनी जुबान इस विषय पर जोरशोर से क्यों नहीं खोलते? राष्ट्रीय नेताओं ने वसुंधरा राजे को निर्णय करने की छूट कैसे और क्यों दे रखी है और राज्य के भाजपा अध्यक्ष का पद बौना क्यों बना रखा है?
प्रजातंत्रीय भाजपा के संविधान को कितना कुचला गया है यह हर कार्यकर्ता जान रहा है।
जिलाध्यक्ष श्रीगंगानगर के पद पर अशोक नागपाल की नियुक्ति की गई लेकिन उनके द्वारा बनाई गई कार्यकारिणी को नागपाल के हटाए जाने तक मंजूरी ही नहीं दी गई। इसके लिए आखिर प्रदेशाध्यक्ष की भी मंजूरी क्यों जरूरी है?
जिलाध्यक्ष बना ही दिया तो उसको कार्यकारिणी बनाने की स्वतंत्रता दी जानी चाहिए थी। हर पद के लिए जयपुर की ओर ताकना और मंजूरी लेना। प्रदेश में ही सारे अधिकार अपने आप में समेटे रखना कौनसा प्रजातंत्र हैं? यह तो राजतंत्र है और उसी के अनुरूप राजाज्ञा से नागपाल का सिर कलम कर दिया गया। संगठन का यह फैसला नहीं। यह फैसला राजशाही का। राजा को किसी ने शिकायत की और राजा ने तुरंत ही आदेश फरमा दिया। अच्दे राजा भी पहले अपने मंत्रि परिषद से विचार विमर्श करके निर्णय किया करते थे। किसी का सिर कलम कर दिया जाने का आदेश देने से पहले यह भी मालूम किया जाना चाहिए था कि गलती या षड्यंत्र हुआ था तो उसमें अन्य कितने लोग शामिल थे? यह भी अन्याय ही है कि एक का सिर कलम और बाकी के विरूद्ध कोई कार्यवाही नहीं।
यहां पर सूरतगढ़ का मसला बिना जोड़े रह नहीं सकता।  नगरपालिका चुनाव में टिकटों के वितरण में जो गड़बड़ी की गई उसमें अकेले नागपाल का हाथ नहीं था। उसमें विधायक राजेन्द्र भादू पर आरोप लगाए जाते रहे हैं। टिकट वितरण में जो अन्य समिति सदस्य थे उनको भी दंडित किया जाना था? भाजपा की कार्यवाही में अभी तक यह तय नहीं हो पाया है कि अन्य लोग पूर्ण रूप से दोष मुक्त हैं। जो कार्यकर्ता पीडि़त हुए हैं वे सभी तो अन्य लोगों को भी दंडित किए जाने की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
अनेक लोगों का सोच है कि नागपाल को पार्टी में वापस ले लिया जाएगा लेकिन वापस जिलाध्यक्ष बनाया जाना मुश्किल होगा।
मेरा सोच यह है कि पार्टी में वापसी भी मुश्किल है। यह सोच इसलिए है कि जिस तानाशाही तरीके को पार्टी में चलाया जा रहा है उसको समझा नहीं जा रहा है। उस तानाशाही तरीके से लिए निर्णय में तानाशाह अपना निर्णय बदल कर अपनी हेठी कभी नहीं दिखलाएगा कि पूर्व में उसने निर्णय गलत कर लिया था।
अभी भी यह बात इसलिए कहना चाह रहा हूं कि नागपाल जी भी उन्हीं लोगों सामने स्पष्टीकर देकर आए हैं जो वसुंधरा राजे से दबे हुए हैं और उनके सामने अपना मुंह तक नहीं खोल सकते। परनामी में इतना साहस नहीं कि वह वसुंधरा राजे के निर्णय को बदलने के लिए उन पर दबाव डाल सके। सूरतगढ़ का मसला भी तो जयपुर में पेश हो गया था फिर उसे वसुंधरा राजे के सामने पेश करने की हिम्मत क्यों नहीं की जा सकी। गुलाबचंद कटारिया तक को अवगत करवाया जा चुका था।

श्रीगंगानगर व सूरतगढ़ में टिकटोंके वितरण बारे में हो रही बैठकों की अवधि में अशोक नागपाल अपने एक ही पुत्र की जिंदगी बचाने को जयपुर दिल्ली भाग रहे थे। बेटा जयपुर बाद में दिल्ली में सीरीयस भर्ती करवाया गया था। उस वक्त निर्णय लेने वाले तो अन्य ही थे। लेकिन उस समय के षडय़ंत्र और गलतियों से जो विवाद पैदा हुए और बढ़ते गए। जिन पर कोई गौर नहीं कर रहा है।
मुख्यमंत्री केवल श्रीगंगानगर पर कार्यवाही करने में आगे रही जहां भाजपा का बोर्ड नहीं बन पाया। सूरतगढ मसलों पर कार्यवाही इसलिए नहीं हो रही क्यों कि यहां भाजपा को बोर्ड बन गया चाहे जुगाड़ से बना है। श्रीगंगानगर में भी जुगाड़ से बोर्ड भाजपा का बन जाता तो वसुंधरा राजे खुश हो जाती। चाहे वह किसी भी तरीके से बन जाता।
एक बात और भी है कि अध्यक्ष मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री का नाम थोपा क्यों जाता हैï? जिसके पक्ष में ज्यादा सदस्य होंगे उसको ही चुने जाने की परंपरा क्यों नहीं निभाई जाती?
भाजपा को अपने संविधान पर चलना चाहिए। मोदी जी ने अपनी सरकार को संविधान के हिसाब से चलाने का कहा था। तब पार्टी को भी अपने संविधान पर चलने के लिए कोई बात क्यों नहीं कही जा रही?
भाजपा के हर नेता को ही नहीं हर कार्यकर्ता तक को संविधान पढ़ लेना चाहिए। सच्च तो यह है कि पार्टी में तानाशाही निर्णयों को लेने के लिए संविधान कहीं किसी कार्यालय में उपलब्ध तक नहीं है और उपलब्ध करवाया भी नहीं जाएगा।
चलते चलते एक बात और कि नागपाल को जिलाध्यक्ष बहुत सोच कर ही बनाया गया था तब हटाने का फैसला उनका जवाब लेकर ही किया जाना चाहिए था। यह बहुत जल्दबाजी में किया गया फैसला है और जल्दबाजी में किए गए फैसले आगे चल कर परेशानियां ही पैदा करते हैं।

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